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अंगूर की खेती की संपूर्ण जानकारी | angur ki kheti

किसानों के लिए अंगूर खेती का सही समय के बारे में जानना बेहद जरुरी है क्योंकि अंगूर की खेती कटिंग कलम करने वाली फसलों की श्रेणी में आती है।

अंगूर की बागवानी (Grape farming)

angur ki kheti: हरे, काले और लाल, रसीले अंगूर… नाम सुनते ही सबके मुंह में पानी आ जाता है। किसानों के लिए अंगूर की खेती (angur ki kheti) उतना ही पसंदीदा है जितना इसका स्वाद। 

अंगूर (Grapes) में पाई जाने वाली कैलोरी, फाइबर और विटामिन सी, ई शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद है। आयुर्वेद में अंगूर को सेहत का खजाना बताया गया है। अंगूर के फल स्वादिष्ट तथा स्वास्थ्य के हितकारी होने के कारण इसकी बागवानी की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे कहा जा सकता है कि अंगूर की खेती (angur ki kheti) में अपार संभावनाएं हैं। 

आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि अंगूर की खेती कैसे करें (angoor ki kheti kaise kare)?

अंगूर की खेती के लिए जलवायु

अंगूर की बागवानी (Grape farming) लगभग पूरे देश में सभी क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, जलवायु अनुकूल रहती है। इसके लिए बहुत अधिक तापमान हानि पहुंचा सकता है। अधिक तापमान के साथ अधिक आद्रता होने से रोग लग जाते है। जलवायु का फल के विकास तथा पके हुए अंगूर की बनावट और गुणों पर काफी असर पड़ता है।

अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

अंगूर की खेती के लिए सबसे जरुरी है कि भूमि का चयन सही हो जिससे की आप को खेती में घाटा न उठाना पड़े। अंगूर की जड़ की संरचना काफी मजबूत होती है। अत: यह कंकरीली, रेतीली से चिकनी तथा उथली से लेकर गहरी मिट्टियों में सफलतापूर्वक पनपता है लेकिन रेतीली, दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास अच्छा हो अंगूर की खेती के लिए सही होती है। 

खेती की तैयारी कैसे करें (angoor ki kheti kaise kare)

किसानों के लिए अंगूर खेती का सही समय के बारे में जानना बेहद जरुरी है क्योंकि अंगूर की खेती कटिंग कलम करने वाली फसलों की श्रेणी में आती है। जिससे कि अंगूर का प्रवर्धन मुख्यत: कटिंग कलम द्वारा होता है। जनवरी माह में काट छांट से निकली टहनियों से कलमें ली जाती हैं।

ऐसे करें अंगूर की कलम कटिंग

  • कलम सदैव स्वस्थ एवं परिपक्व टहनियों से लें।
  • सामान्यत: 4-6 गांठों वाली 23-45 से.मी. लम्बी कलमों का उपयोग करें।
  • कलम का नीचे का कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए
  • ऊपर का कट तिरछा होना चाहिए।
  • इन कलमों को जमीन की सतह से ऊंची क्यारियों में लगाएं।
  • एक वर्ष पुरानी जड़युक्त कलमों को जनवरी माह में नर्सरी से निकल कर बगीचे में लगाएं।

अंगूर की बागवानी के लिए करीब 50 x 50 x 50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदकर लें। इसके बाद उसमें सड़ी गोबर की खाद (15 किलोग्राम), 250 ग्राम नीम की खली, 50 ग्राम फॉलीडाल कीटनाशक चूर्ण, 200 ग्राम सुपर फॉस्फेट व 100 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति गड्ढे मिलाकर भर दें। पौध लगाने के करीब 15 दिन पूर्व इन गड्ढ़ों में पानी भर दें ताकि वे तैयार हो जाए। जनवरी माह में इन गड्ढों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को रोप दें। पौध लगाने के बाद तुरन्त सिंचाई करना आवश्यक है।

अंगूर की उन्नत किस्में

किसी भी फसल के अधिक लाभ लेने के लिए आवश्यक है कि उन्नत किस्में का प्रयोग किया जाए। यह बात अंगूर की खेती (angur ki kheti) पर भी लागू होती है।

ऐसे में किसान भाइयों के लिए काले अंगूर की उन्नत किस्मों के बारे में जानना बेहद जरुरी है, जिससे खेती करने से पहले इन किस्मों का प्रबंन्ध कर सकें। जैसा कि आपको पता है कि कई रंगों में अंगूर की किस्में को देश के नामी कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा तैयार किया गया है।

अरका नील मणि: यह ब्लैक चंपा और थॉम्पसन बीजरहित के बीच एक क्रॉस है। इसकी बेरियां काली बीजरहित, खस्ता लुगदी वाली और 20-22 प्रतिश टीएसएस की होती है। यह किस्म एंथराकनोज के प्रति सहिष्णु है। औसतन उपज 28 टन/हेक्टेयर है। यह शराब बनाने के लिए काफी उपयुक्त है।

अरका श्याम: यह बंगलौर ब्लू और काला चंपा के बीज का क्रॉस है। इसकी बेरियां मध्यम लंबी, काली चमकदार, अंडाकार गोलाकार, बीजदार और हल्के स्वाद वाली होती है। यह किस्म एंथराकनोज के प्रति प्रतिरोधक है। यह टेबल उद्देश्य और शराब बनाने के लिए उपयुक्त है।

अरका कृष्णा: यह ब्लैक चंपा और थॉम्पसन बीजरहित के बीच एक क्रॉस है। इसकी बेरियां काले रंग, बीजरहित, अंडाकार गोल होती है और इसमें 20-21 प्रतिश टीएसएस होता है। औसतन उपज 33 टन/हेक्टेयर) है। यह किस्म जूस बनाने के लिए उपयुक्त है।

अरका राजसी: यह ‘अंगूर कलां और ब्लैक चंपा के बीच एक क्रॉस है। इसकी बेरियां गहरी भूरे रंग की, एकसमान, गोल, बीजदार होती है और इसमें 18-20त्न टीएसएस होता है। यह किस्म एनथराकनोज के प्रति सहिष्णु है। औसतन उपज 38 टन/हेक्टेयर है। इस किस्म की अच्छी निर्यात संभावनाएं है।

गुलाबी:  इसकी बेरियां छोटे आकार वाली, गहरे बैंगनी, गोलाकार और बीजदार होती है। टीएसएस 18-20 प्रतिशत होता है। यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन के लिए होता है। यह क्रेकिंग के प्रति संवदेनशील नहीं है परन्तु जंग और कोमल फंफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील है। औसतन उपज 1012 टन/ हेक्टेयर है।

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन

भारत के विभिन्न हिस्सों में अंगूर की खेती (angur ki kheti) की जा सकती है। ऐसे में किसानों भाइयों के लिए सिंचाई की खास आवश्यकता को जानना जरुरी हो जाता है। देश में अंगूर ज्यादातर अपर्याप्त वर्षा और उच्च वाष्पोत्सर्जन घाटा वाले अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। इसलिए अनुपूरक सिंचाई आवश्यक हो जाती है। ग्रोथ के विभिन्न चरणों के दौरान बेलों को पानी की आवश्यकता अलग-अलग होती है।

बेलों की छंटाई और खाद डालने के बाद तुरंत सिंचाई की जाती है। बेरी बढ़ने  के पढ़ाव के दौरान, 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है। फलों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए फसल-कटाई से पहले कम से कम 8-10 दिनों के लिए पानी को रोका जाता है। 

छंटाई के बाद सिंचाई फिर से शुरू की जाती है। गर्मियों की छंटाई से बारिश की शुरूआत तक की अवधि के दौरान, सिंचाई साप्ताहिक अंतराल पर की जाती है और इसके बाद 10-12 दिनों के अंतराल पर जब तक सर्दियों की छंटाई मिट्टी की नमी हालात पर निर्भर रहेगी। 

गर्मियों की छंटाई के बाद 45-50 दिनों के दौरान अत्यधिक सिंचाई नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वनस्पति विकास के संवर्धन द्वारा यह फूल बीजारोपण पर उल्टा प्रभाव डालती है। यहां पर किसान भाइयों के लिए ध्यान में रखने वाली यह है कि फूल खुलने से लेकर बेरी के मटर साइज के आकार तक लगातार और भारी सिंचाई से भी बचना चाहिए क्योंकि वे कोमल फफूदी रोग जैसे समस्या को बढ़ा देती है।

अंगूर की खेती में लागत और कमाई

अंगूर की खेती में लागत कई मापदंडों पर निर्भर करती है। जैसे कि अंगूर के कलम का लागत, खेती के लिए जरुरी खाद, रोगों के निवारण के लिए दवाई खर्च और इसके तैयार होने तक विभिन्न प्रकार के खर्चे शामिल होते है।  देश में अंगूर की औसत पैदावार 30 टन प्रति हेक्टेयर है, जो विश्व में सर्वाधिक है। वैसे तो पैदावार किस्म, मिट्टी और जलवायु पर निर्भर होती है, लेकिन उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर एक पूर्ण विकसित बाग से अंगूर की 30 से 50 टन पैदावार प्राप्त हो जाती है। 

कमाई के मामले में यह निर्भर करता है कि अंगूर के भाव क्या चल रहा है। ऐसे में  बाजार में इसका कम से कम भाव 50 रुपए किलो भी माने और औसत पैदावार 30 टन प्रति हैक्टेयर माने तो इसके उत्पादन से 30x1000x50 = 15,00,000 रुपए कुल आमदनी होती है। इसमें से अधिकतम 5,00,000 रुपए खर्चा निकाल दिया जाए तो भी शुद्ध लाभ 10,00,000 रुपए बैठता है। 

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न- अंगूर का पेड़ कितने साल में फल देता है?

उत्तर- अंगूर का पेड़ 5 से 6 साल के बाद फल देने लगता है। हालांकि फल लगने के लिए अंगूर के किस्म, सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन पर भी निर्भर करती है। 

प्रश्न- अंगूर की खेती कब और कैसे करें?

उत्तर- अंगूर की खेती का समय दिसंबर से जनवरी का महीना होता है। इसके लिए सबसे पहले खेत की तैयारी, किस्म का चुनाव करना होगा। कलम लगाने के बाद उचित सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन करके इसकी खेती कर सकते हैं। 

प्रश्न- अंगूर का फल कौन से महीने में लगता है?

उत्तर- अंगूर का फल फरवरी से लेकर मई तक लगता है। हालांकि यह किस्म पर भी निर्भर करता है। 

प्रश्न- अंगूर का पौधा कब लगाना चाहिए?

उत्तर- अंगूर का पौधा दिसंबर से लेकर जनवरी के महीने में लगाना चाहिए। इसके अलावा आप अंगूर की बागवानी जुलाई-अगस्त में भी कर सकते हैं।

 

ये तो थी, अंगूर की खेती (angur ki kheti) की बात। लेकिन, The Rural India पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

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