खुरपका-मुंहपका और गलघोंटू रोग के लक्षण और बचाव
बरसात में अक्सर पशुओं को गलघोंटू या मुंहपका-खुरपका जैसी बीमारियां हो जाती हैं। यह दोनों ही रोग तेज़ी से फैलते हैं।
hoof mouth disease in hindi: बरसात में अक्सर पशुओं को गलघोंटू या मुंहपका-खुरपका जैसी बीमारियां हो जाती हैं। यह दोनों ही रोग तेज़ी से फैलते हैं।
अगर पशु को सही उपचार और देखभाल नहीं मिले तो उनकी जान को खतरा भी हो सकता है। इसलिए लक्षण देखने पर सही उपचार करें या नजदीकी पशु चिकित्सक से परामर्श लें।
तो आइए, द रूरल इंडिया के इस लेख में जानें- गलघोंटू और मुंहपका-खुरपका रोग क्या है? और इन रोगों का निदान कैसे करें?
खुरपका-मुंहपका रोग (foot-mouth disease)
खुरपका और मुंहपका रोग (foot-mouth disease) पशुओं में तेजी से फैलता है। इसका असर उनकी कार्यक्षमता और दूध उत्पादन पर पड़ता है। बारिश आते ही इस रोग का खतरा पशुओं में बढ़ जाता है।
खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण (Symptoms of Foot and Mouth Disease)
- दूध उत्पादन में कमी आना।
- जीभ बाहर आना।
- गर्भपात हो जाना।
- मुंह से ज्यादा लार टपकना।
- पशु जुगाली करना बंद कर देता है।
बचाव के तरीके
- प्रभावित क्षेत्र को सोडियम कार्बोनेट को पानी में मिलाकर धोएं।
- डॉक्टर की सलाह लेकर पशु को तुरंत टीका लगवाएं और नियमित उपचार करवाएं।
- जिस जगह पर ग्रस्त पशु को रखें, वहां ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव कर दें।
- दूध निकालने के बाद हाथ और मुंह साबुन से धोएं।
- रोगग्रस्त पशु को अन्य पशुओं से दूर रखे।
गलघोंटू रोग (throttle disease)
गलघोंटू रोग के लक्षण का पता लगने के बाद अगर शीघ्र इलाज शुरू न किया जाए तो पशु की मौत हो जाती है। यह रोग ज्यादातर गाय और भैंस को होता है। मौसम परिवर्तन के कारण पशुओं को यह रोग हो जाता है।
गलघोंटू रोग के लक्षण (symptoms of strep throat)
- पशु सुस्त रहने लगता है।
- पशु की आंखें लाल रहने लगती हैं।
- सिर, गर्दन और आगे की दोनों टांगों के बीच सूजन आना।
- सांस लेने पर घुर्र-घूर्र की आवाज आना।
- इस रोग से ग्रस्त पशु को अचानक लगभग 105 से 106 फॉरेनहाइट तक तेज बुखार आ जाता है।
- पशु खाना-पीना छोड़ देता है।
- उसके मुंह से लार गिरने लगती है।
उपाय
- जहां पानी एकत्रित हो जाता है, ऐसी जगह पर पशु को रखने से ये रोग होता है।
- इसलिए पशुओं को बांधने वाले स्थान को हमेशा साफ रखें।
- रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सकों से संपर्क करें।
- रोगग्रस्त पशु को अन्य पशुओं से दूर रखें, क्योंकि यह बीमारी तेजी से फैलती है और जानलेवा भी है।
- हर साल पशुओं को बारिश के मौसम में गलघोंटू रोग का टीका लगवा दें।
- रोग होने पर एंटी बायोटिक जैसे क्लोरोम फॉनीकोल और सल्फाडीमीडीन ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन दे सकते हैं।
- इस बीमारी का पता लगने पर उपचार जल्द से शुरू कर दें, इससे पशु को बचाया जा सकता है।
- जिस स्थान पर पशु की मृत्यु हुई गई हो, वहां पर कीटाणुनाशक दवाई का छिड़काव कर दें।
ये तो थी, पशुओं को होने वाले गलघोंटू और मुंहपका-खुरपका रोग और इसके बचाव (Symptoms and prevention of hoof mouth disease fmd in hindi) की जानकारी।
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