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गाजर की खेती की संपूर्ण जानकारी | gajar ki kheti

गाजर ठंडी जलवायु की फसल है। गाजर की उन्नत खेती (carrot ki kheti) के लिए 8 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान सही होता है।

गाजर की खेती

गाजर की खेती (gajar ki kheti in hindi): गाजर (carrot) का नाम सुनते ही जो विचार सबसे पहले हमारे मन में आता है, वह है उसका खूबसूरत लाल रंग और स्वादिष्ट गाजर का हलवा। गाजर में भरपूर मात्रा में कैरोटीन और विटामिन ए पाया जाता है। कच्चे सलाद के रुप में गाजर बहुत ही फायदेमंद होता है। किसानों की सेहत और मुनाफे के लिए गाजर की खेती (gajar ki kheti) बहुत ही महत्वपूर्ण है।

तो आइए, इस ब्लॉग/लेख में जानें, स्वाद और सेहत से भरपूर गाजर की खेती कैसे करें (gajar ki kheti kaise karen) ?

गाजर की खेती के लिए जलवायु

गाजर ठंडी जलवायु की फसल है। गाजर की उन्नत खेती (carrot ki kheti) के लिए 8 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान सही होता है। ज्यादा गर्मी वाले इलाके में इसकी फसल नहीं करनी चाहिए।

गाजर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी 

दोमट मिट्टी गाजर की उच्च गुणवत्ता युक्त फसल के उत्पादन के लिए श्रेष्ठ है। इसके लिए मिट्टी को पूरी तरह से भुरभुरी कर लें। खेत में जल निकासी की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए। पानी के भराव की स्थिति में जड़ों के गलने और फसल खराब होने का खतरा रहता है।

गाजर की खेती का सही समय

गाजर की बुआई का सही समय अगस्त से अक्टूबर के बीच का होता है। लेकिन गाजर की कुछ खास किस्म की बुआई के लिए अक्टूबर से नवंबर का समय भी श्रेष्ठ माना जाता है। इसे रबी के मौसम करें तो ज्यादा उत्पादन होता है।

ऐसे करें खेत की तैयारी

जैसा कि हमने मिट्टी की जानकारी में बताया कि भुरभुरी मिट्टी को गाजर की खेती (gajar ki kheti) के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। अतः मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए सर्वप्रथम दो से तीन बार हल से जुताई करनी चाहिए। उसके बाद 3 से 5 बार पारंपरिक हल से जुताई करना और अंत में पाटा फेरना इन क्रियाओं को इसी क्रम में करने से अपने खेत की मिट्टी को गाजर की बुआई के लिए और गाजर की अच्छी खेती के लिए आप सही तरीके से तैयार कर सकते हैं।

गाजर की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएं

▪️ पूसा मेघाली

गाजर की यह किस्म 100 से 110 दिनों में तैयार होती है। इसकी पैदावार 250 से 300 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसकी बुआई अगस्त से सितंबर महीनें में की जाती है। इसमें कैरोटीन की मात्रा अधिक होती है।

▪️ पूसा केसर

यह किस्म भी 110 से 110 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 225 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसकी बुआई अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितंबर महीने में की जाती है।

▪️ हिसार रसीली

यह किस्म 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसमें विटामिन ए और कैरोटीन की मात्रा अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होती है।

▪️ गाजर 29

इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। यह 85-90 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म बहुत मीटा और स्वादिष्ट होता है।

▪️ चैंटनी

यह किस्म 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 150 से 200 क्विटंल प्रति हेक्टेयर होती है। यह मोटी और गहरे लाल नारंगी रंग की होती है।

▪️ नैनटिस 

यह किस्म 100 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 200-220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। यह किस्म खानें अधिक स्वादिष्ट और अधिक मीठी और दानेदार होती है।

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन

अगर हम उर्वरक की बात करें तो गाजर की खेती (gajar ki kheti) के लिए तीन प्रमुख उर्वरकों की आवश्यकता होती है।

  1. नाइट्रोजन
  2. पोटाश
  3. डीएपी

अंतिम जुताई के समय लगभग 35 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद का प्रयोग गाजर के अच्छे उत्पादन में सहायक होता है। 

 

बुआई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 30 किलोग्राम पोटाश  प्रति हेक्टेयर की दर उर्वरक की तरह प्रयोग करने से गाजर की अच्छी पैदावार होती है।

अंत में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर टॉप ड्रेसिंग की तरह मिट्टी में मिलाना। बुआई के चार से 5 सप्ताह के बाद इतनी ही मात्रा में नाइट्रोजन का उर्वरक की तरह प्रयोग करना आपको गाजर की अच्छी पैदावार देता है।

नाइट्रोजन का उपयोग करने से पौधों में अच्छी वृद्धि होती है। यह गाजर की फसल की (gajar ki fasal) गुणवत्ता में सुधार आता है क्योंकि नाइट्रोजन मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में काफी सहायक होता है।

इसी तरह पोटाश पानी में घुलनशील होता है और पौधों तक पोषक तत्व के रूप में अच्छी तरह पहुंचता है।  पोटाश से पौधे में फूल और फल दोनों ही स्वस्थ और ज्यादा मात्रा में आते हैं। नाइट्रोजन और पोटाश दोनों की मदद से स्वस्थ पौधों का विकास होता है और अच्छी और अधिक फसल की प्राप्ति होती है।

अब हम बात करते हैं सिंचाई की। गाजर का खेत हमेशा नमी युक्त रहना चाहिए। सर्दियों के समय 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना फायदेमंद होता है । अगर मौसम में हल्की गर्मी है तो आप 8 से 10 दिन के अंतराल को कम करके 3 से 4 दिन का भी कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था हो और आपके खेत की मिट्टी सूखे नहीं।

गाजर की खेती में लागत और कमाई

अगर आप गाजर की खेती (gajar ki kheti) करना चाहते हैं तो मन में यह प्रश्न आता है कि इस खेती को शुरू करते वक्त हमारी कितनी लागत आएगी।

तो इसका सीधा-सीधा हिसाब यह है कि गाजर की लगभग 1 किलो की खेती के लिए 6 से ₹8 का खर्च आता है। अगर कोई व्यक्ति 1 किलो गाजर उगाता है तो उसकी लागत 6 से ₹8 के बीच आएगी। वहीं अगर हम बात कमाई की करें तो गाजर की कुछ किस्में एक हेक्टेयर में लगभग 150 क्विंटल तक उगाई जा सकती है।

वहीं कुछ किस्मों की खेती लगभग 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से भी होती है। 75 से लगभग 90 दिन के मध्य तैयार होने वाली इस फसल की कीमत बाजार में अमूमन ₹40 प्रति किलो तक होती है। इस हिसाब से अगर हम देखें तो 1 हेक्टेयर से लगभग 7 लाख से 14 लाख रुपए कमा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न- गाजर की खेती कब और कैसे की जाती है?

उत्तर- गाजर की खेती आप रबी के मौसम में कभी भी कर सकते हैं। गाजर की खेती के लिए सबसे पहले खेत को 2 से 3 बार अच्छी तरह से जुताई करके बुआई करें। सही तरह से सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन करें। इससे आपकी गाजर की फसल अच्छी होगी। 

प्रश्न- गाजर की खेती कौन से महीने में की जाती है?

उत्तर- गाजर की खेती सितंबर से नवंबर महीने में की जाती है। 

प्रश्न- गाजर उगने में कितने दिन लगते हैं?

उत्तर- गाजर उगने में 10 से 15 दिन लगते हैं। 

प्रश्न- एक बीघा में गाजर कितनी होती है?

उत्तर- एक बीघा में 10 से 20 कुंतल तक गाजर का उत्पादन होता है। हालांकि यह उत्पादन उचित सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन के साथ-साथ गाजर के किस्म पर निर्भर करता है। 

अगर आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा हो, तो इसे मित्रों तक जरूर पहुंचाए। जिससे अन्य किसान मित्र भी इस जानकारी का लाभ उठाते हुए गाजर की खेती को (gajar ki kheti) सफलतापूर्वक कर सकें।

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