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भारत में खेती के प्रकार | types of farming in india

भारत में जलवायु, मिट्टी की विविधता के कारण खेती में विविधता पाई जाती है। जैसे- जम्मू कश्मीर में केसर तो वहीं केरल में नारियल की खेती होती है।

types of farming in india: हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर करती है। यहां ज्यादातर लोग खेती-बाड़ी करके अपना जीवन यापन करते हैं। भारत में जलवायु, मिट्टी की विविधता के कारण यहां खेती में भी विविधता पाई जाती है। जैसे- जम्मू कश्मीर में केसर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु है तो वहीं केरल में नारियल की खेती के लिए काफी उपयुक्त जलवायु है। 

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में जानें- भारत में खेती के प्रकार (types of farming in india)

खेती के प्रकार (types of farming in hindi)

भारत में खेती मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।- 

1. निर्वाह खेती

2. वाणिज्यिक खेती

3. घरेलू खेती

1. निर्वाह खेती (subsistence farming)

निर्वाह खेती को जीविका कृषि (subsistence agriculture) भी कहा जाता है। इस तरह की खेती अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए की जाती है। इस तरह की खेती यह ध्यान में रखते हुए किया जाता है कि परिवार को इस बार किन चीजों की जरूरत होगी और बाजार में वह सारी चीजें किस भाव में मिलेंगे। इन बातों को ध्यान में रखकर निर्वाह खेती की जाती है। इसमें किसान बहुत ज्यादा उन्नत बीजों और तकनीकों का उपयोग नहीं करते हैं। यह खेती वैसे क्षेत्र में की जाती है जहां बिजली और सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होती है। साधारण भाषा में कहें तो यह बहुत ही निम्न स्तर की खेती होती है। जो सिर्फ अपने जीविकोपार्जन के लिए की जाती है। 

 निर्वाह खेती भी दो प्रकार की होती है।

  1. गहन निर्वाह खेती
  2. आदिम निर्वाह खेती

गहन निर्वाह खेती (intensive subsistence farming)

इस प्रकार की खेती में किसान कड़ी मेहनत के साथ साधारण औजारों और कम लागत लगाकर अपनी खेती करते हैं और गहन निर्वाह कृषि का उपयोग करके साल में एस से अधिक फसल उगाते हैं। गहन निर्वाह खेती का उदाहरण- धान व अन्य फसल जैसे- गेहूं, मक्का, दलहन और तिलहन आदि। यह खेती ज्यादातर मानसून की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में की जाती है

आदिम निर्वाह खेती (primitive subsistence farming)

आदिम निर्वाह खेती भी दो प्रकार की होती हैं। इसमें स्थानांतरित खेती और चलवासी पशु चारण शामिल है। तो आइए सबसे पहले जानते हैं। स्थानांतरित खेती क्या है?

स्थानांतरित खेती (shift farming)

स्थानांतरित खेती की विधि को स्लैश एंड बर्न एग्रीकल्चर भी कहा जाता है। स्थानांतरित खेती में किसान सबसे पहले अपने कृषि भूमि में रहने वाले पेड़ों को काटकर जला देते हैं। उसके बाद उन पेड़ों से निकलने वाले राख को जुताई के सहारे मिट्टी में मिला देते हैं। इसके बाद खेती करते हैं स्थानांतरित खेती में ज्यादातर मक्का, आलू, रतालू और कसावा आदि उगाया जाता है। इस प्रकार की खेती में एक बार फसल उगाने के बाद किसान दूसरी उपज के लिए किसान ने भूखंड का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार की खेती ज्यादातर अमेजन बेसिन, दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वोत्तर भारत के जंगली क्षेत्रों में की जाती है।

स्थानांतरित खेती को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

  • झूमिंग- उत्तर पूर्वी भारत
  • मिल्पा-मेक्सिको
  • रोका- ब्राजील
  • लदांग- मलेशिया

चलवासी पशु चारण (nomadic pastoral farming)

चलवासी पशुचारण में पशुपालक अपने पशुओं के सहारे चारे और पानी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। इस प्रकार की गतिविधि जलवायु संबंधी बाधाओं और भूभाग की प्रतिक्रिया के उत्पन्न होती है। इस प्रकार की खेती मध्य एशिया और भारत के कुछ भागों जैसे राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में प्रचलित है।

इस खेती में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले जानवर भेड़, ऊंट, याक और बकरियां हैं। इस खेती का उत्पाद दूध, मांस और अन्य चरवाहों और उनके परिवारों के लिए है।

2. वाणिज्यिक खेती (Commercial Farming)

वाणिज्यिक खेती का मुख्य उद्देश्य फसल फसल उगा कर व्यापार करना यानी बेचना है और बेचकर पैसे कमाना है। इसके लिए बड़े क्षेत्रों और उच्च स्तर की तकनीक की आवश्यकता होती है। यह खेती उपकरणों की उच्च लागत के साथ किया गया है।

व्यवसायिक खेती 3 प्रकार की होती है।

  1. व्यावसायिक या वाणिज्यिक (अनाज कृषि)
  2. व्यावसायिक मिश्रित खेती
  3. व्यावसायिक वृक्षारोपण खेती 

व्यवसायिक या वाणिज्यिक (अनाज कृषि)

यह खेती खास तौर पर अनाज उगाने के लिए की जाती है जैसे धान गेहूं मक्का। इस खेती में एक बार में एक ही फसल उगाई जा सकती है। यह खेती उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया के शीतोष्ण घास के मैदानों की जाती है।

व्यवसायिक मिश्रित खेती

इस प्रकार की खेती भोजन खाद्य पदार्थ और चारे की फसल उगाने के लिए की जाती है। इस खेती में एक से अधिक फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। इसमें अच्छी वर्षा और सिंचाई होती है। फसलों की सावधानीपूर्वक देखभाल की जाती है। इस खेती का सबसे अधिक उपयोग यूरोप, पूर्वी यूएसए अर्जेंटीना, दक्षिणपूर्व ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में किया जाता है।

व्यावसायिक वृक्षारोपण खेती 

इसे रोपण कृषि भी कहा जाता है यह भी एक व्यवसायिक कृषि के प्रकार हैं। इस प्रकार की खेती को करने के लिए कड़ी मेहनत और पूंजी दोनों की ही जरूरत होती है इसमें चाय, कॉफी, कपास, रबर, काजू, केला और गन्ना आदि अधिक मात्रा में उगाया जाता है। उत्पादों को पास के कारखानों के खेत में ही संसाधित किया जाता है। ये उत्पाद सीधे बिक्री के लिए नहीं जाते हैं। इस खेती के लिए बड़े परिवहन की आवश्यकता होती है क्योंकि इस खेती के उत्पादों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पहुँचाया जाता है।

जैसे-

1. मलेशिया में रबर की खेती

2. भारत में चाय की खेती

3. ब्राजील में कॉफी की खेती

3. घरेलू खेती (domestic farming)

इस खेती में एक ही जमीन में कोई भी सब्जी, फल, फूल और छोटे पेड़ उगाने की क्षमता होती है। घरेलू खेती में टैरेस फार्मिंग, गार्डनिंग शामिल है। इसके लिए छोटी जगह और छोटे औजारों जैसे बगीचे की रेक, प्रूनिंग शीयर आदि की आवश्यकता होती है। इस खेती का उपयोग घर की साज-सज्जा के लिए भी किया जाता है। 

घरेलू खेती के प्रकार

घरेलू खेती दो प्रकार की होती है-

1. कंटेनर खेती

2. खड़ी खेती

कंटेनर खेती

इस खेती का उपयोग तब किया जाता है जब आपके पास बगीचों में सीमित जगह होती है, चाहे वह छोटा यार्ड, आंगन या बालकनी हो। इस खेती में लगभग कोई भी सब्जी, फल और फूल उगाने की क्षमता है।

खड़ी खेती

इसे विंडो गार्डन के रूप में जाना जाता है। यह खेती अधिकांश ऊर्ध्वाधर खेती का उपयोग छोटे पौधों की फसलों और बेल की फसलों के लिए किया जाता है। इसमें घीया, लौकी, टमाटर, मिर्च, धनिया शामिल हैं। पारंपरिक तरीके से बेल की फसलों का उत्पादन कम होता है, बेल की फसलों के लिए खड़ी खेती बहुत उपयोगी होती है।

ये तो थी, भारत में खेती के प्रकार (types of farming in india in hindi) की जानकारी। यदि आप इसी तरह कृषि, मशीनीकरण, सरकारी योजना, बिजनेस आइडिया और ग्रामीण विकास की जानकारी चाहते हैं तो अन्य लेख जरूर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिए शेयर करें।

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