पशु विशेषज्ञ से जानिए, पशुओं में होने वाले संक्रामक रोग, लक्षण और बचाव
संक्रामकों की रोकथाम और बचाव के लिए पशुओं को समय-समय पर टीकाकरण बेहद जरूरी है। आइए जानें- पशुओं में होने वाले संक्रामक रोग के लक्षण और बचाव
Animal diseases: पशुपालकों के लिए पशुओं का बेहतर स्वास्थ्य ही जमापूंजी होती है। अगर पशु स्वस्थ रहेगा तो अच्छा दुग्ध उत्पादन होगा।
लेकिन कभी-कभी पशुपालकों की लापरवाही या मौसम में होने वाले बदलावों के कारण पशुओं का स्वास्थ्य खराब होने लगता है। पशुओं में कई प्रकार के संक्रामक रोग पनपने लगते हैं। हालांकि इनमें से कुछ रोगों का उपचार अच्छे पोषण से और देसी दवाओं से हो जाता है।
लेकिन कुछ संक्रामक रोगों का इलाज बेहद कठिन और मंहगा होता है। इसलिए जरूरी है कि रोग या संक्रमण के पनपने से पहले ही रोकथाम के उपाय कर ली जाए।
संक्रामकों की रोकथाम और उससे बचाव के लिए पशुओं को समय-समय पर टीकाकरण बेहद जरूरी है। पशुओं में प्रतिवर्ष निर्धारित समय पर रोगनिरोधी टीके लगाये जायें तो ये उनके सेहत के लिए बेहतर रहता है और दुग्ध उत्पादन में भी कोई समस्या नहीं होती।
लेकिन सवाल यह है कि अगर किसी कारणवश पशुओं में स्वास्थ्य समस्यायें होने लगें, तो उनकी पहचान कैसे की जाए। आज हम आपको इस लेख बताएंगे पशुओं में होने वाले रोग और उनका इलाज कैसे करें।
पशुओं में होने वाले संक्रामक रोग, उनके लक्षण और बचाव
सबसे पहले स्वस्थ पशु और बीमार पशु के कुछ लक्षण को जान लेते हैं।
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रिंडरपेस्ट या पशु प्लेग (rinderpest or animal plague)
जुगाली करने वाले हर नस्ल के पशु में रिंडरपेस्ट या पशु प्लेग की बीमारी देखी जाती है। इस बीमारी के शुरूआती लक्षणों में पशुओं को तेज बुखार, भूख न लगना, दुग्ध उत्पादन में कमी होना, जीभ के नीचे तथा मसूड़ों पर छालों की समस्या हो जाती है। इस समस्या का सही समय पर इलाज बेहद जरूरी है, नहीं तो पशुओं की आंखे लाल होने लगती है।
इसके अलावा, पशुओं में खूनी दस्त की शिकायत भी हो जाती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए पशुपालकों को समय-समय पर पशु चिकित्सों से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा, विशेषज्ञों की सलाह पर पशुओं का टीकाकरण भी बेहद जरूरी है।
खुरपका-मुहंपका रोग (foot-and-mouth disease)
खुरपका-मुंहपका रोग पशुओं में विषाणुओं के माध्याम से फैलता है। वैसे तो यह रोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर और दूसरे पशुओं में आम है, लेकिन संकर नस्लों की गाय में इस बीमारी की संभावनायें अधिक देखी जाती है।
खुरपका रोग में पशुओं के पैर से लेकर खुर तक छाले और घाव हो जाते हैं। इस रोग से पीड़ित पशु में छाले और लंगड़ाने की समस्या देखी जाती है। वहीं मुंहपका रोग में पशुओं के मुंह में छाले और लगातार लार टपकने की समस्या हो जाती है। कई बार ये बीमारियां पशुओं की जान भी ले सकती है।
इसलिए जरूरी है कि खुरपका-मुहंपका रोग के लक्षण दिखते ही पशु चिकित्सक से संपर्क करें। इसी के साथ हर 6 महीने के अंतराल पर पशुओं को इससे बचाव के टीके जरूर लगवाएं।
चेचक या माता रोग (chickenpox)
गाय और भैंसों में अक्सर चेचक और माता की समस्या देखी जाती है। इस बीमारी के कारण पशुओं द्वारा दूध उत्पादन में तो कमी आती ही है। साथ ही पशुओं और उनके बच्चों की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। यह समस्या एक पशु से दूसरे पशु में फैलती है। अगर समय पर चेचक की रोकथाम न करने पर यह बीमारी हर गांव में पैर पसारने लगती है।
लेकिन अगर समय पर बचाव के इंतजाम हों, तो पशुओं को इसके चंगुल से बचा सकते हैं।
पशु विशेषज्ञों की मानें तो चेचक के खिलाफ साल में एक बार पशुओं में टीकाकारण बेहद जरूरी है। पशुपालक नवम्बर या दिसम्बर माह पशुओं को टीके जरूरी लगवायें।
खुरपका-मुंहपका रोग की तरह पशुओं में चेचक की समस्या भी विषाणुओं से ही फैलती है। इसकी रोकथाम के लिए पशुओं को साफ-सुथरा रखें और उनके खान-पान के साथ-साथ अच्छी देखभाल भी करें।
गलघोंटू रोग (strangler’s diseas)
जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि पशुओं में ज्यादा बीमारियां विषाणुओं के माध्यम से फैलती हैं। यह बीमारी पशुओं में छूत के कारण पैदा होती है।
ग्रामीण भाषा में इस बीमारी को घुड़का, घोटुआ, घुरेखा, गलघोटु आदि नामों से भी जानते हैं। हालांकि यह बीमारी मुख्यरूप से भैंस में देखी जाती है, लेकिन मानसून के मौसम में यह रोग ज्यादातर पशुओं को अपनी चपेट में ले लेता है।
इस रोग का विषाणु मुंह की लार और मल-मूत्र द्वारा दूसरे पशुओं में फैलता है और ज्यादातर मामलों में पशुओं की जान भी चली जाती है। अगर पशुओं के गले व गर्दन की सूजन हो, शरीर गर्म एवं दर्दयुक्त लगे, सूजन से श्वसन अंगों पर दबाव पड़ता हो, तेज बुखार, पेट फूलना, गले में घुटन के कारण सांस रुकने की समस्या या फिर नाक और मुंह से पानी आता हो तो बिना देर किए पशु चिकित्सकों से संपर्क करें।
गलघोंटू रोग से रोकथाम के लिए प्रतिवर्ष मानसून से पहले पशुओं में टीकाकरण किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए नजदीकी पशु चिकित्सालय में जरूर संपर्क करें।
गिल्टी रोग (एंथ्रेक्स) (Gout disease (anthrax)
गिल्टी रोग पशुओं में बैसिलस एंथ्रेक्स नाम जीवाणु से फैलता है। इस बीमारी की चपेट में गाय और भैंसों से लेकर, भेड़ बकरी, घोड़ा आदि पशु संक्रमित हो जाते हैं। हालांकि स्वस्थ पशुओं में भी इस बीमारी का संक्रमण पशु के दाने, चारे, बाल, ऊन, चमड़ा, सांस और चोट के घावों के माध्यम से फैल जाता है।
गिल्टी रोग को ग्रामीण भाषा में जहरी बुखार या बाघी बुखार भी कहते हैं, जिसके कारण पशुओं में रक्तस्राव हो जाता है और कई बार जान भी चली जाती है।
गिल्टी रोग से पीडित पशुओं में तेज बुखार, पशुओं के कराहने और उनमें पैर पटकने की समस्या भी देखी जाती है। इस बीमारी से पिड़ित पशुओं अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर गांव से बाहर खेत में बांधना चाहिए। ऐसी समस्या दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
लंगड़िया रोग (limp disease)
ग्रामीण लोगों की भाषा में लंगडिया रोग को लंगड़ी, सुजका, जहरवाद के नाम से भी जाना जाता है। यह संक्रामक बीमारी ज्यादातर गाय और भैंस में फैलती है। मानसून में बारिश के कारण फैलने वाली इस बीमारी में पशुओं को अचानक तेज बुखार, पैरों में लंगड़ाहट और सूजन, भूख न लगना, कब्ज होना, और दूध का फटना जैसी समस्यायें देखी जाती हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए पशुओं में समय पर टीकाकरण करना बेहद जरूरी है। इसलिए पशुओं और उनके बछड़े तथा बछियों को सर्दियों से 6 महिने पहले ही टीका लगवायें। पशुओं में यह टीका सिर्फ 3 वर्ष की उम्र तक ही लगाया जाता है। इसलिए यह बीमारी बड़े पशुओं में दिखने पर चिकित्सकों से जरूर संपर्क करें।
पशुओं के टीकाकरण पर एक नज़र (A look at animal vaccinations)
किसान भाइयों ये टीके सरकारी अस्पताल में बहुत ही कम दर पर उपलब्ध हैं। इन टीकों के लिए सरकार समय-समय पर टीकाकरण अभियान भी चलाती है, जिसके लिए आप नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करें।
पशुपालन पर एक्सपर्ट की सलाह
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