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सरपंच के कार्य और अधिकार, यहां जानें | sarpanch ke karya aur adhikar

आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में हम आपको ग्राम प्रधान बनने की प्रक्रिया, ग्राम प्रधान की सैलरी, योग्यता और अधिकारों से रूबरू कराएंगे। 

मुखिया, प्रधान जी, सरपंच… इन शब्दों को सुनकर हम-आप हर किसी के दिमाग में एक छवि उभरकर आती है। सिर पर पगड़ी, बड़ी मूंछें और लम्बा-तगड़ा एक दमदार व्यक्तित्व।

गांव का प्रधान (Gram pradhan) होना अपने आप में ही बड़ी बात मानी जाती है। शायद इसीलिए लोग एक बार प्रधान बनकर हटने के सालों बाद तक खुद को इसी पद से जोड़े रखना चाहते हैं। आपने भी सड़कों पर कई गाड़ियों के पीछे पूर्व प्रधान तक लिखे देखा ही होगा।

आखिर ऐसा क्या है इस प्रधानी के पद में, जो अब युवा भी सरपंच (Sarpanch) बनने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। और चुनाव लड़ने में लाखों रुपये तक खर्च कर रहे हैं। 

मध्य प्रदेश की 21 साल की लक्षिका डागर और 21 साल के ही अनिल यादव इसके ताजा उदाहरण हैं। जहां लक्षिका उज्जैन के चिंतामन और सरेखों ग्राम पंचायत में सरपंच चुने गए हैं।

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में हम आपको ग्राम प्रधान बनने की प्रक्रिया, ग्राम प्रधान की सैलरी, योग्यता और अधिकारों से रूबरू कराएंगे। 

जैसा कि आप सभी जानते हैं, इन दिनों ग्राम पंचायत (gram panchayat) में प्रधान की भूमिका बढ़ती जा रही है। आपको बता दें, अलग-अलग राज्यों में पंचायत के प्रधान को भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में पंचायत के प्रधान को ग्राम प्रधान कहा जाता है और मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में इसे सरपंच कहा जाता है। कहीं-कहीं सरपंच को मुखिया (mukhiya) भी कहा जाता है।

पंचायत चुनाव में राजनीतिक दल की नहीं होती भूमिका 

दरअसल, पंचायत चुनाव (panchayt chunav) तीन स्तरीय होता है। पहला स्तर होता ग्राम पंचायत (gram panchayat)। जिसके लिए लोग ग्राम प्रधान का चयन करते हैं। सबसे ज्यादा उम्मीदवारी प्रधान पद के लिए ही की जाती है। ग्राम प्रधान के लिए आम चुनाव होते हैं और गांव की जनता अपना प्रधान चुनती है। इसमें कोई राजनीतिक दल की न तो दावेदारी होती है न ही वह दखल दे सकती है। प्रधान का पद खाली होने पर दोबारा सीधे मतदान के जरिये होता है। अगर  प्रधान का पद 6 महीने से कम समय के लिए खाली हो तो चुनाव नहीं  होगा। 

ग्राम प्रधान का कार्यकाल

ग्राम प्रधान का कार्यकाल 5 साल के लिए होता है। हालांकि पंचायत को 5 साल से पहले भी भंग किया जा सकता है और इस दौरान सरकार को 6 महीने के फिर से चुनाव कराना होता है। ग्राम पंचायत के चुनाव की प्रक्रिया राज्य चुनाव आयोग के द्वारा ही निर्धारित की जाती है और उसी के द्वारा पंचायत का चुनाव कराया जाता है। 

प्रधान का चुनाव लड़ने के लिए योग्यता 

वैसे तो कोई भी सामान्य व्यक्ति ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ सकता है। सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए कोई खास योग्यता नहीं चाहिए। फिर भी प्रधान बनने के लिए व्यक्ति की उम्र कम से कम 21 साल होना जरूरी है। साथ ही वह भारत का नागरिक भी होना चाहिए। हालांकि, इसके अलावा भी सरकार की ओर से कई शर्ते हैं, जिन्हें पूरा करने पर ही व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। इसमें आरक्षण, समितियों का बकाया आदि होना शामिल है।

इसके अलावा सरकार पंचायत चुनाव (Panchayat chunav) के लिए कई और नियम लागू करने के विषय में विचार कर रही है। इसमें शैक्षणिक योग्यता, बच्चों की संख्या, चुनावी खर्चे का ब्यौरा आदि शामिल है।

ग्राम प्रधान की सैलरी (sarpanch ki salary)

बड़ी- बड़ी गाड़ियों में चलने वाले ग्राम प्रधान को देखकर ऐसा ही लगता है, मानों उन्हें इसके लिए कितना वेतन मिलता होगा। मगर आप ये सच्चाई जानकर हैरान होंगे कि आपके गांव के मुखिया को कोई वेतन नहीं मिलता। बल्कि मानदेय के रूप में सिर्फ 5000 रुपये दिए जाते हैं। जोकि इन्हें राज्य की संचित निधि की ओर से प्राप्त होते हैं। किसी-किसी राज्यों में सरपंच की सैलरी 3500 रुपए से अधिक या कम भी है। 

अब आप सोच रहे होंगे कि जब इतने कम रुपयों में महीने का राशन नहीं आता तो प्रधान के इतने ठाठ कैसे होते हैं। दरसअल राज्य सरकार ही गांव में होने वाले विकास के लिए बजट आवंटित करती है। प्रधान इसी बजट से कुछ पैसे बचाने की कोशिश करते हैं। हालांकि इसे सीधे तौर पर भ्र्ष्टाचार कहा जाता है, लेकिन ये तो हम सबको पता ही है कि लगभग कोई भी पद आज ऐसा नहीं है जो भ्रष्ट नहीं है।

पंचायत सदस्य को नहीं मिलता कोई मानदेय

ग्राम पंचायत (gram panchayat) सदस्य, वार्ड पंचों को तो मानदेय भी नहीं मिलता। इससे पता चलता है कि ग्राम प्रधान की सैलरी न के बराबर ही होती है, लेकिन इस पद के लिए चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। जो एक विचारणीय प्रश्न है कि इतनी कम तनख्वाह होने के बाद भी लोगों की उत्सुकता ग्राम प्रधान के प्रति क्यूं बढ़ती जा रही है। 

ग्राम पंचायत में प्रधान की भूमिका (sarpanch ke karya)

आज के माहौल में हम देखते हैं कि ग्राम पंचायत (gram panchayat) प्रधान की भूमिका बढ़ती जा रही है। अगर हम पुराने समय में देखते हैं तो गांव के लोग निर्विरोध ही अपने में से किसी को अपने गांव का प्रधान चुन लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है। अब पंचायत के चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। एक प्रकार से यह अच्छी बात भी है, क्योंकि अनेक लोगों की दावेदारी होने से अधिक योग्य प्रधान मिलने की उम्मीद ज्यादा है। 

मगर एक सोचने का विषय यह भी है कि आखिरकार लोगों की प्रधानी में उत्सुकता क्यों बढ़ रही है। इसका एक कारण हमें यह भी दिखाई देता है कि अब सरकार अपने निर्माण कार्यों को स्थानीय स्तर पर पंचायत के माध्यम से ही संपन्न करवाती है तो सरकार द्वारा दिया गया धन प्रधान के माध्यम से ही खर्च किया जाता है। इस तरह प्रधान के पास वित्तीय शक्तियां काफी बढ़ गई हैं।

अब लोगों को यह लगता है कि एक बार प्रधानी का पद प्राप्त करके काफी लाभ कमाया जा सकता है इसलिए लोग आकर्षित हो रहे हैं, दूसरा कारण प्रधान के पद का पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होना है। पहले प्रधान गांव तक ही सीमित होते थे अब इनकी पहुंच सरकार तक होने लगी है और विभिन्न दल भी इसमें अपनी रुचि दिखाने लगे हैं। इस कारण लोग अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी प्रधान पद के माध्यम से करते हैं और कोशिश करते हैं के प्रधान के पद के माध्यम से अपने राजनीतिक सफर को आगे की तरफ ले जा सकें। 

ग्राम पंचायत के अधिकार (sarpanch ke adhikar)  

आज के समय में ग्राम पंचायत (gram panchayat) के पास कई अधिकार हैं। गांव से संबंधित अधिकतर कार्यों के लिए ग्राम पंचायत को ही जिम्मेदारी सौंपी की गई है। ग्राम पंचायत के पास सार्वजनिक सड़क और अन्य मामलों के संबंध में कई अधिकार हैं। ग्राम पंचायत नए पुलों, तालाब, कुओं, पुलियों का निर्माण कर सकती है। किसी सार्वजनिक सड़क, पुलिया या पुल का रास्ता बदल सकती है, उसे बंद कर सकती है या खत्म कर सकती है। ग्राम पंचायत लघु सिंचाई योजनाएं शुरू कर सकती है। सार्वजनिक सड़क पर निकली हुई झाड़ी या वृक्ष की डाल को काट सकती है. शौचालय, मूत्रालय, नाली, नलकूप या गंदगी करने वाले, गंदे पानी या कूड़ा-करकट के स्थानों को बंद कराने, बदलने, मरम्मत करने, साफ करने, उसे अच्छी हालत में बनाने का अधिकार पंचायत के पास है। 

धन से सम्बंधित फैसला अकेले नहीं कर सकता सरपंच 

भले सरपंच के पास पूरे गांव के विकास के लिए अधिकार हों, मगर सरकार ने सरपंच के ऊपर पर भी कुछ अंकुश लगा रखे हैं। इसमें एक नियम ये भी है कि वह धन से सम्बंधित फैसला अकेले नहीं ले सकता। इसके लिए सचिव प्रशासनिक पदाधिकारी और सरपंच का संयुक्त खाता होता है। जब भी कोई कार्य कराने के लिए धन की आवश्यकता होती है, तो दोनों के ही हस्ताक्षर करने के बाद धनराशि खाते से निकली जा सकती है। दोनों में से कोई भी अकेले पैसों की निकासी नहीं कर सकते हैं। इस तरीके से दोनों लोगों पर एक प्रकार का अंकुश लगाया गया है, जिससे कोई भी अपनी मनमर्जी से पैसों को खर्च ना कर सके।

भारत में पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास 

भारत में पंचायती राज्य शब्द का अर्थ है, ग्रामीण स्थानीय स्वशासन से है। भारत में पंचायती राज का विकास एक क्रमबद्ध प्रक्रिया से होता है। सरकार ने पंचायती राज के विकास के लिए सबसे पहले बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया था। इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता को बनाया गया था। इस समिति ने नवंबर 1957 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की योजना की सिफारिश की जो कि  पंचायती राज के रूप में जाना गया। इस समिति की प्रमुख सिफारिश तीन स्तरीय पंचायती राज पद्धति की स्थापना करनी थी। गांव के स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद समिति। इन सिफारिशों को सरकार द्वारा मान लिया गया। राजस्थान देश का पहला राज्य था जहां पंचायती राज की स्थापना हुई।

1992 का 73 वां संविधान संशोधन अधिनियम पंचायती राज से जुड़ा हुआ है। इस अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया खंड 9 शामिल किया। इस अधिनियम ने संविधान के 40वें अनुच्छेद को एक व्यवाहारिक रूप दिया, जिसमें कहा गया है कि ग्राम पंचायतों को गठित करने के लिए राज्य कदम उठाएगा और उन्हें जरूरी शक्तियों और अधिकार प्रदान करेगा।

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