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बकरियों में होने वाली 5 प्रमुख बीमारियां, जानें इसके लक्षण और बचाव

बकरी पालन में कई तरह की बीमारियां आती हैं। इसके लिए बकरी पालकों को विशेष ध्यान रखना चाहिए। सही समय पर टीकारण से आप बीमारियां कम सकते हैं।

बकरियों में होने वाली 5 प्रमुख बीमारियां, यहां जानें इसके लक्षण और बचाव के उपाय

5 major diseases in goats in india in hindi: छोटे और सीमांत किसानों के लिए बकरी पालन (goat farming) जीविकोपार्जन का एक प्रमुख जरिया है। बकरी पालन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि बकरियों को अच्छा आहार मिले और स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं न हों।

यद्यपि बकरियों को कई तरह की बीमारियां होती हैं। इसके लिए बकरी पालकों को उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए। अधिक बीमारियां होने से कई बार उनकी मृत्यु तक हो जाती है। इससे उन्होंने काफी नुकसान होता है।

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस लेख में बकरियों में होने वाली 5 बीमारियों के लक्षण, उपचार (5 Major diseases in goats in india in hindi) को जानते हैं। 

1.खुरपका-मुँहपका रोग

यह बकरियों में तेजी से फैलने वाली बीमारी है। इस रोग के विषाणु आपसी स्पर्श और वायु द्वारा फैलते हैं। इस बीमारी से बकरियों की मृत्यु भी हो सकती है। 

खुरपका-मुँहपका रोग के लक्षण 

  • मुँह तथा खुरों के मध्य छाले बनना।
  • लँगड़ा कर चलना। 
  • भोजन न करना। 
  • तेज बुखार एवं गर्भपात हो जाना। 
  • पशु की वृद्धि दर कम हो जाना।

बचाव 

  • बकरी के मुँह में फिटकरी तथा खुरों पर नीले थोथे का घोल बनाकर लगा सकते हैं। 
  • प्रत्येक छः महीने बाद इसका टीका लगवाएं। 
  • टीकाकरण ही इस बीमारी का प्रमुख बचाव है। 

2. फड़कियां (एन्टेरोटॉक्सीमिअ) रोग

यह जीवाणु जनित रोग हैै। इसके रोगाणु मृदा एवं पशु की ग्रास नली में अपनी प्राकृतिक अवस्था में पाये जाते हैं। इस बीमारी की चपेट में आई बकरी की मृत्यु चरते समय मौके पर या 36 घन्टों के दौरान हो सकती है।

लक्षण 

  • बकरियां खाना-पीना छोड़ देती हैं। 
  • उन्हें चक्कर आना।
  • खूनी दस्त होना। 
  • पशु चारे में परिवर्तन या अत्यधिक मात्रा में भोजन ग्रहण ना करना। 

फड़कियां (एन्टेरोटॉक्सीमिअ) रोग से बचाव 

  • बकरी को आधे कप पानी में लाल दवा के 1 या 2 दाने घोलकर पिला दें। 
  • गर्भवती बकरी व भेड़ (गर्भधारण का अन्तिम महीना) तथा 3 महीने से ऊपर के बच्चों का टीकाकरण करके इस बीमारी से बचा जा सकता है।
  • यह उपचार करने के उपरांत पशु एक सप्ताह में ठीक हो जाता है। 

3. चेचक 

यह एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग में पशु के शरीर पर छाले होने लगते हैं। यह छाले पकने के बाद झड़ जाते हैं तथा उनके निशान बन जाते हैं। इस रोग से ग्रसित पशु की मृत्यु नहीं होती है। फिर भी पशु खुजली के कारण काफी परेशान हो जाता है और चिड़-चिड़ा हो जाता है।

लक्षण 

  • पशु के मुँह, नाक, थन तथा पिछली टांगों के मध्य छाले होना। 
  • पशु को बहुत खुजली होना।

बचाव 

  • सही वक्त पर टीकाकरण करवाना ही इसका एकमात्र बचाव है। 

4. प्लेग 

यह भी एक विषाणु जनित बीमारी है। यह बीमारी बकरी में तेजी से फैलती है। इससे 4 से 12 महीने के बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। इस बीमारी में बुखार आने के 3 से 4 दिन बाद दस्त शुरू होने लगते हैं और उसके बाद पशु एक सप्ताह के दौरान मर जाता है। 

लक्षण 

  • पशु को तेज बुखार आना। 
  • बुखार के 3-4 दिन बाद दस्त हो जाना। 
  • पशु को सांस लेने में तकलीफ होना।
  • पशु को भूख ना लगाना। 
  • आँख व नाक से स्त्राव निकलना। 

बचाव 

इस बीमारी के लिए टीकाकरण ही एकमात्र बचाव है, जो कि प्रत्येक 3 वर्ष में एक बार लगाया जाता है। 

5. निमाेनिया 

ठंड व नमी में रहने के कारण निमोनिया बीमारी हो जाती है। बीमारी ज्यादा बढ़ने के कारण उनकी मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग बारिश से भीगे पशुओं में मुख्यतः देखा जाता है। 

लक्षण 

  • सांस लेने में कठिनाई होना। 
  • खाँसी, मुंह व नाक से स्त्राव आना। 
  • खाना पीना बंद कर देना। 

बचाव 

इस बीमारी में तारपीन के तेल की भाप देने से पशु काे आराम मिलता है। 

बकरी पालक पशुओं काे नमी व ठंड से बचाएं।

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