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Jhoom Kheti: झूम खेती किसे कहते है, यहां जानें

झूम खेती (Jhoom Kheti) के पारंपरिक तरीके में पहले पेड़ और वनस्पतियों को काटकर उनको जला दिया जाता है। फिर उस जगह की साफ करके खेती की जाती है।

Jhoom Kheti: विश्वभर में खेती के कई पारंपरिक और आधुनिक तरीके हैं। इन्हीं तरीकों में झूम खेती प्रमुख है। इस प्रकार की खेती प्रायः पहाड़ी इलाकों में की जाती है। आपको बता दें, आज भी पूर्वोत्तर भारत में इस प्रकार की खेती की जाती है।

आज हम इस ब्लॉग में झूम खेती (Jhoom Kheti) के बारे में बता रहे हैं। 

तो आइए, सबसे पहले जानें झूम खेती किसे कहते हैं (Jhoom Kheti Kise Kehte Hai)। 

झूम खेती (Jhoom Kheti) के पारंपरिक तरीके में पहले पेड़ों और वनस्पतियों को काटकर उनको जला दिया जाता है और साफ की गई जमीन की जुताई करके खेती की जाती है। लगभग 2-3 वर्षों तक मिट्टी के उपजाऊ रहने तक वहां खेती की जाती है। उसके बाद उसे खाली छोड़ दिया जाता है। वहां दोबारा पेड़-पौधे उग आते हैं। 

झूम खेती में उगाई जाने वाली फसलें झूम खेती (Jhoom Kheti) के अंतर्गत लगभग सभी प्रकार की फसलों की खेती की जा सकती है। जिनमें मक्का, मिर्च, सब्जियों की फसल मुख्य है। इस विधि में ज्यादातर सब्जी और कम अवधि वाली फसलों की खेती की जाती है। 

झूम खेती के फायदे (advantages of jhum cultivation)

इस विधि से खेती करने से मिट्टी की भौतिक स्थितियों में सुधार होता है। फसलों की जड़ वृद्धि होने से मिट्टी के पोषक तत्वों और नमी तक जड़ की पहुंच में सुधार करने और रोपण की गुणवत्ता में सुधार होता है। 

झूम खेती के नुकसान (Disadvantages of jhum cultivation)

पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। झूम खेती के हानिकारक प्रभावों में मिट्टी की उर्वरता में कमी, मिट्टी का कटाव, वनों की कटाई, वन्यजीवों के आवास का विनाश और नदियों और झीलों में बाढ़ शामिल है। नतीजतन, उत्पादन इतना कम हो जाता है कि एक झुमिया परिवार एक जगह जीवित नहीं रह सकता।

ये तो थी, झूम खेती (Jhoom Kheti) की बात। ऐसे ही कृषि, ग्रामीण विकास और बिजनेस आइडिया के महत्वपूर्ण ब्लॉग पढ़ने के लिए द रूरल इंडिया वेबसाइट विजिट करें।

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