पशुपालन

Bhed palan: भेड़ पालन कैसे करें, यहां जानें

किसानों की आय बढ़ाने के लिए भेड़ पालन (bhed palan) एक बेहतर विकल्प है। भेड़ पालन के लिए भारत की जलवायु काफी उपयुक्त है।

Bhed palan: किसानों की आय बढ़ाने के लिए भेड़ पालन (bhed palan) एक बेहतर विकल्प है। भेड़ पालन के लिए भारत की जलवायु काफी उपयुक्त है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह बहुत लाभकारी व्यवसाय है। भेड़ पालन (bhed palan) से किसान कम लागत में भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

भेड़ पालन (Sheep farming) पर एक नज़र 

Sheep farming : भेड़ पालन

तो आइए इस ब्लॉग में भेड़ पालन (Sheep farming) को करीब से जानते हैं। 

यहां आप जानेंगे

  1. भेड़ पालन के लिए उपयुक्त जलवायु
  2. भेड़ों की उन्नत नस्लें
  3. भेड़ पालन (Sheep farming) का तरीका
  4. भेड़ पालन (bhed palan) के फायदे
  5. आहार और आवास प्रबंधन
  6. रोग प्रबंधन संबंधित जानकारी
  7. भेड़-पालन में ध्यान रखने योग्य कुछ खास बातें
  8. भेड़ पालन में लागत और कमाई
  9. भेड़ पालन (bhed palan) पर एक्सपर्ट की सलाह

भेड़ पालन के लिए उपयुक्त जलवायु

भेड़ हर तरह की जलवायु में पाला जा सकता है। लेकिन अधिक गर्म इलाके में भेड़ पालन (bhed palan) से बचना चाहिए। पहाड़ी और पठारी इलाकों की जलवायु भेड़ पालन के लिए काफी उपयुक्त होता है।

भेड़ पालन के लिए उन्नत नस्लें

हमारे देश में करीब 50 तरह की नस्लें पाई जाती हैं। इनमें 14 नस्लें उन्नत किस्म हैं।  

मालपुरा

राजस्थान की यह नस्ल लंबे पैरों और दिखने में बहुत ही खुबसुरत होती है। इनसे 6 महीने में 500 ग्राम ऊन मिल जाता है। सालभर में इनका वजन 26 किलो तक पहुंच जाता है। 

चोकला 

चोकला भी राजस्थान की नस्ल है। यह सबसे बेहतर किस्म के कारपेट ऊन देने के लिए ही जानी जाती है। सालभर में इसका वजन भी 24 किलो तक हो जाता है। ऊन और मीट दोनों उद्देश्यों से इसका व्यवसाय किया जाता है।

मेचेरी

तमिलनाडु के कोयम्बटूर इलाके में पाई जाती है। इसके बाल छोटे होते हैं, लेकिन इसकी चमड़ी बहुत उच्च स्तर की होती है। इसकी चमड़ी बहुत महंगे दामों में बिकती है।

मारवाड़ी

राजस्थान की यह नस्ल गुजरात के भी कुछ शुष्क इलाकों में मिलती है। हर 6 महीने में इनसे 650 ग्राम तक ऊन मिल जाता है। इस नस्ल के मेमने सालभर में 26 किलो तक वजनी हो जाते हैं।

मुजफ्फरनगरी

मुख्यतः उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की यह नस्ल यूपी, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड में पाई जाती है। हर 6 महीने में 600 ग्राम तक ऊन देती हैं। यह 32 किलो वजन तक की होती हैं। ऊन और मांस उत्पादन दोनों के लिए इनका पालन किया जाता है। 

पाटनवाड़ी

इसे देसी, कुटची, वधियारी और चारोतरी भी कहते हैं। हर 6 महीने में इससे 600 ग्राम तक ऊन मिल जाता है। यह 25 किलो तक वजनी हो जाती हैं।

डेक्कनी

महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। स्थानीय भाषा में इसे सोलापुरी, कोलापुरी, संगामनरी और लोनंद कहा जाता है। पतले गले और सीने वाली यह भेड़ काले रंग की होती है। मुख्यतः मांस उत्पादन के लिए इनका व्यवसाय किया जाता है।

नेल्लौरी

आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले और उसके आसपास पाई जाती है। लंबे कद वाली यह नस्ल 3 वैरायटी में मिलती है- पल्ला, जोडिपी, डोरा। जन्म के वक्त मेमने का वजन 3 किलो होता है, एक साल में यह 27 किलो तक की हो जाती है।

गद्दी

भेड़ों की यह नस्ल जम्मू, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पाई जाती है। हर 6 महीने में 450 ग्राम तक ऊन मिलता है। सालभर में इसके मेमने 17 किलो वजनी हो जाते हैं।

नीलगिरी

तमिलनाडु में पाई जाती है। मीडियम साइज वाली यह भेड़ें सफेद रंग की होती है। कुछ में भूरे धब्बे भी होते हैं। ऊन के लिए इसका पालन किया जाता है। इसका ऊन की लंबाई 5 सेमी तक होती है। हर 6 महीने में इससे आधा किलो ऊन मिलता है।

कोयम्बटूर

तमिलनाडु के कोयम्बटूर और इससे सटे इलाकों की जलवायु इस नस्ल के लिए बेहतर होती है। हर 6 महीने में 400 ग्राम तक ऊन देती है। इसके ऊन का व्यास 41 माइक्रोन तक होता है।

बेल्लारी

कर्नाटक के बेल्लारी में पाई जाती है। एक साल की होने तक वजन 19 किलो होता है। हर 6 महीने में 300 ग्राम ऊन मिलता है। ऊन का व्यास 60 माइक्रोन तक होता है।

बोनपाला

यह नस्ल दक्षिणी तिब्बत की है। ऊंचे लंबे कद की यह नस्ल सफेद से लेकर काले तक कई तरह की टोन में मिलती है। यह पूरी तरह बालों से ढक जाती है। इससे हर 6 महीने में 500 ग्राम से ज्यादा ऊन मिलता है।

छोटानागपुरी

यह नस्ल झारखंड में मिलती है। कम वजनी यह जानवर हल्के ग्रे और भूरे रंग के होते हैं। पूंछ पतली और छोटी होती है। ऊन खुरदुरा होता है।

भेड़ पालन के फायदे

भेड़ पालन (bhed palan) का तरीका 

20वीं सदी के आखिरी तक गरीब और सीमित आय वाले परिवारों के लिए भेड़ पालन आजीविका का एक प्रमुख साधन था। इसे अब 21वीं सदी में देश के संपन्न किसान परिवार और युवा भी इस व्यवसाय को अपना रहे हैं। कारण सिर्फ एक ही है- कम लागत, ज्यादा मुनाफा। 

महज एक लाख के निवेश में आप भेड़ पालन (bhed palan) शुरू कर सकते हैं। भेड़ की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी नस्ल क्या है और वह कितने महीने की है। आमतौर पर यह 3 से 8 हजार के बीच में हो सकती है। 

अगर किसी किसान को भेड़ पालन व्यवसाय (bhed palan business) की शुरुआत करना है तो आप 20 मादा भेड़ और एक नर भेड़ (मेंढे) यानी 20+1 फार्मूला के साथ इस व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं। महज 1 लाख रुपए में आपकी यह खरीददारी हो जाएगी। इनके लिए 500 स्क्वैयर फीट का बाड़ा पर्याप्त है। बस यह थोड़ा खुला-खुला होना चाहिए। यह बाड़ा आप 30 से 40 हजार के अंदर तैयार कर सकते हैं। 

आहार और आवास प्रबंधन

इनके रखरखाव और खान-पान में बहुत कम खर्च है। खेतों, पहाड़ियों या कम उपजाऊ इलाको में उगने वाला चारा ही इनके लिए पर्याप्त होता है। गाय या भैंस की तरह इनके लिए अलग से खली या पशुआहार की जरूरत नहीं होती। आप खेतों में उगी ज्वार, मक्का व फली इन्हें काटकर खिला सकते हैं। कुछ खनिज लवणों का मिक्सचर भी इन्हें जरुर खिलाएं। 

भेड़ों में लगने वाले रोग

भेड़ों को किसी तरह के रोग होने पर भी खर्चा ज्यादा नहीं होता। संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए आप इन्हें भेड़ पालन के सरकारी संस्थानों (हर राज्यों में भेड़ पालन (bhed palan) से जुड़े विभाग और सरकारी संस्थान होते हैं) से टीके लगवा सकते हैं, जो महज 1 या 2 रुपए मात्र में लगते हैं। रोग लगने पर इन्हीं सरकारी संस्थानों से बेहद कम कीमत पर किसान दवाईयां भी खरीद सकते हैं। 

भेड़ पालन में लागत और मुनाफा

एक भेड़ 9 महीने में ही पूरी तरह वयस्क हो जाता है। आमतौर पर किसान 2 से 3 महीने की भेड़ों को खरीदते हैं। 6 महीने के रखरखाव के बाद ही ये रिटर्न देना शुरू कर देते हैं। 

भेड़ों को मुख्यतः 2 मकसद से पाला जाता है।

  1. ऊन 
  2. और मीट 

एक भेड़ से एक बार में 500 ग्राम से 800 ग्राम तक ऊन मिलता है। सालभर में 2 बार ऊन काट सकते हैं। यह ऊन करीब 30 रुपए किलो तक बिक जाता है। हालांकि ऊन से ज्यादा आप इसके मीट(मांस) बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

अगर आप 3 महीने की भेड़ खरीद रहे हैं तो अगले 6 महीने में उसका वजन 25 किलो तक हो जाता है। इसमें से 40-50% हिस्सा अच्छा मीट होता है। BAHS की एक रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन एक भेड़ से 9 किलो तक अच्छा मीट हासिल किया जा सकता है। कुछ भेड़ 50 किलो तक भी वजनी हो जाते हैं। इन्हें फीडर लैम कहा जाता है।

इनसे 15 से 20 किलो तक मीट हासिल हो सकता है। इस तरह से 3 हजार में खरीदे गए एक मेमने को आप 6 महीने बाद ही 8-10 हजार तक में बेच कर लागत जितना ही मुनाफा कमा सकते हैं। 

दूध, चमड़ा और खाद भी कमाई के अन्य स्रोत

भेड़ों का दूध भी बेहद पौष्टिक होता है। इसमें गाय के दूध से ज्यादा विटामिन A, B और E, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम और मैग्नियम होता है। अन्य पशुओं के दूध के मुकाबले इसमें कैंसर से लड़ने वाले तत्व CLA की मात्रा भी ज्यादा होती है। इसके दूध का 25% तक चीज बनाया जा सकता है जबकि बकरी और गाय के दूध से 10% तक चीज बनता है। विश्व में चीज का 1.3% हिस्सा भेड़ों के दूध से ही बनता है। हालांकि भारत में व्यवसाय की दृष्टि से यह इतना कारगर साबित नहीं हुआ है, जबकि यूरोप में भेड़ के दूध से योगर्ट, आइसक्रिम और चीज बनाने की व्यवसायिक फैक्ट्रियां होती हैं।

भेड़ों की स्किन और खाद का भी बाजार बहुत अच्छा है। लेदर कंपनियां भेड़ों की स्किन से कई तरह के प्रोडक्ट बनाती हैं। भेड़ें रात-दिन जो अपशिष्ट पदार्थ निकालती है, वह फसलों के लिए एक अच्छा खाद होता है। इस खाद की अच्छी कीमत मिल जाती है।

भेड़ पालन में ध्यान रखने योग्य कुछ खास बातें

  • अगर भेड़ों को खुजली की शिकायत है, तो उन्हें खरीदने से बचें। उनके प्रजनन क्षमता की खास पड़ताल और पूछताछ कर लें।
  • भेड़ों के बाढ़े में वेंटिलेशन होना चाहिए, रोजाना 6 घंटे उन्हें चरने देना चाहिए।
  • इलाके में पाई जाने वाली संक्रामक बीमारियों के टीके पहले से ही लगवा लें।
  • सुखे चारे और हरी घास के साथ-साथ इन्हें कभी-कभी रोपण फसलें जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा और मुंगफली भी खिलाते रहना चाहिए।
  • भेड़ आम तौर पर नौ महीने की आयु में पूर्ण वयस्क हो जाती है लेकिन इनसे स्वस्थ मेमने लेने के लिए यह जरूरी है कि उसे एक साल का होने के बाद ही गर्भधारण कराया जाए।
  • भेड़ 17 दिन के बाद 30 घंटे के लिये गर्मी में आती है। गर्मी के अंतिम समय में मेंढे से सम्पर्क करवाने पर गर्भधारण की अच्छी सम्भावनाएं होती हैं।
  • गर्भावस्था और उसके बाद जब तक मेमने दूध पीते हैं, तब तक भेड़ के पालन पोषण पर अधिक ध्यान देना चाहिये। 
  • इन्हें संतुलित और पोष्टिक आहार अन्य भेड़ों की तुलना में ज्यादा देना चाहिए। वहीं प्रजनन के पहले आहार में दाने की मात्रा बढ़ा देना चाहिए।

रोग प्रबंधन

भारत में 80% भेड़ों की मौत भूखमरी, संतुलित आहार न मिलने, जलवायु से तालमेल न बैठा पाने, प्रजनन के दौरान, किसी अन्य जानवर का शिकार होने और निमोनिया, एसिडोसिस जैसी असंक्रामक बीमारियों से होती है। इनसे बचाने का सीधा उपाय यही है कि इलाके की जलवायु को सहन करने वाली भेड़ की नस्ल का ही पालन किया जाए और उसके खान-पान और रखरखाव का ध्यान रखा जाए।

भेड़ों में ब्लू टंग, ईटी, पीपीआर जैसी कुछ खतरनाक संक्रामक बीमारियां भी होती हैं। समय पर वैक्सीन लगवाना ही इनसे बचने का अच्छा उपाय होता है।

सूखे चरागाहों पर चरने वाले युवा भेड़ों में विटामिन्स और खनिजों की भारी कमी हो जाती है। इस कारण वे कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं। जैसे- कॉपर और कोबाल्ट खनिजों की कमी के कारण एनिमिया और डायरिया जैसे रोग हो जाते हैं। कैल्शियम-फास्फोरस और विटामिन-डी की कमी के चलते मेमनों में सुखा रोग और वयस्क भेड़ों में ओस्थियोमलेसिया रोग हो जाते हैं। वहीं विटामिन-ए न मिल पाने के कारण रतौंधी, खुर दोष, वजन कम होना, बांझपन जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए भेड़ों को हरे चरागाह पर नियमित रूप से चराना चाहिए और सभी तरह के खनिजों और विटामिंस से भरपूर खान-पान का ध्यान रखना चाहिए।

कुछ और भी रोग हैं। जैसे- कंजेटियस एकथाईमा, एंथ्रेक्स, ब्रूसीलोसिस, फुट रोट, गल घोटूं, एंटीरोटोक्सिमिया, टेप वर्म, चर्म रोग आदि। अलग-अलग लक्षणों वाले हर रोग की सही पहचान और सही इलाज समय से कर लेना चाहिए।

भेड़ पालन के लिए सरकारी योजनाएं और अनुदान

भेड़ पालन (bhed palan) को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारें समय-समय पर योजनाएं चलाती रहती है। भेड़ पालन (Sheep farming) के लिए सरकार किसानों को प्रशिक्षण भी देती है। इसके लिए अपने नजदीकी पशुपालन विभाग या जिला कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें।

किसान भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़ी जरूरी जानकारियां और सरकारी योजनाओं के बारे में जानने के लिए अपने-अपने राज्यों में स्थित इन सरकारी संस्थानों में संपर्क कर सकते हैं।

भेड़ पालन पर एक्सपर्ट की सलाह

भेड़ पालन पर एक्सपर्ट की सलाह

ये तो थी भेड़ पालन (bhed palan) की बात। लेकिन, The Rural India पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजना और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इन्हें पढ़ने के लिए शेयर कर सकते हैं।

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