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Haldi ki kheti: हल्दी की खेती से किसान होंगे वेल्दी, जानें कैसे

हल्दी के गुणों और बाजार में लगातार बनी हुई मांग के कारण हल्दी की खेती (haldi ki kheti) हमेशा से ही लाभदायक रही है।

haldi ki kheti: हल्दी (Turmeric) हमारे दैनिक भोजन का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। भारत में लगभग सभी प्रकार के भोजन में प्रयोग होने वाला हल्दी प्राचीन काल से ही अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है।

हल्दी के गुणों और बाजार में लगातार बनी हुई मांग के कारण हल्दी की खेती (haldi ki kheti) हमेशा से ही लाभदायक रही है। हल्दी की खेती (Haldi Farming) से प्रति एकड़ लगभग 100 से 150 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में जानें- हल्दी की खेती (haldi ki kheti) की संपूर्ण जानकारी।

तो आइए, सबसे पहले हल्दी के औषधीय गुणों पर एक नज़र डाल लेते हैं। 

हल्दी की खेती की संपूर्ण जानकारी

हल्दी के औषधीय गुण

  • हल्दी को एंटीसेप्टिक के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह घाव में होने वाले संक्रमण के फैलने से रोकता है।
  • इसका कार्डियो प्रोटेक्टिव गुण हृदय को सुरक्षित रखता है।
  • इसमें कैंसर से बचाव के गुण पाए जाते हैं।
  • यह किडनी और लीवर को भी कई खतरों से बचाने के लिए जाना जाता है।

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

भारत पूरी दुनिया में हल्दी (turmeric) का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मेघालय और असम में हल्दी की खेती (haldi farming) खूब होती है। 

हल्दी एक उष्णकटिबंधीय जलवायु में खेती की जाने वाली फसल है। अच्छी बारिश वाले गर्म और आर्द्र क्षेत्र इसके उत्पादन के लिए उपयुक्त होते हैं। 

हल्दी की खेती (haldi ki kheti) सभी प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता है। इसकी खेती के लिए अधिक जीवांश वाली दोमट, जलोढ़ और लैटेराइट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पी.एच. मान 5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए।

किसान इस बात का ध्यान रखें कि खेतों में जल जमाव नहीं हो। हल्दी की बुआई अप्रैल से जुलाई के महीने में करने से फसल अच्छी होती है।

बीज की मात्रा और बीज उपचार

  • केवल हल्दी की खेती (haldi farming) करने के लिए 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से बीज की आवश्यकता होती है।
  • मिश्रित फसल में 4 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ बीज पर्याप्त होते हैं।
  • बुआई के लिए 7 से 8 सेंटीमीटर लंबाई वाले कंद का चुनाव करें। कंद पर कम से कम दो आंखे होनी चाहिए।
  • प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम थीरम या मैंकोजेब मिलाकर घोल तैयार करें। इस घोल में कंद को 30 से 35 मिनट तक भिगोकर रखें।
  • बीज उपचार के बाद कंद को छांव में सूखा कर ही बुआई करें।

हल्दी की बुआई की विधि (Method of sowing turmeric)

  • खेत तैयार करने के लिए 2 बार मिट्टी पलटने वाले हल से और 3 से 4 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें।
  • हल्दी की बुआई समतल खेत और मेड़ दोनों ही प्रकार से की जा सकती है।
  • सभी पक्तियों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें।
  • कंद के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें।
  • कंंद की बुआई 5 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर करें।

हल्दी की फसल में निराई-गुड़ाई (weeding in turmeric crop)

  • हल्दी की फसल (haldi ki phasal) में 3 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
  • हल्दी में पहली निराई-गुड़ाई 35 से 40 दिन के अंतराल पर करें।
  • दूसरी निराई-गुड़ाई  60 से 70 दिनों के बाद करनी चाहिए।
  • तीसरी निराई-गुड़ाई 90 से 100 दिनों के बाद करें।
  • निराई-गुड़ाई के समय पर जड़ों में मिट्टी अवश्य चढ़ाएं।

हल्दी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Turmeric Crop)

  • हल्दी की फसल में हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • गर्मी के मौसम में 7 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें।
  • ठंड के मौसम 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें।
  • वर्षा के मौसम में केवल जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें।
  • खेत में जल निकासी की व्यवस्था रखें।

हल्दी की प्रमुख किस्में (Major Varieties of Turmeric)

भारत में करीब 30 किस्मों की हल्दी की खेती (haldi ki kheti) की जाती है। इनमें लकाडोंग,  अल्लेप्पी, मद्रास, इरोड और सांगली प्रमुख किस्में हैं। 

  • लकाडोंग हल्दी : लाकाडोंग गांव की प्राचीन पहाड़ियों पाए जाने के कारण इस किस्म का नाम लकाडोंग हल्दी रखा गया। इस किस्म में करक्यूमिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसे विश्व की सबसे बेहतरीन किस्मों में शामिल किया गया है। इसके सेवन से कई रोगों में राहत मिलती है।
  • अल्लेप्पी हल्दी : यह किस्म दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में सबसे ज्यादा खेती की जाने वाली हल्दी की किस्मों में शामिल है। इस किस्म की गांठों में करीब 5 प्रतिशत करक्यूमिन की मात्रा पाई जाती है। इस किस्म की हल्दी से कई तरह की दवाएं तैयार की जाती हैं।
  • मद्रास हल्दी : दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में मद्रास हल्दी की खेती प्रमुखता से की जाती है। इसके कंदों का रंग हल्का पीला होता है। इस किस्म में करीब 3.5 प्रतिशत करक्यूमिन की मात्रा पाई जाती है।
  • इरोड हल्दी : 8 वर्षों के लम्बे प्रयास के बाद वर्ष 2019 में इस किस्म को जीआई टैग प्राप्त हुआ। इरोड हल्दी की गांठें चमकीले पीले रंग की होती हैं। इस किस्म में 2 से 4 प्रतिशत करक्यूमिन की मात्रा पाई जाती है।
  • सांगली हल्दी : यह जीआई टैग वाली हल्दी की किस्म है। महाराष्ट्र में इस किस्म की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। महाराष्ट्र में हल्दी के कुल उत्पादन का करीब 70 प्रतिशत सांगली हल्दी का होता है। इस किस्म में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं।

हल्दी की फसल में उर्वरक प्रबंधन

उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग बहुत जरूरी है। हल्दी की बेहतर फसल के लिए आप प्रति एकड़ जमीन में 8 से 10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद मिला सकते हैं। खेत की जुताई से पहले खेत में गोबर खाद मिला देना चाहिए। आप गोबर खाद की जगह कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

प्रति एकड़ जमीन में 40 से 48 किलोग्राम नत्रजन का छिड़काव करना चाहिए। खेत की आखिरी जुताई के समय 40 से 48 किलोग्राम नत्रजन की आधी मात्रा मिला कर जुताई करें। बचे हुए नत्रजन (करीब 20 से 24 किलोग्राम) को दो भागों में बांट लें। इसमें से 10 से 12 किलोग्राम नत्रजन को बुआई के 40 से 60 दिनों बाद खेत में डालें। 

नत्रजन के दूसरे भाग को बुआई के 80 से 100 दिन बाद खेत में मिला कर मिट्टी चढ़ाएं। प्रति एकड़ खेत में करीब 24 से 32 किलोग्राम स्फुर और 32 से 40 किलोग्राम पोटाश की भी आवश्यकता होती है। हल्दी की खेती के लिए पोटाश बहुत जरूरी है। इसके प्रयोग से हल्दी की गुणवत्ता और पैदावार में बढ़ोतरी होती है।

हल्दी की फसल में खरपतवार नियंत्रण एवं सिंचाई प्रबंधन

खरपतवार किसी भी फसल की पैदावार और उसकी गुणवत्ता को कम कर सकती है। खरपतवार हल्दी की फसल को भी बहुत नुकसान पहुंचाती है। खरपतवार पर नियंत्रण के लिए इस पोस्ट में दिए गए उपायों को अपना कर हल्दी की उपज बढ़ा सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

  • हल्दी की फसल में निराई – गुड़ाई के द्वारा खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। आमतौर पर 3 से 4 बार निराई – गुड़ाई करनी चाहिए।
  • बुआई के लगभग 30 दिन बाद पहली निराई – गुड़ाई करें। बुआई के करीब 60 दिनों बाद दूसरी और 90 दिनों बाद तीसरी निराई – गुड़ाई करना आवश्यक है।
  • खेत में पलवार बिछा लें। इससे खरपतवार पर काफी हद तक नियंत्रण होता है।
  • प्रति एकड़ भूमि में करीब 600 ग्राम फ्लुक्लोरालिन के छिड़काव से हम चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारों पर पूरी तरह नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं।

सिंचाई प्रबंधन

  • हल्दी की फसल में कुल 15 से 25 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • हल्दी की फसल की सिंचाई खेत की मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करती है। चिकनी दोमट या मटियार मिट्टी में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है।
  • वर्षा के मौसम में जरुरत होने पर करीब 10 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है।
  • मिट्टी में नमी की कमी न होने दें। गर्मी के मौसम में 7 दिन के अंतराल पर और ठंड के मौसम में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

हल्दी में लगने वाले कीट और उसका निदान

  • कंद मक्खी : यह मक्खियां हल्दी के विकसित होने के समय उसे खा कर बरबाद कर देती हैं। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 किलो फोरट 10 जी के दानों का प्रयोग कर के इनसे निजात पाया जा सकता है।
  • तना भेदक : इस कीट से हल्दी की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसका नियंत्रण 0.05 प्रतिशत डाइमिथोएट या फास्फोमिडान का छिड़काव करने से किया जा सकता है।
  • बारुथ : इस तरह के कीट पत्तियों को नष्ट कर के फसल को खराब कर देते हैं। एक लीटर पानी में 2 मिलीलीटर डाईमेथोएट या मिथाएल डेमेटॉन को मिला कर छिड़काव कर के इन पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इस पर नियंत्रण के लिए 21 दिन के अंतराल पर 0.1 प्रतिशत मेलिथियोन का छिड़काव करना चाहिए।

हल्दी में लगने वाले रोग और उसका निदान

  • कंद सड़न : इस रोग के होने पर पौधों के ऊपरी भागों पर धब्बे हो जाते हैं और कुछ दिन बाद पौधे सूख जाते हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रभावित क्षेत्रों की खुदाई कर बौर्डियोक्स मिश्रण या डाईथेन एम – 45 डालना चाहिए।
  • पर्णचित्ती रोग : इस रोग में पत्तों पर धब्बे दिखने लगने हैं। इस रोग के होने पर हल्दी की पैदावार पर बहुत प्रभाव होता है। इस रोग से बचने के लिए 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार डाईथेन एम – 45 के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

ये तो थी, हल्दी की खेती की (haldi ki kheti) संपूर्ण जानकारी। यदि आप इसी तरह कृषि, मशीनीकरण, सरकारी योजना, बिजनेस आइडिया और ग्रामीण विकास की जानकारी चाहते हैं तो इस वेबसाइट की अन्य लेख जरूर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिए शेयर करें।

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