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panchayati raj: पंचायती राज व्यवस्था और उसके 29 विषय

हमारे देश की संविधान में 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन किया गया। जिसे पंचायती राज अधिनियम-1992 (Panchayati Raj Act-1992) कहा जाता है।

panchayati raj system and its 29 subjects: संविधान में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि “भारत राज्यों का संघ है।“ जिसमें शक्तियों का विवरण केंद्र और राज्य के बीच किया गया है।

परन्तु संघात्मक देशों में स्थानीय स्वशासन का ढाँचा तय करने की शक्ति सामान्यतः राज्यों के हाथ में होती है और इसमें केंद्र का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

भारत में भी संविधान लागू होने के समय (1950) से 1993 तक यही व्यवस्था थी। परन्तु ग्रामीण विकास कार्यक्रम के असफलता के बाद और जनता की सीधी भागीदारी का महत्व समझते हुए हमारे देश की संविधान में 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन किया गया। जिसे पंचायती राज अधिनियम-1992 (Panchayati Raj Act-1992) कहा जाता है।

आपको बता दें, आजादी के बाद संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा संघ, समवर्ती और राज्य सूची के आधार पर किया गया। लेकिन 1992 से पहले तक पंचायतों को अधिकार नहीं मिल सका। आखिरकार 73वें संविधान संशोधन में पंचायतों को भी स्थानीय विषयों पर कुल 29 विषयों पर काम करने का संवैधानिक अधिकार मिल गया। 

केंद्र और राज्य सरकार बीच शक्तियों का बंटवारा

संघ सूची में शामिल कुल 100 विषयों पर केंद्र को और राज्य सूची के कुल 61 विषयों पर राज्यों को और कुछ अन्य 52 विषयों (समवर्ती सूची) पर दोंनों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया। 

राज्य और पंचायतों के बीच शक्तियों का बंटवारा

73वें संविधान संशोधन के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं के लिए 11वीं अनुसूची जोड़ी गई। जिसमें राज्य विधानमंडल एवं पंचायतों में शक्तियों का बँटवार कर पंचायतों को स्थानीय विषयों से संबंधित कुल 29 विषयों पर काम करने और योजना बनाने का अधिकार दिया गया है।

ग्राम पंचायतें (gram panchayat) अपनी विभिन्न समितियों के माध्यम से गाँव में विकास कार्यों को संचालित करती हैं। इसके लिए उन्हें किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती है। गाँव में स्वच्छ पेयजल और खेतों के लिए पानी का प्रबंधन जैसे चुनौतीपूर्ण काम भी पंचायत काफ़ी बेहतरीन तरीके से करती है जिससे काम काफ़ी आसानी से और तेज़ी से होता है।

पंचायती राज (panchayati raj) व्यवस्था की महत्व को देखते हुए 1992 में 73वें संविधान संशोधन के तहत देश की करीब ढाई लाख पंचायतों को इससे संबंधित विषयों जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पेयजल, कृषि, स्वरोजगार के मुद्दे पर खुद फैसला करने का अधिकार मिल गया।

पंचायती राज व्यवस्था और उसके स्थानीय 29 विषय

संविधान की ग्यारहवी अनुसूची में दिए गए कार्य

इस सूची में निम्न 29 कार्य पंचायती राज संस्थाओं को दिए गए हैं।

  1. कृषि और कृषि विस्तार
  2. भूमि सुधार, भूमि सुधारों को लागू करना, चकबंदी और भूमि सुरक्षा।
  3. लघु सिंचाई, जल व्यवस्था और वाटरशेड(पानी के बहाव) का विकास।
  4. पशुपालन, डेयरी और मुर्गी पालन
  5. मछली पालन
  6. सामाजिक वानिकी और फार्म फॉरेस्टरी
  7. लघु वन उत्पादन
  8. लघु उद्योग जिसमें कृषि उत्पादन को प्रोसेस करने का उद्योग भी शामिल है।
  9. खादी ग्रामीण और कुटीर उद्योग
  10. ग्रामीण आवास व्यवस्था
  11. पेयजल(पीने के पानी)
  12. ईंधन और पशुचारे की व्यवस्था
  13. सड़कें पुलिया, पुल, राजवाहे और आने-जाने के अन्य साधन की व्यवस्था करना।
  14. ग्रामीण विद्यतीकरण जिसमें बिजली की सप्लाई भी शामिल है।
  15. गैर-परंपरागत उर्जा स्रोत
  16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
  17. शिक्षा जिसमें प्राईमरी और माध्यमिक शिक्षा भी शामिल है।
  18. पंचायत स्तर की तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा
  19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा
  20. पंचायत स्तर पर पुस्तकालय
  21. सांस्कृतिक कार्यक्रम
  22. मंडियाँ और मेले
  23. स्वास्थ्य और स्वच्छता जिसमें अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और डिस्पैंसरी भी शामिल है।
  24. परिवार कल्याण
  25. महिला और बाल कल्याण
  26. समाज कल्याण जिसमें विकलांगों और मंदबूद्धि व्यक्तियों का कल्याण भी शामिल है।
  27. कमज़ोर वर्गों का कल्याण विशेषकर अनूसूचित और जन-जाति के वर्ग के लोगों का कल्याण
  28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
  29. सामुदायिक सम्पति(पंचायत की संपत्तियों) की देखभाल और रख-रखाव।

पंचायतों के कार्य और चुनौतियां

भले ही 29 विषयों की सूची पंचायतों को दी गई जिन पर योजना बनाने, क्रियान्यवयन करने और मूल्यांकन करने की शक्ति ग्रामसभा के हाथ में आ गई। लेकिन समस्या यह है कि ग्राम सभा की नियमित बैठकें ही नहीं हो पाती हैं। इस वजह से इन विषयों पर न कोई सर्व सम्मति से योजना बन पाती हैं और न ही उस पर सामूहिक रूप से विचार-विमर्श ही हो पाता है।

संक्षेप में कहें तो भारतीय प्रशासन में शक्ति केंद्र से स्थानीय निकायों यानी पंचायत तक प्रवाहित होती है, आज पंचायतों को भी कुल 29 विषयों पर कार्य योजना बनाने का अधिकार है, जिसके लिए आप पंचायत प्रतिनिधियों से बात कर संबंधित विषय पर कार्य योजना बनाने को कह सकते हैं।

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