ग्रामीण उद्योगपंचायती राज

पंचायती राज अधिनियम 1992 | Panchayati Raj Act 1992

73वें संविधान संशोधन अधिनियम-1992 के तहत भारतीय संविधान के भाग-9 में पंचायती राज से संबंधित नियमों की चर्चा (अनुच्छेद-243) में की गई है।

panchayati raj act 1992 in hindi: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंचायतों के सुधार और स्वशासन के लिए समय-समय पर कई समितियों का गठन किया गया, लेकिन पंचायती राज व्यवस्था को कानूनी रूप नहीं मिल पाई। 
 
इसी कड़ी में वर्ष 1989 में पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा 64वां संविधान संशोधन विधेयक संसद में पेश किया गया। परन्तु यह विधेयक लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में पारित नहीं हो सका।
 
अंततः वर्ष 1992 में नरसिंहा राव सरकार द्वारा 73वें संविधान संशोधन अधिनियम-1992 के तहत पंचायतों को संवैधानिक मान्यता मिल गई।
 

विधेयक को संसद द्वारा पारित होने के बाद 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली और 24 अप्रैल, 1993 से इसे देश में लागू कर दिया गया। इसके फलस्वरूप 24 अप्रैल को देशभर में ‘राष्ट्रीय पंचायत दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

 
पंचायती राज अधिनियम-1992 (Panchayati Raj Act-1992) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की अवधारणा को साकार करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य देश की करीब ढाई लाख पंचायतों को अधिक से अधिक अधिकार प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना है। इस अधिनियम के अनुसार ग्राम पंचायतें स्थानीय ज़रुरतों के अनुसार योजनाएँ बनाकर लागू कर सकेंगी।
पंचायती राज अधिनियम-1992

73वें संविधान संशोधन अधिनियम-1992 के तहत भारतीय संविधान के भाग-9 में पंचायती राज से संबंधित नियमों की चर्चा (अनुच्छेद-243) में की गई है। भाग-9 में ‘पंचायतें’ नामक शीर्षक के तहत अनुच्छेद 243 से 243 (ण) तक पंचायती राज से संबंधित नियमों का उल्लेख है।
इस संशोधन द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई जिसके तहत पंचायतों को कुल 29 विषयों पर काम करने का अधिकार दिया गया है।
इस अधिनियम के तहत पंचायतों को तीन स्तर पर विकेंद्रीकरण कर पंचायतों की शासन व्यवस्था को आसान बनाई गई है।
Panchayati Raj Act-1992: पंचायती राज अधिनियम-1992

पंचायती राज संबंधित अनुच्छेद

अनुच्छेद-243 के अंतर्गत ग्राम स्तर पर ग्राम सभा, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद को परिभाषित किया गया है।
 
अनुच्छेद- 243 (क)
इस अनुच्छेद के अनुसार प्रत्येक गाँव में एक ग्राम सभा होगी जो राज्य विशेष के विधान मंडल के द्वारा दिए गए अधिकारों का उपयोग और निर्धारित कर्तव्यों का पालन ग्राम स्तर पर होगा।
 
अनुच्छेद- 243 (ख)
अनुच्छेद- 243 (ख) में पंचायतों के गठन का प्रावधान किया गया है। जिसके तहत प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर और जिला स्तर पर पंचायतों का गठन किया जाएगा। जिस राज्य में कुल जनसंख्या 20 लाख से कम है, वहाँ मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन नहीं किया जाएगा। वहाँ की पंचायतें द्विस्तरीय होगी जबकि अन्य राज्यों में त्रि-स्तरीय पंचायत होंगी।
 
अनुच्छेद-243(ग)
अनुच्छेद-243(ग) में पंचायतों की संरचना का प्रावधान है। राज्य विधानमंडलों को विधि द्वारा पंचायतों की संरचना के लिए नियम बनाने की शक्ति दी गई है, लेकिन किसी भी स्तर पर पंचायत के राज्य की जनसंख्या और निर्वाचन द्वारा भरे जानी वाली स्थानों की संख्या के मध्य अनुपात राज्य में यथासंभव एक ही रहेगा।
 
पंचायतों के सभी स्थान पंचायत राज्य क्षेत्र के राज्य निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए लोगों से भरे जाएंगे। अर्थात् प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और आवंटित संख्या के अनुपात में होगा।
 
अनुच्छेद- 243(घ)
इस अनुच्छेद के अनुसार प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्ग के साथ-साथ महिलाओं लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए पदों का आरक्षण कुल जनसंख्या में उनकी जनसंख्या के अनुपात पर निर्भर करेगा।
 
अनुसूचित जाति के लिए पदों का आरक्षण कुल सीटों में अधिक से अधिक 21 प्रतिशत तक ही होगा। इसी प्रकार पिछड़ी जाति के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है।
 
Note- इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि किसी पंचायत में कुल सदस्य संख्या का कम-से-कम एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होगी। यह आरक्षण व्यवस्था विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चक्रानुक्रम (बारी-बारी) से निर्धारित किए जा सकते हैं। वर्तमान में यह आरक्षण कई राज्यों में 50 प्रतिशत तक कर दिया गया है। अर्थात् उस राज्य में प्रत्येक दूसरी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित है।
 
अनुच्छेद-243(ङ)
इस अनुच्छेद में पंचायतों के कार्यकाल का वर्णन हैं। सभी पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है। पंचायतों के रिक्त होने पर 6 माह के अंदर चुनाव कराने का प्रावधान है।
 
अनुच्छेद 243(च)
इस अनुच्छेद में पंचायत सदस्यता के लिए योग्यताओं के बारे में वर्णन किया गया है। पंचायत-जनप्रतिनिधि बनने के लिए प्रत्याशी की आयु 21 वर्ष होना आवश्यक है। पंचायत चुनावों में 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके सभी लोग चुनाव में हिस्सा ले सकेंगे।
 
अनुच्छेद-243(छ)
इस अनुच्छेद के अनुसार राज्यों की विधानसभा पंचायतों के अधिकार, कर्तव्य और वित्त संबंधित नियमों का उल्लेख है।
 
अनुच्छेद- 243(ज)
इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य के राज्यपाल पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्निरीक्षण करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा। वित्त आयोग राज्य की संचित निधि से पंचायतों के लिए सहायता अनुदान प्रदान करेगा। राज्य वित्त आयोग को ही पंचायतों को धन मुहैया कराने की जिम्मेदारी दी गई है।
 
अनुच्छेद- 243(झ)
इस अनुच्छेद में वित्तीय स्थिति के पुनर्वालोकन के लिए वित्त आयोग का गठन का प्रावधान है।
 
राज्य का राज्यपाल पंचायत अधिनियम-1992 के तहत प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर, राज्य वित्त आयोग का गठन करने का प्रावधान है जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा, जो–पंचायतों के सुदृढ़ वित्त के हित में राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को निर्दिष्ट किए गए किसी अन्य विषय के बारे में, राज्यपाल को सिफारिश करेगा।
 
अनुच्छेद- 243(ञ)
इस अनुच्छेद में पंचायतों के लिए ऑडिट की व्यवस्था की गई है।
किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में लागू कर सकेगा।
 
अनुच्छेद-243(ट)
इस अनुच्छेद के अनुसार पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए मतदाता सूची तैयार कराने का और उन सभी चुनाव के संचालन का देखभाल, निर्देशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा, जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
 
अनुच्छेद-243(ठ)
इस अनुच्छेद के अनुसार पंचायतों का भारत के राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में लागू होने से संबंधित है।
 
अनुच्छेद-243(ड)
इस अनुच्छेद में अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के संवर्धन के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार अनुच्छेद 244 के खंड(1) में निहित अनुसूचित क्षेत्रों और उसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी।
 
(क) नागालैंड, मेघालय और मिजोरम।
(ख) मणिपुर राज्य में ऐसे पर्वतीय क्षेत्र जिनके लिए जिला परिषदें विद्यमान हैं।
 
अनुच्छेद 243(ढ)
इस अनुच्छेद के अनुसार पंचायत अधिनियम, 1992 के प्रारंभ के ठीक विद्यमान सभी पंचायतें, यदि उस राज्य की विधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य की दशा में, जिसमें विधान परिषद् है, उस राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पारित इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधि की समाप्ति तक बनी रहेगी ।
 
अनुच्छेद 243(ण)
इस अनुच्छेद में निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का उल्लेख है।
 
अनुच्छेद 243(ट) के अधीन बनाई गई या बनाई गई किसी ऐसी कानून की मान्यता, जो निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को स्थानों के आवंटन से संबंधित है, किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकेगा।
 
किसी पंचायत के लिए कोई निर्वाचन, ऐसी निर्वाचन अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जाएगा जो ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई है, जिसका किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन लागू किया जाए, अन्यथा नहीं किया जा सकेगा।

पंचायती राज अधिनियम-1992 की विशेषताएं और महत्व

पंचायती राज अधिनियम देश में लोकतंत्र को सबसे निचले स्तर पर तैयार करने की एक युगान्तकारी और क्रांतिकारी सोच है।
§ स्वशासन के माध्यम से शासन में समाज के अंतिम व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित होती है जिससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिक भी लोकतंत्रात्मक संगठनों में रुचि लेते हैं।
§ महिलाओं को न्यूनतम एक-तिहाई आरक्षण मिलने से महिलाएं भी पंचायती राज व्यवस्था में शामिल होकर मुख्य धारा में जुड़ रही हैं।
§ यह स्वस्थ राजनीति की प्रथम पाठशाला साबित हो सकती है जहाँ से ज़मीनी स्तर पर समाज के प्रत्येक पहलू की समझ रखने वाले एवं स्थानीय समस्याओं के प्रति संवेदनशील नेता भविष्य के लिये तैयार हो सकते हैं।
§ पंचायती राज व्यवस्था से ही केंद्र एवं राज्य सरकारों के मध्य स्थानीय समस्याओं को विभाजित कर उनका समाधान अधिक प्रभावी तरीके से किया जा सकता है।
 
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