धान की खेती: [जलवायु, मिट्टी और किस्मों की संपूर्ण जानकारी]
भारत में धान (Paddy) एक प्रमुख फसल है। धान (चावल) उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। हमारे देश में चावल बड़े चाव से खाई जाती है।
Dhan ki kheti: भारत में धान (Paddy) एक प्रमुख फसल है। धान (चावल) उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। हमारे देश में चावल बड़े ही चाव से खाई जाती है। चावल से कई प्रकार के व्यंजन बनाई जाती है।
भारत में धान की प्रमुख उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, केरल, बिहार, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश हैं। यहां धान की दो फसलें ली जाती है। एक खरीफ की मौसम में तो दूसरा जायद की मौसम में।
आज हम द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में प्रमुख रूप में धान की खेती (dhan ki kheti) के लिए जलवायु, मिट्टी और विभिन्न प्रकार की किस्मों के बारे में चर्चा करेंगे।
धान की फसल के लिए मिट्टी और जलवायु
धान एक गर्म जलवायु का पौधा है। धान की खेती (dhan ki kheti) के लिए 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए बहुत ज्यादा बारिश की जरूरत होती है। इसलिए इसकी खेती ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में की जाती है।
धान की खेती (dhan ki kheti) के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत होती है। इसके लिए जलजमाव वाली भूमि सबसे उपयुक्त होती है। इसके लिए मिट्टी का पीएचमान 6.5 से लेकर 7.5 के बीच होनी चाहिए।
धान की खेती का समय
1. जायद में
10 फरवरी से 30 मार्च की बीच बुआई हो जानी चाहिए। जायद के मौसम में धान की खेती (dhan ki kheti) प्रमुख रूप से दक्षिण भारत में की जाती है। जायद मौसम में धान की कटाई किस्मों/प्रजातियों के अनुसार आप 90 से 150 दिनों में कर सकते हैं।
2. खरीफ में
भारत के अधिकांश राज्यों में धान की खेती (dhan ki kheti) खरीफ के मौसम में ही होती है। खरीफ के मौसम में धान की बुआई 15 मई से 15 जुलाई के बीच होती है। इस मौसम में भी धान की फसल 90 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
खेत की तैयारी
फसल की रोपाई के 20 दिन पहले खेत की जुताई करके प्रति एकड़ 10-20 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, और 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा को डाल दें। इसके बाद खेत की 3 बार अच्छे से जुताई करें। जुताई के बाद खेत को समतल करके ऊपर तक पानी भर लें।
नर्सरी प्रबंधन
धान की एक एकड़ खेत की नर्सरी बनाने के लिए 10 मीटर लंबी और 2 मीटर चौड़ी क्यारी (बेड) बना लें। इसमें 500 ग्राम कार्बोफुरान और 5 किलोग्राम डीएपी (DAP) डालकर खेती की गहरी जुताई कर लें। बीज की बुआई के बाद सिंचाई अवश्य करें।
बीज की मात्रा
धान की बीज की मात्रा बुआई की पद्धति के अनुसार अलग-अलग होती है। जैसे- छिटकावां विधि से बोने के लिए 40 किलोग्राम प्रति एकड़, सीधी बुआई में प्रति एकड़ 30 किलोग्राम, जबकि रोपाई विधि में 15-20 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है।
धान के बीजों का उपचार विधि
धान की बीजों की बीजाई से पहले 8 से 10 घंटे तक भिगो देना चाहिए। पानी के अंदर 1 ग्राम Streptocyclin प्रति 10 किलो बीज के हिसाब से डालें। अथवा 2 ग्राम कार्बोंडाजिम को 1 किलो बीज में मिला लें।
बुआई का तरीका
धान की नर्सरी की बुआई छिटकावां विधि से की जा सकती है। रोपाई के समय पौध से पौध की दूरी 15 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
1. रोपाई के समय
धान की फसल रोपाई के समय 1 एकड़ खेत में 100 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), 50 किलोग्राम पोटाश, 50 किलोग्राम डीएपी (DAP) 25 किलोग्राम यूरिया और 10 किलोग्राम कार्बोफुरान का इस्तेमाल करें।
2. रोपाई के 10 से 15 दिन बाद
फसल की रोपाई के 10-15 दिन बाद एक एकड़ खेत में 25 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम सल्फर और 8 किलोग्राम बायो जायम का इस्तेमाल करें।
3. बुआई के 45-50 दिन बाद
फसल की रोपाई के 45-50 दिनों बाद एक एकड़ खेत में 25 किलोग्राम यूरिया, 5 किलोग्राम जायम, और 8 किलोग्राम जिंक का प्रयोग करें।
4. रोपाई के 70 से 75 दिन बाद
फूल बनने की अवस्था में दानों में अच्छी चमक और विकास के लिए 1 किलोग्राम NPK, 0:0:50 और 100 ग्राम बोरॉन की 200 लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
धान की फसल में सिंचाई प्रबंधन
धान की खेती (dhan ki kheti) में पर्याप्त मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है। धान की फसल रोपाई करने के बाद खेत में 2 सप्ताह तक अच्छी तरह से पानी में खड़ा रहने दें। धान की फसल में पानी कभी सूखने नहीं दें।
धान की उन्नत किस्में
श्रीराम सोनाली धान
- धान की यह किस्म 120-125 दिनों में तैयार हो जाती है।
- यह किस्म थोड़ी सुंगध के साथ लंबे पतले दाने वाली होती है।
पी एच बी- 71
- धान की यह किस्म 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
- इस किस्म की खेती हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू में अधिक होती है।
- इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 7-8 टन तक होती है।
पूसा बासमती 1692
- धान की यह किस्म पूसा संस्थान द्वारा विकसित की गई है।
- यह 110 से 115 दिनों में तैयार हो जाती है।
- पूसा बासमती 1692 किस्म की उत्पादन क्षमता प्रति एकड़ 27 क्विंटल तक होती है।
- इसके दाने लंबे और खुशबूदार होती है।
- इसके चावल ज्यादा टूटते नहीं हैं।
- पूसा बासमती 1692 की खेती दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक होती है।
श्रीराम खुशबू
- धान की यह किस्म 100 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है।
- इसके पौधे की लंबाई 105 से 115 सेंटीमीटर तक होती है।
- इसकी उत्पादन क्षमता 22-25 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है।
पूसा बासमती 1121
- धान की यह किस्म 130 से 140 दिनों में तैयार होती है।
- इसका पौधा लंबा होता है।
- यह एक सुगंधित किस्म है। इसके चावल खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं।
- पूसा बासमती 1121 की पैदावार प्रति एकड़ 13-14 क्विंटल तक होती है।
एराईज 6444
- धान की इस किस्म का दाना लंबा मोटा होता है।
- इस धान की खासियत है कि कम पानी से में भी अच्छा उत्पादन देता है।
- यह किस्म 135 से 140 दिनों में तैयार हो जाता है।
- इसकी उत्पादन क्षमता 80 से 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।
पूसा बासमती 1509
- बासमती धान की यह किस्म किसानों में बहुत ही लोकप्रिय है।
- यह किस्म खाने में स्वादिष्ट और खूशबुदार होता है।
- धान की यह किस्म 110 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है।
- यह किस्म झुलसा रोग सहने की क्षमता रखता है।
- इसकी औसतन पैदावार 15.7 क्विंटल प्रति एकड़ है।
पूसा बासमती 1637
- धान की इस किस्म के पौधे ऊंचे और मजबूत होते हैं।
- यह धान 130 से 135 दिन में तैयार हो जाते हैं।
- पूसा बासमती 1637 के दाने मजबूत, चमकदार और वजनी होते हैं।
- इसकी पैदावार 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पूसा बासमती 1718
- धान की यह किस्म खाने में स्वादिष्ट होते हैं।
- यह किस्म 135 से 140 दिनों में तैयार हो जाती है।
- पूसा बासमती 1718 की औसत पैदावार 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, बिहार और तमिलनाडू प्रमुखता से की जाती है।