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Cholai ki kheti: कम लागत में अधिक मुनाफे के लिए करें चौलाई की खेती

लाल चौलाई (red amaranth) भारत में पत्तियों वाली सब्जियों की मुख्य फसलों में से एक है। लाल चौलाई को आम भाषा में लाल साग (lal sag) भी कहते हैं।

amaranth cultivation in hindi: लाल चौलाई (red amaranth) भारत में पत्तियों वाली सब्जियों की मुख्य फसलों में से एक है। लाल चौलाई को आम भाषा में लाल साग (lal sag) भी कहते हैं।

भारत के अलावा लाल साग की खेती दक्षिण अमेरिका, दक्षिण-पूर्वी एशिया, पश्चिम एवं पूर्वी अफ्रीका में भी की जाती है।

कई पोषक तत्वों से युक्त होने के कारण बाजार में इसकी मांग वर्षभर बनी रहती है। यह कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाली फसल है। अतः कम समय में तैयार होने वाली चौलाई की खेती (cholai ki kheti) से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। 

तो आइए, द रुरल इंडिया के आज के इस लेख में लाल चौलाई की खेती (lal cholai ki kheti) की सभी आवश्यक जानकारी जानें।

चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु

लाल चौलाई की खेती (lal cholai ki kheti) उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए।

चौलाई की खेती (amaranth cultivation) के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। पौधों के विकास के लिए 15 डिग्री सेंटीग्रेड से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान उपयुक्त होता है।

चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त समय

लाल चौलाई की खेती (lal cholai ki kheti) के लिए गर्म और वर्षा का मौसम उपयुक्त है। इसके अलावा फरवरी-मार्च महीने में भी इसकी बुआई की जा सकती है। गर्मी के मौसम में पैदावार लेने के लिए रोपाई फरवरी के आखिरी हफ्ते से मार्च के शुरुआती हफ्ते में करें।

बारिश के मौसम में पैदावार लेने के लिए रोपाई मई के आखिरी हफ्ते से जून के शुरुआती हफ्ते में करें।

बीज की मात्रा और बीजोपचार

छिड़काव विधि से रोपाई करने पर 2 किलोग्राम से 2.5 किलोग्राम प्रति एकड़ तक बीज की खपत होती है। पंक्तियों में इसकी रोपाई के लिए 1 से 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ तक बीज की खपत होती है।

चौलाई के बीजों के उपचार के लिए गौमूत्र का प्रयोग करें। बीजों के उपचार के लिए 2.5 ग्राम थीरम का उपयोग प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें। 

बीज की मात्रा एवं बुआई की विधि

लाल चौलाई की खेती के लिए बीज की मात्रा बुआई के तरीकों पर निर्भर करती है। यदि छिड़काव विधि से बुआई करनी है तो प्रति एकड़ खेत में 2 से 2.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

यदि क्यारियां बनाकर उसकी बुआई कर रहे हैं तो प्रति एकड़ खेत में 1 से 1.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी। चौलाई के बीज आकार में काफी छोटे होते हैं। इसलिए बीज में रेत मिलाकर बुआई करें।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

यदि रोपाई के समय भूमि में उचित मात्रा में नमी है तो बुआई के तुरंत बाद सिंचाई नहीं करें। यदि सूखी भूमि में बुआई कर रहे हैं तो बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। इससे बीज के अंकुरण में आसानी होती है।

अंकुरण के बाद बुआई के 20-25 दिनों बाद सिंचाई करें। पौधों में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें।

फसल की कटाई

बुआई की 20 से 25 दिनों बाद फसल की पहली कटाई की जा सकती है। चौलाई की कोमल तने एवं पत्तियों की कटाई करें। इस तरह एक बार बुआई करके 4 से 5 बार तक कटाई की जा सकती है।

 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न- चौलाई कितने रुपए किलो है?

उत्तर- चौलाई बाजार में 20 रुपए से लेकर 30 रुपए प्रतिकिलो बिकती है। हालांकि यह कीमत बाजार में मांग पर भी निर्भर करता है। 

प्रश्न- चौलाई का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर- चौलाई का दूसरा नाम लाल साग, रामदाना और राजगिरी भी है। 

प्रश्न- चौलाई का पौधा कैसे होता है?

उत्तर- चौलाई के पौधे गहरे लाल रंग के होते हैं। 

प्रश्न- रामदाना कब बोया जाता है?

उत्तर- रामदाना की बुआई रबी और जायद ऋतु की फसल है। 

 

ये तो थी, लाल चौलाई की खेती (amaranth cultivation in hindi) की जानकारी। यदि आप इसी तरह कृषि, मशीनीकरण, सरकारी योजना, बिजनेस आइडिया और ग्रामीण विकास की जानकारी चाहते हैं तो इस वेबसाइट की अन्य लेख जरूर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिए शेयर करें।

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