जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है? | Zero Budget Farming in Hindi
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि (Chemical Free Farming) का एक रूप है।

Zero Budget Natural Farming: जीरो बजट खेती से ही आप समझ रहे होंगे कि यह शून्य खर्चे में होने वाली खेती है। तो यह बिल्कुल सही है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming) का मतलब किसान को खेती में एक भी पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है और ना ही किसान इस खेती में किसी तरह के केमिकल और कीटनाशक का उपयोग करने की जरूरत पड़ती है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती की विशेषताएं (Zero Budget Natural Farming in Hindi)
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि सिद्धांतों के अनुसार, फसलों को पोषक तत्वों की आपूर्ति का 98% पानी, धूप और हवा से मिलता है और शेष 2% की पूर्ति बहुत सारे अनुकूल सूक्ष्मजीवों के साथ अच्छी गुणवत्ता से की जा सकती है। इस प्रकार की खेती में गौ पालन और प्राकृतिक रूप में मिलने वाले कीटनाशकों को बढ़ावा दिया जाता है। इस कृषि प्रणाली में गायों द्वारा प्राप्त गोमूत्र और गोबर की आवश्यकता होती है।
भारत में जीरो बजट खेती (Zero Budget Natural Farming) की शुरुआत
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि (Chemical Free Farming) का एक रूप है। जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (Zero Budget Farming Technique) की विधि पारंपरिक खेती की विधि से जुड़ी हुई है।
- इस विधि में उर्वरक (Fertilisers), कीटनाशक (Pesticides) और गहन सिंचाई (Intensive Irrigation) की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
- इस विधि के तहत चाहे आप किसी भी फसल की खेती करें उसकी लागत मूल्य जीरो होनी चाहिए।
- खेती में इस्तेमाल होने वाले सभी संसाधन घर पर ही उपलब्ध होने चाहिए।
- देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत करने से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक घटकों का भी विस्तार होता है।
Zero Budget Natural Farming के घटक
बीजामृत
यह किसी भी खेती का पहला चरण होता है। जिसमें गाय के गोबर, गोमूत्र तथा चूना व खेत की मृदा से बीज शोधन किया जाता है।
जीवामृत
गाय के गोबर, गोमूत्र व अन्य जैविक पदार्थों का एक घोल तैयार कर किण्वन किया जाता है। किण्वन के बाद प्राप्त इस पदार्थ को उर्वरक व कीटनाशक के स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है।
मल्चिंग
इसमें जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को जमीन पर फैलाया जाता है।
नमी(भाप)
इसमें सिंचाई के स्थान पर मृदा में नमी एवं वायु की उपस्थिति को महत्त्व दिया जाता है।
Zero Budget Natural Farming क्यों जरूरी है
(NSSO) राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार 70% से अधिक किसानों को अपनी कमाई से अधिक खेती में लगाना पड़ता है। जिससे उनके ऊपर कर्ज का बोझ बन जाता है। सबसे अधिक कर्ज आंध्र प्रदेश और तेलंlगाना जैसे राज्यों में लगभग 90% है। लगभग हर परिवार पर 1 लाख रुपये का कर्ज है।
Zero Budget Natural Farming के लिए सरकारी योजनाएं
भारत सरकार 2015-16 से पारंपरिक कृषि विकास योजना की प्रतिबद्ध योजनाओं और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के माध्यम से देश में प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ा रही है।
2018 में आंध्र प्रदेश ने 2024 तक 100% प्राकृतिक खेती करने वाला भारत का पहला राज्य बनने की योजना शुरू की है। इसका उद्देश्य राज्य के 60 लाख किसानों को ZBNF विधियों में परिवर्तित करके 80 लाख हेक्टेयर भूमि पर रासायनिक खेती करना है।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लाभ (Benefits of Zero Budget Natural Farming)
- शून्य बजट प्राकृतिक खेती किसानों की लागत को कम करती है।
- किसान की आय में बढ़ोतरी होती है।
- अनाज शुद्ध मिलते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
- जीरो बजट खेती के तहत किसानों पर कर्ज का बोझ ना आने के कारण किसानों की आत्महत्या के दायरे में भी आई है।
- कम बिजली और पानी के खर्च में ही खेती कर सकते हैं।
- ZBNF (Zero Budget Natural Farming) मिट्टी की उत्पादकता में सुधार करता है।
- जीरो बजट खेती में कम रासायनिक उर्वरक का उपयोग किया जाता हैं। जिससे खेती की उत्पादन गुणवत्ता में सुधार होता है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती का महत्व (Importance of zero budget natural farming)
जीरो बजट फार्मिंग में गौपालन का भी विशेष महत्व है। क्योंकि देशी प्रजाति के गौवंश के गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत तैयार किया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक ‘गतिविधियों का विस्तार होता है।
जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है।