बरसात का मौसम सिर्फ़ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि मवेशियों के लिए भी कई तरह की बीमारियां लेकर आता है।
इसलिए पशुपालकों को इस मौसम में पशुओं की खास देखभाल की ज़रूरत होती है, वरना पशुओं की मौत भी हो सकती है।
इस मौसम में पानी के कारण फिसलन बढ़ जाती है, जिससे पशुओं के गिरकर चोट लगने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
इसके साथ ही उन्हें इस मौसम में गीली घास मिलती है जिसमें पौष्टिक तत्व कम होते हैं और बीमारियों का खतरा भी कई गुना रहता है।
ऐसे में पुशओं के रहने की जगह से लेकर आहार तक, सबका बहुत ध्यान रखने की ज़रूरत है, वरना पशु पालकों को पशु की मृत्यु और कम दूध उत्पादन का जोखिम उठाना पड़ सकता है।
बारिश में पशुओं के बा़ड़े में पानी भर जाने के कारण कॉक्सीडियता या कुकड़िया रोग, फुट रॉट जैसे गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
इसके अलावा थनैला रोग की आशंका भी बढ़ जाती है। पशुपालकों को मानसून शुरू होने से पहले ही गाय-भैंसों को गल-घोंटू और लंगड़ी बुखार का टीका लगवा देना चाहिए।
मानसून में मवेशियों में किलनी की समस्या भी बढ़ सकती है। अगर उनके रहने की जगह में बहुत ज़्यादा किलनियां हो जाएं तो पशुओं में सर्रा, थिलेनरिया, बबेसिओसिस रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसमें जानवरों को तेज़ बुखार के साथ ही खून की कमी भी हो जाती है।
मानसून में मवेशियों के रहने की जगह के साथ ही उनके आहार पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। बरसात में उनके आवास में पानी नहीं भरने देना है और जहां तक संभव हो उनके बाड़े को सूखा रखने की कोशिश करें। हफ़्ते में दो बार बाड़े में चूना छिड़कें और आसपास की जगह को साफ़ रखें।
इस मौसम में पशुओं को पाचन संबंधी समस्या हो जाती है। इसलिए उन्हें हरे चारे के साथ ही सूखा चारा भी दिया जाना चाहिए।
इस मौसम में सूखे चारे में जल्दी फफूंदी लग जाती है, तो उसका भंडारण सही तरीके से करें। आहार के साथ ही पीने का पानी भी साफ होना चाहिए, क्योंकि इस मौसम में पशुओं के बीमार पड़ने की आशंका ज़्यादा होती है।
बरसात के मौसम में नमी की वजह से बैक्टीरिया तेजी से फैलते हैं। इसलिए पशुओं को रखने की जगह पर इस मौसम में कृमिनाशक दवा का छिड़काव करते रहना चाहिए। पूरे मानसून में डीवार्मिंग ज़रूरी है।