आपने अब तक पीली हल्दी के बारे में ही सुना होगा। लेकिन पीली हल्दी के अलावा, काली हल्दी (Black Turmeric) भी होती है।
इसके औषधीय गुणों के कारण इसकी बाज़ार में कीमत भी ज़्यादा होती है। काली हल्दी का इस्तेमाल जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है।
घाव भरने, मोच, त्वचा रोग, पाचन क्रिया को दुरुस्त करने और लीवर से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में काली हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है।
काली हल्दी की खेती के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। इसके लिए तापमान 15 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।
काली हल्दी की खेती के लिए बलुई, दोमट, मटियार, मध्यम पानी पकड़ने वाली भूमि सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएचमान 5 से 7 के बीच होना चाहिए।
काली हल्दी के पौधों की बुआई जून-जुलाई महीने में की जा सकती है। इसके कंदों को रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए।
काली हल्दी के पौधों को ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती। हल्के गर्म मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए।
प्रति एकड़ 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर खाद मिलाना चाहिए। घर पर तैयार किए गए जीवामृत को पौधों की सिंचाई के साथ देना चाहिए।
रोपाई के करीबन 250 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ लगभग 12 से 15 टन पैदावार होती है, जो सूखने के बाद 2 से 2.5 टन रह जाती है।