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भारत की टॉप 10 महिला सरपंच | top 10 women sarpanch in India

भारत में ऐसे कई महिला सरपंच (women sarpanch) हैं जो अपने काबिलियत के बदौलत अपना ही नहीं बल्कि अपने गांव का नाम रोशन किया है। 

भक्ति शर्मा
Top 10 women sarpanch in India: भारत की महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। ग्रामीण भारत की महिलाएं भी अपनी काबिलयत साबित कर रही हैं। चाहे वो खेती का क्षेत्र हो गांव को आगे ले जानी की बात। स्थानीय सरकार में भी 50 प्रतिशत का आरक्षण मिला है। ग्राम पंचायतों में वे बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। 
 
भारत में ऐसे कई महिला सरपंच हैं जो अपने काबिलियत के बदौलत अपना ही नहीं बल्कि अपने गांव का नाम रोशन किया है। 
 
तो आइए द रूरल  इंडिया के इस ब्लॉग में इन्हीं होनहार महिला सरपंचों में 10 सरपंचों की कहानी बता रहे हैं। जिनसे आपको जरूर प्रेरणा मिलेगा। 
 

भारत की 10 महिला सरपंच (top 10 women sarpanch in India)

  1. भक्ति शर्मा (सरपंच भोपाल, बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत)
  2. जबना चौहान (सरपंच, जिला मंडी, थरहूंन गांव हिमाचल)
  3. मोना कौरव (सरपंच, नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश)
  4. प्रियंका पंडित (सरपंच, खैरी ग्राम पंचायत)
  5. माधुरी देवी (सरपंच, घनोल,जालौर)
  6. हज्जामा (सरपंच, उत्तकुर, तेलंगाना)
  7. गीता देवी (सरपंच, कच्चबली, राजसमंद)
  8. सदी असिरातल्ली (सरपंच, नेदुरापीटा)
  9. आदिलक्ष्मी (सरपंच, अंबलबलसा)
  10. कविता जोशी (सरपंच, शोभागपुरा, राजस्थान)
 

पुरुष सरपंचों से भी है आगे हैं ये महिला सरपंच

ये महिलाएं पुरुषों से भी आगे है क्यूंकि इन्होंने समाज के आगे झुकना नहीं सीखा और ना ही अत्याचार सहे, बल्कि खुद आगे बढ़कर समाज को ही बदल दिया और आत्मसम्मान के साथ जीना सिखाया। एक सरपंच की ताकत और उसका ओहदा क्या होता है इसका सटीक उदाहरण हैं ये महिला सरपंच और पुरुषवादी सोच को गलत साबित करते हुए समाज और देश के लिए नया उदाहरण पेश किया।
ये भारत की वे महिलाएं है जिन्होंने अपने गांव को गांव नहीं रहने दिया बल्कि उन्हें स्मार्ट बनाया। स्ट्रीट लाइट, साफ सफाई, पक्की सड़कें, बच्चो को आधुनिक शिक्षा पद्धति से पढ़ाना और नेट कैसे अतिआवश्यक साधनों की उपलब्धता करके इन्होंने ग्रामवासियों का जीवन ही बदल दिया ।

(1) भक्ति शर्मा (सरपंच-भोपाल बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत)

अमेरिका के टेक्सास शहर में अच्छी नौकरी और एक सुनहरा भविष्य छोड़कर भला कोई क्यों वतन लौटेगा! लेकिन इसे समाजसेवा और अपने देश की मिट्टी से लगाव ही कहेंगे कि भक्ति शर्मा ने यह निर्णय लिया। जी हां हम बात कर रहे है मध्य प्रदेश के भोपाल की बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत की सरपंच भक्ति शर्मा की, जिन्होंने अमेरिका में अच्छी नौकरी छोड़कर वतन वापसी का निर्णय किया, भक्ति शर्मा के शौक बचपन से ही पुरुषों वाले थे और हमेशा से नारी सशक्तिकरण पर जोर दिया।
राजनीति शास्त्र से एमए करने वाली भक्ति ने सरपंच बनने के बाद सबसे पहले गांव की साफ सफाई और तकनीकीकरण पर ध्यान दिया, जिसकी बदौलत आज गांव के हर व्यक्ति के पास उसका राशनकार्ड, बैंक खाता, मृदा स्वास्थ्य कार्ड है, गांव के बच्चे कुपोषण से मुक्त है और भक्ति अपने खुद के प्रयासों से महीने में हेल्थ कैंप लगवाती है। वो बड़े गर्व से कहती है कि मेरे गांव में हर किसान को उसका मुआवजा मिलता है और वो जैविक खेती के नए नए तरीकों से किसानों को अवगत कराती रहती है जिससे कि उनकी आमदनी बढ़े।

बेटी के जन्म पर देती है दो महीने की तनख्वाह

भक्ति बेटियों के जन्म पर अपने दो महीने की तनख्वाह उस परिवार को देती है,ताकि बच्ची का अच्छे से ध्यान रखा जाए और वो कुपोषित ना होने पाए। आज उनके प्रयासों से गांव की हर गली में स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था है जिससे लोगों का आवागमन सुलभ हो गया है और एक सामुदायिक भवन का भी निर्माण किया गया है जिसमें सभी धार्मिक कार्यक्रम और शादी विवाह होते है।

(2) जबना चौहान (सरपंच- मंडी जिला गांव थरहूंन)

एक किसान पिता की पुत्री होने के कारण उनको किसानों की सभी समस्याओं का ज्ञान था और उन्हें पता था कि बिना किसी मेहनत के ये दशा सुधारने वाली नहीं है। 22 साल की उम्र में ही अपने मेहनत और कार्यों से पूरे मंडी जिले में प्रसिद्ध हो गई, और क्षेत्र के डिप्टी कमिश्नर के आग्रह पर सरपंची का चुनाव लड़ा और जीती भी। सरपंच बनने पर घर-घर जाकर शराबबंदी के लिए लोगों का समर्थन हासिल किया, लेकिन यह इतना आसान नहीं होने वाला था, शराब तम्बाकू के पाबंदी के फैसले पर गांव के बुजुर्ग ही उनके विरोध में आ गए, और उन्हें उनकी छोटी उम्र और कम अनुभव होने का पाठ पढ़ाने लगे।

प्रधानमंत्री से हो चुकी हैं सम्मानित

वक्त के साथ सब ठीक हो गया और वो सभी को समझाने में कमियाबी हो गई, उनका मानना है कि महिला सुरक्षा कानून तभी असरकारी होगा जब स्वयं महिलाएं इस कानून को बनाने में योगदान देंगी। गांव की लड़कियों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया, स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे गांव में सफाई व्यवस्था है और लाइट भी है। इनके इस सराहनीय कार्यों के चलते प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इन्हें सम्मानित किया गया और अक्षय कुमार द्वारा अपनी फिल्म टॉयलेट एक प्रेमकथा के प्रचार के लिए भी आमंत्रित किया गया था।

(3) मोना कौरव (सरपंच- मध्यप्रदेश, नरसिंहपुर)

मध्यप्रदेश की मोना कौरव को प्रदेश की सबसे युवा सरपंच होने का गौरव प्राप्त है, इनके सरपंच बनने का किस्सा उतना ही दिलचस्प है जितना कि इनके द्वारा किए गए काम, जो एक सच्चे समाजसेवी की निशानी है। गांव में महिला ओबीसी सीट खाली थी और मोना के माता पिता ने सोचा क्यों ना अबकी बार मोना को चुनाव लड़ाया जाए। मोना ने चुनाव लडा और जीत हासिल हुई,सरपंच बनने पर मोना ने कुपोषित बच्चों के लिए काम करना शुरू किया और जल्द ही इसमें उनको कामयाबी मिलने लगी। मोना ने ऐलान किया कि बेटी के जन्म पर वो अपने एक महीने का वेतन उस बेटी के परिवार को देंगी और उस दिन दूर्गौत्सव के रूप में मनाया जाएगा। खुले में शौच गांव की एक प्रमुख समस्या था जिसको मोना ने अपने प्रयासों से खत्म किया।

(4) प्रियंका पंडित (सरपंच- खैरी पंचायत)

प्रियंका पंडित 10 साल से खैरी ग्राम पंचायत की सरपंच है,और लगातार गांव के विकास के लिए तत्पर है, आधुनिक ढांचे को समृद्ध करने के साथ साथ बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में दाखिला करवा कर भविष्य की नींव भी मजबूत कर रही है। गांव की महिलाओं को रोजगार देने के लिए उन्होंने गांव में ही नैपकिन, पैड, और भी कई कुटीर उद्योग लगवाए जिससे कि महिलाओं के जीवनस्तर में काफी सुधार हुआ। पूरे गांव में वाईफाई की सुविधा है और बच्चों के लिए बाहर से टीचर भी बुलाए गए है। कुल मिलाकर हम इसको प्रियंका पंडित की मेहनत का परिणाम कह सकते है जिस वजह से उनका गांव दूसरो के लिए आदर्श बन गया है।

(5) माधुरी देवी (सरपंच- धनौल जालौर)

पूना में सर्विस करने वाली माधुरी देवी की कहानी बहुत दिलचस्प है, ऐसे इसलिए क्यूंकि उनका सरपंची का चुनाव लडने का कोई इरादा नहीं था और ना ही गांव में उठना बैठना था। जब सरपंची का चुनाव नजदीक आया तो गांव के कुछ लोगों ने इनको आमंत्रित किया और बोले की आप आयिए आपको हम अपना उम्मीदवार बनाना चाहते है।माधुरी देवी की टक्कर ओबीसी के एक प्रत्याशी से थी जो काफी रसूख वाला था उसके बावजूद ये निडर होकर चुनाव लड़ी।
इन्होंने एक दिन सभी को खाने पर बुलाया और अपनी बात रखी। माधुरी देवी का कहना था कि मै आपको रोज भोजन तो नहीं करा सकती लेकिन हा ये जरूर कहूंगी की अगर आप मुझे वोट देंगे तो मै आपके गांव की तस्वीर बदलने कि जिम्मेदारी लेती हूं और आपके जीवन स्तर को भी ऊंचा करने का प्रयत्न करूंगी। उनकी इस बात का लोगों पर बहुत असर हुआ लोगों ने माधुरी को विजयी बनाया। चुनाव जीतने के बाद माधुरी बैठी नहीं और सबसे पहले सड़कों की मरम्मत का काम करवाया, नालियों की साफ सफाई करवाई और जर्जर हो चुके नलों को ठीक करवाया। इनके यहां से करीब 300 लोगों ने प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आवेदन किया था,जिसमें से केवल 100 लोगों का नाम आया,जिसके बाद इन्होंने सरकार से गुजारिश की और सभी लोगों को आवास आवंटित हुआ।

(6) हज्जामा (सरपंच- उत्तकुर,तेलंगाना)

हज्जामा एक जोगिनी महिला है जोगिनी एक बहुत पुराना और कुंठित रिवाज है जिसके तहत लड़की को ईश्वर से विवाह करना होता है, और उसको सारे गांव की संपत्ति मानकर उससे बहुत से काम करवाए जाते है और उसे अत्याचार के साथ उत्पीड़न का भी शिकार होना पड़ता है। इनके साथ 11 वर्ष की उम्र से ही ऐसा हो रहा था। सामाजिक संपत्ति मानकर लगातार शोषण किया गया,जब होश संभाला तो देखा कि गांव में और भी कई जोगनिया है जिनके साथ ठीक वैसा ही व्यवहार होता है जैसा कि हज्जामा के साथ।
हज्जामा ने जोगनियों का समूह बनाया और एक संगठन बना दिया जिसमे उनको कुटीर उधोग आदि का ज्ञान देने का काम होता था और जोगनियां अपने पैर पर खड़ी हो रही थी। सरपंच का चुनाव लड़ा और जबरदस्त जीत हासिल करके उसी तन्मयता के साथ दोगुने उत्साह से काम में लग गई। एक एनजीओ की सहायता से गांव में ही कैंप लगवाकर बेरोजगार महिलाओं को रोजगार के गुण सीखने का मौका दिया , इनके काम से प्रेरणा लेकर आज करीब 11 एनजीओ कार्यरत है और अब महिलाएं स्वावलंबी होकर खुद से पैसे कमा रही है। वाकई हज्जामा के द्वारा किए गए काम उनके गांव की तस्वीर बदलने में मददगार रहे।

(7) गीता देवी (सरपंच- कच्चाबली राजसमंद)

गीता देवी को उनके गांव के लोग देवी का अवतार मानते है,क्यूंकि उन्होंने गांव के पुरुषों को शराब जैसे जहर से मुक्ति दिलाने मदद कि है। गीतादेवी राजसमंद के कच्चबली की सरपंच है। और एक जागरूक महिला है, चुनाव जीतने के बाद उनका सबसे बड़ा उद्देश्य था गांव को शराब मुक्त करना और इसके लिए उन्होंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। लेकिन एक बड़े तबके ने इनके इस काम का विरोध किया जिससे शराब मुक्ति के अभियान को झटका लगा। लेकिन गीता देवी हार मानने वालों में से नहीं थी, उन्होंने कानून का सहारा लिया और जन हस्ताक्षर अभियान चलाकर समर्थन प्राप्त किया और गांव को इस जहर से आजाद किया।
शराब बन्द करवाने के साथ इन्होंने साफ सफाई और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जिससे इनके ग्राम के बच्चे अच्छी शिक्षा ले सके और पौष्टिक आहार लेकर कुपोषण से भी बचें रहे।

(8) सदी असिरातल्ली (सरपंच- नेदुरापित्ता आंध्रप्रदेश)

गांव में रोजगार नहीं थे लोग काम की तलाश में बाहर जाते थे, सदी असिरातल्ली को ये सब बहुत खटकता था, लेकिन क्या करती पति ने एक पुत्री होने के बाद परित्याग कर दिया था और उधारी का बोझ बहुत था। तमिलनाडु ,जौनपुर और विजयवाड़ा में काम की तलाश में भटकी और अपने बचत से गांव में एक संस्था की नींव रखी जिसमें 18 से 55 वर्ष उम्र की महिलाओं को शामिल करना शुरू किया।
एक एनजीओ की मदद से प्राइमरी स्कूल खुलवाया और चार अन्य संस्थाओं को इसमें शामिल किया जिससे की गांव की व्यवस्था को सुधार जा सके।

(9) आदिलक्ष्मी (सरपंच- अंबलबलसा, आंध्रप्रदेश)

आदीलक्ष्मी का सपना था कि उनका गांव आसपास के गांवों के साथ पूरे देश में एक रोल मॉडल बने और इसके लिए उन्होंने अपने पिछड़े गांव मा सड़कों की मरम्मत करवाई,और साफ सफाई का काम अपने पैसे से करवाया।
गांव में नल थे लेकिन पानी के संचय के लिए टंकी नहीं थी, टंकियों की व्यवस्था करवाई और कृषि के कार्यों में भी सभी साधन मुहैया करवाए। गांव में ट्रैक्टर आने के लिए पुलिया नहीं थी जिसका निर्माण करके व्यापार को सुलभ बनाया।
आदिलक्ष्मी ने अपने प्रयासों से अपने गांव को खुले में शौच से मुक्त किया और बच्चो को स्कूल भेजने का प्रबंध किया जिससे कि उनका भविष्य बेहतर हो सके।

(10) कविता जोशी (सरपंच- शोभागपुरा, राजस्थान)

पेशे से इंजीनियर कविता जोशी को जनसेवा करने की धुन सवार थी जिसके चलते उन्होंने सोचा कि अगर उन्हें जनसेवा करनी है तो सरपंच एक अच्छी पदवी हो सकती है। लिहाजा उन्होंने सरपंच का चुनाव लडने का फैसला किया। चुनाव के समय वह गर्भवती थी जिसके बावजूद उन्होंने अपना सफर जारी रखा और बड़ी जीत हासिल की।
 
सरपंच बनने के बाद उन्होंने कई कामों का बीड़ा उठाया ,खुले में शौच मुक्ति, सड़कों की मरम्मत का काम, पानी की सुविधा, साफ सफाई, का विशेष ध्यान रखा और कमियाबी भी पाई। इनके सरपंच रहते इन सभी समस्याओं से निवारण मिला और महिलाएं अब पहले से ज्यादा खुलकर अपनी बातें रखने लगी।

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