जिमीकंद की खेती की संपूर्ण जानकारी | Suran ki kheti
ऐसे कई फसलें है जिनकी खेती करके किसान अपनी आय को दुगुनी कर सकते हैं। इन्हीं फसलों में एक है- जिमीकंद (सूरन) की खेती (jimikand ki kheti)
jimikand ki kheti: भारत में आज भी किसान परंपरागत फसलों की खेती करते आ रहे हैं, इससे उनके आय में किसी भी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। जबकि ऐसे कई फसलें है जिनकी खेती करके किसान अपनी आय को दुगुनी कर सकते हैं। इन्हीं फसलों में एक है- जिमीकंद (सूरन) की खेती (jimikand ki kheti)
जिमीकंद (सूरन) को भारत में कई नामों से जाता है। इससे कुछ इलाकों में सूरन (suran) और ओल (oal) भी कहते हैं। अभी तक जिमीकंद(सूरन) की खेती केवल व्यक्तिगत तौर पर की जाती रही है। लेकिन आज देश के कई किसान ऐसे है जो इसकी खेती करके लाखों रुपए कमा रहे हैं।
तो आइए आज द रुरल इंडिया के इस लेख में जिमीकंद (सूरन) की खेती कैसे करें? जानें।
जिमीकंद (सूरन) की खेती पर एक नजर
जिमीकंद(ओल) की खेती (jimikand ki kheti) एक औषधीय फसल के रूप में की जाती है। इसकी खेती बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश सहित भारत के कई राज्यों में की जाती है।
जिमीकंद(सूरन) में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, खनिज, कैल्शियम, फॉस्फोरस समेत कई तत्व पाए जाते है। इसका उपयोग बवासीर, पेचिश, दमा, फेफड़ों की सूजन, उबकाई और पेट दर्द जैसी बीमारियों में खूब किया जाता है।
जिमीकंद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
जिमीकंद(सूरन) गर्म जलवायु का पौधा है। इसकी खेती के लिए 20 से 35 डिग्रीसेंटीग्रेड का तापमान काफी उपयुक्त होता है। आपको बता दें, बुआई के समय बीजों को अंकुरण के लिए अधिक तापमान की जरूरत पड़ती है। यही कारण है कि इसकी बुआई अप्रैल से मई के महीने में की जाती है जबकि पौधों की बढ़वार के दौरान अच्छी बारिश होना जरूरी है।
जिमीकंद की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव कैसे करें
अभी तक परपंरागत खेती में किसान ओल की खेती (oal ki kheti) को कम महत्व के जमीन पर कर आ रहे हैं लेकिन अधिक उत्पादन के लिए इसकी खेती भूरभुरी दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती जलजमाव वाले खेत में नहीं करना चाहिए। इसकी खेती के लिए 5.5 से 7.2 तक की पीएचमान वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होता है।
जिमीकंद (सूरन) की उन्नत किस्में
जिमीकंद (ओल) की कई उन्नत किस्में हैं। जिन्हें उनकी गुणवत्ता, पैदावार और उगने के मौसम के आधार पर तैयार किया गया है। जैसे- गजेन्द्र, एम -15, संतरागाछी, कोववयूर इत्यादि। आपको कौन-सी किस्म का चयन करना है। इसका चुनाव आप अपने क्षेत्र और जलवायु के आधार पर तय कर सकते हैं।
ओल की खेती (oal ki kheti) का उपयुक्त समय और खेत की तैयारी
- ऐसे तो जिमीकंद (सूरन) की खेती भारत में बारिश के मौसम से पहले और बाद में की जाती है। लेकिन अप्रैल-मई जून का महीना सबसे उपयुक्त होता है।
- सिंचाई का प्रबंध होने पर इसे आप मार्च के महीने में लगा सकते हैं।
- यदि आप जिमीकंद (सूरन) की अच्छी पैदावार प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको जिमीकंद (सूरन) के बीजों को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें।
- इसके लिए खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें, ताकि खेत की मिट्टी में अच्छे से धूप लग सके।
- इसके बाद खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद को डाल कर फिर से अच्छे से जुताई कर गोबर को मिट्टी में मिला लें।
- इसके बाद खेत में अंतिम जुताई के समय पोटाश 50 KG, 40 KG यूरिया और 150 KG डी.ए.पी. की मात्रा अच्छे से मिलाकर खेत में छिड़ककर फिर से 2-3 बार तिरछी जुताई कर दें, जिससे खाद अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाए।
- इसके बाद बीज रोपाई के लिए नालियों को बना कर तैयार कर लें।
- जिमीकंद(सूरन) के बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें अच्छे से उपचारित जरुर कर लें।
- जिमीकंद(ओल) के बीजो को तैयार की गई नालियों में लगा दें।
- कंद(बीजों) को चयन करते समय बड़े कंदों का चयन करें जिसका वजन 200 ग्राम से कम नहीं हो।
सूरन के पौधों की सिंचाई
जिमीकंद (सूरन) की खेती (oal ki kheti) में रोपाई के बाद अधिक सिंचाई की जरूरत पड़ती है। बरसात में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15-20 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है।
उर्वरक प्रबंधन एवं खरपतवार नियंत्रण
जिमीकंद(सूरन) के खेत में बहुत ज्यादा खरपतवार नहीं होती है। लेकिन खेत से घास और खरपतवार को हटा देने से रोग लगने की संभावना नहीं रहती है। बीज के अंकुरित होने के बाद इसके पौधों को गुड़ाई करके पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा दें।
जिमीकंद(ओल) की अच्छी उपज हेतु खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल करना बहुत ही आवश्यक होता है। इसके लिए 10-15 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, यूरिया, फास्फोरस एवं पोटाश 80:60:80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करें। इसके अलावा बुआई के पहले गोबर की सड़ी खाद को जुताई के समय खेत में मिला दें।
जिमीकंद (सूरन) की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें
- बुआई के बाद कंदों को पुआल या पत्तियों से ढक दें।
- यह बहुत ही अच्छी मल्चिंग का काम करता है।
- मल्चिंग से सूरन का अंकुरण जल्दी होता है, खेत में नमी बनी रहती है।
- खरपतवार कम होने के साथ ही अच्छी उपज प्राप्त होती है।
- यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो एक या दो हल्की सिंचाई अवश्य कर दें।
- बरसात में पौधों के पास जल जमाव न होने दें।
- अधिक कमाई के लिए आप अन्तर्वर्ती फसलें जैसे भिंडी, मूंग, मक्का, खीरा, कद्दू आदि फसलें ले सकते हैं।
जिमीकंद(सूरन) की खेती में कमाई और उत्पादन
जिमीकंद(ओल) की खेती में अपार संभावनाएं है।औषधीय फसल होने की वजह से बाजार में इसकी मांग बहुत अधिक होती है। बाजार में इसका मूल्य 30 रुपए से लेकर 50 रुपए तक मिल जाता है। बात करें पैदावार की तो प्रति हेक्टयर 70 से 80 टन की उत्पादन हो जाता है, जोकि अन्य फसलों से 10 गुना अधिक है। इसकी भंडारण में समस्या नहीं आती है। इसे आप खेत या घर में स्टोर कर सकते हैं। बाजार भाव मिलने पर आप इसे आसानी से बेच सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न- सूरन कितने दिन में तैयार होता है?
उत्तर- सूरन लगभग 200 से 240 दिनों में तैयार हो जाता है।
प्रश्न- सूरन कैसे लगाया जाता है?
उत्तर- सूरन कंद से लगाया जाता है।
प्रश्न- सूरन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर- विश्वभर में सूरन के सैकड़ों प्रजाातियां पाई जाती हैं जिसमें सफेद, गुलाबी और काले रंग के सूरन प्रमुख हैं।
प्रश्न- सूरन कहां उगता है?
उत्तर- सूरन मटियार दोमट मिट्टी में उगता है।
ये तो थी जिमीकंद की खेती (jimikand ki kheti/oal ki kheti) की बात। लेकिन, The Rural India पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इस लेख को शेयर सकते हैं।