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सोयाबीन की खेती की संपूर्ण जानकारी | soyabeen ki kheti

सोयाबीन (Soyabean) भारत की प्रमुख फसल है। सोयाबीन (Soyabean) एक ऐसी फसल है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।

Soyabeen ki kheti: सोयाबीन (Soyabean) भारत की प्रमुख फसल है। विश्व में सोयाबीन उत्पादन में भारत का चौथा स्थान है। सोयाबीन (Soyabean) एक ऐसी फसल है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा होती है।

सोयाबीन को पीला सोना कहा जाता है। इसमें प्रोटीन के अलावा, मिनरल्स, विटमिन बी कॉम्प्लेक्स और विटमिन ए की भी भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसलिए आम लोगों से लेकर जिम करने वाले लोग भी प्रोटीन के सेवन के लिए सोयाबीन को तरजीह देते हैं। 

 

सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) में अपार संभावनाएं हैं। यदि आप मुनाफे की खेती करना चाहते हैं, सोयाबीन की खेती आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प है। 

 

तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) को विस्तार से जानें, जिससे किसान भाइयों को इसकी खेती करने में आसानी हो। 

इस लेख में आप जानेंगे

1. सोयाबीन की फसल के लिए जरूरी जलवायु

2. खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

3. खेत की तैयारी

4. बीज और बुआई का समय

5. सोयाबीन की उन्नत किस्में

6. सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन 

7. सोयाबीन में लगने वाले कीट और रोग प्रबंधन

8. सोयाबीन की कटाई

9. सोयाबीन खेती के फायदे

10. सोयाबीन की खेती में लागत और कमाई

 

सोयाबीन की फसल के लिए जरूरी जलवायु

सोयाबीन गर्म जलवायु का पौधा है। इसकी खेती के लिए 18°C से 38°C औसत तापमान की जरूरत होती है। भारत में इसकी फसल खरीफ के मौसम में की जाती हैं। 

सोयाबीन की खेती (soyabean cultivation) पर एक नजर

मध्यप्रदेश में सोयाबीन का सबसे अधिक उत्पादन होता है। 

सोयाबीन की अनुसंधान और विकास के लिए मध्य प्रदेश इंदौर शहर में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है। 

भारत में सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) के लिए मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक राजस्थान एवं आंध्रप्रदेश में की जाती हैं। 

सोयाबीन की खेती के लिए मिट्टी

सोयाबीन की खेती (soyabean cultivation) के लिए ढेला रहित और भुरभुरी मिट्टी सबसे अच्छा होती है। लेकिन खेती करते वक्त ध्यान रखें कि फसलों में अधिक पानी न जाएं अन्यथा फसलों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। सोयाबीन बोते समय मेड़ और कूड़ जरूर बनाएं जिससे फसलों को नुकसान ना पहुंचे।

 

सोयाबीन के लिए खेत की तैयारी

सोयाबीन की खेती (soyabean cultivation) के लिए खरीफ का मौसम उपयुक्त होता है। वर्षा होने से पहले सोयाबीन के खेत में 2-3 बार जुताई करके खेत को अच्छे से तैयार कर लें। जिससे की खेत में हानिकारक कीट नष्ट हो जाएं। गर्मी के मौसम में गोबर खाद खेत में डालकर उसकी अच्छी से जुताई कर लें। 

 

बीज और बुआई का समय

सोयाबीन की बुआई मानसून के आते ही शुरू हो जाती हैं। अगर आप उत्तर भारत में सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) करने के बारे में विचार कर रहे हैं तो आपको वहां पर इस खेती के लिए जून से जुलाई के पहले सप्ताह अच्छा होता है। खेत में प्रति एकड़ 25 से 30  किलो बीज की बुआई दर अच्छी होती है। बीज की दूरी 4 से 7 सेमी की होनी चाहिए। बीज को खेत में 2.5 सेमी से 5 सेमी की गहराई तक बोना चाहिए। बुआई से पहले सोयाबीन के बीज की उपचार ज़रूर कर लें।

सोयाबीन की उन्नत किस्में

जे. एस-335

सोयाबीन के इस किस्म के बीजों को किसानों के लिए उत्तम माना जाता है। क्योंकि यह बीज 95 से 100 दिनों के अंदर तैयार हो जाते है। इस किस्म में अन्य के मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।

 

वजन- 10 से 13 दानों का वजन 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर

 

जे.एस. 93-05

सोयाबीन के इस किस्म के बीज 90 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्में के सोयाबीन में अर्द्ध-परिमित वृद्धि किस्म, बैंगनी फूल. कम चटकने वाली फलियां पाई जाती है।

 

वजन- 13 बीजों का 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

 

एन.आर.सी-86

इस किस्म के बीज 90 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म के सोयाबीन की फूल सफेद और इसकी नाभि रोयेंदार होती है। इस किस्म में तना-मक्खी कीट लगने की संभावना कम होती है। 

 

वजन- 13 बीज का 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर

 

एन.आर.सी-12

यह किस्म 90 से 95 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है। इस किस्म गर्डल बीटल और तना-मक्खी की प्रति सहनशीलता अधिक होती है। इस किस्म में पीला मोजेक रोग लगने की संभावना बहुत कम होती है। 

 

वजन- 13 बीज का 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

 

जे. एस. 95-60

यह किस्म 80 से 85 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है।

 

वजन – 13 बीज का 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर

 

एन.आर.सी-7

यह किस्म 90 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है। 

 

वजन- 13 बीज का 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर ।

 

जे.एस. 20-29

इस किस्म में फूल बैंगन, पीला दाना, पीला विषाणु रोग, चारकोल राट, बैक्टीरियल कीट प्रतिरोधी माना जाता है। यह किस्म 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

 

वजन- 13 बीज का 100 ग्राम

उत्पादन क्षमता- 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर

 

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन 

सोयाबीन की खेती (soyabean cultivation) में सिंचाई की आवश्यकता होती है। सोयाबीन की खेती में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर 5- 6 सिंचाई जरूर करें। खेत में नमी नहीं होने पर उपज अच्छी नहीं होती है। 

 

नाइट्रोजन खाद को प्रति हेक्टेयर 10 से 15 किलो डालें। फास्फोरस को 32 किलो प्रति हेक्टेयर और पोटाश 15 किलो प्रति हेक्टेयर से डाल सकते हैं। यह खेत में जब ही डालें जब मिट्टी में पोटाश और फास्फोरस की कमी हो।

 

सोयाबीन के लिए कीटनाशक दवाइयां

सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) में खास ध्यान देने की जरुरत होती है। क्योंकि इसकी फसल में कई तरह के कीट लग जाते है। जो फसल को जल्द ही खराब कर देते है।

 

वैसे तो सोयाबीन की खेती में दो तरह के रोग अधिकतर देखने को मिलते है।

1. पत्तियों पर धब्बा रोग

2. पीला मोजेक रोग

 

पत्तियों पर धब्बा रोग

यह रोग सोयाबीन की पत्तियों और तने पर हल्के लाल, कत्थाई रंग के दिखाई देते है। जो पत्तियों को समय से पहले की टूट जाती है। इसके रोकथाम के लिए आप खेत में कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाइल का 0.05 % घोल का छिड़काव बुआई के 30 दिन पर और फिर 15 दिनों के बाद दोबारा इसका छिड़काव करें।

 

पीला मोजेक रोग

इस रोग को एक वायरस बीमारी कहा जा सकता है। जो बहुत तेजी से फैलती है। इसमें मक्खी पौधे के तने पर अंडे देकर उसमें इल्ली उत्पन्न कर देती है। जो अंदर से जाइलम को नष्ट कर देती है। जिससे फसल पीली पड़ने लगती है और जल्द ही फसल नष्ट हो जाती है। इसके रोकथाम के लिए आप सबसे पहले जिस पौधे में यह रोग के संक्रमित दिखाई दे उसे फौरन उखाड़ दे और उसे कहीं दूर जाकर दबा दें और फिर पूरी फसल पर इमिडाक्लोप्रीड, लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन का छिड़काव करें।

 

सोयाबीन की कटाई

सोयाबीन की फसल 90-100 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है। जब सोयाबीन के पत्ते सूख के गिरने लगे और फलियां सुख जाती है। तो इस समय को ही सोयाबीन की कटाई करें। कटाई के बाद इसे धूप सूखने दें और फिर इसे जमा करके थ्रेशिंग कराएं।

 

सोयाबीन खेती के फायदे

  • सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) बाकी खेती के मुकाबले करना बेहद आसान है। इसमें मेहनत कम लगती हैं।
  • बाजार में इसका भाव अधिक होने से लाभ की अधिक प्राप्ति होती हैं।
  • इसका सबसे अच्छा फायदा यह है कि इसे आप अधिक समय से जमा करके रख सकते हैं। यह कभी खराब नहीं होती है।
  • सोयाबीन का सेवन एक सीमित मात्रा में करने से दिल संबंधित बीमारी नहीं होती। डॉक्टर भी इसका सेवन करने की सलाह देते है।
  • सोयाबीन का सेवन करने से आप मानसिक रोग से छुटकारा पा सकते हैं।
  • सोयाबीन की फसल का उपयोग बहुत सारे उत्पाद बनाने के लिए भी आप कर सकते हैं। जैसे की खाद्य तेल, सोयाबीन, सोया आटा आदि।
  • बाजार में सोयाबीन का भाव हमेशा उच्च रहता है।

 

सोयाबीन की खेती में लागत और कमाई

सोयाबीन की खेती (soyabeen ki kheti) में किसानों को  कम लागत में अधिक मुनाफा होता हैं। इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 30-40 हजार रुपए की लागत आती है। कमाई की बात करें, तो प्रतिहेक्टेयर किसानों को 80 हजार से 1 लाख रुपये तक की शुद्ध लाभ मिल जाता है। 

 

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