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सिंघाड़ा की खेती कैसे करें, यहां जानें | Singhara ki kheti

मौजूदा दौर में सिंघाड़ा की खेती (singhara ki kheti) अच्छी आय का एक प्रमुख साधन है, इसीलिए इसे नकदी फसल कहा जाता है।

Singhara ki kheti: आजकल खेती में लोगों की दिलचस्पी फिर से बढ़ रही है। लोग इस तरह की खेती करने पर जोर दे रहे हैं जिनमें उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिल सके, ऐसी ही एक फसल है, सिंघाड़ा (water chestnut) 

 

जी हां! ठंड के समय में सड़क किनारे सिंघाड़ा तो लगभग सभी ने खाया होगा। सिंघाड़ा (singhada) में कई पौषक तत्व मौजूद होते हैं। इससे बने आटा का उपयोग व्रत-त्योहारों में खूब किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिंघाड़े की खेती कैसे होती है और ये आपके लिए कितनी फायदेमंद हो सकती है?

 

मौजूदा दौर में सिंघाड़ा की खेती (singhara ki kheti) अच्छी आय का एक प्रमुख साधन है, इसीलिए इसे नकदी फसल कहा जाता है। किसान सिंघाड़े की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें, तो इससे वे अधिक उत्पादन और मुनाफा ले सकते हैं। 

Singhara ki kheti : सिंघाड़ा की खेती

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस लेख में सिंघाड़ा की खेती (singhara ki kheti) को विस्तार से जानें।  

 

इस लेख में आप जानेंगे

  • सिंघाड़ा के लिए ज़रूरी जलवायु
  • खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
  • सिंघाड़ा की खेती का सही समय
  • खेती की तैयारी कैसे करें
  • सिंघाड़ा की उन्नत किस्में
  • सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
  • रोग एवं कीट प्रबंधन कैसे करें।
  • सिंघाड़ा की खेती में लागत और कमाई

Singhara ki kheti : सिंघाड़ा की खेती

सिंघाड़ा एक नकदी फसल है। यह एक जलीय पौधा है जिसकी जड़ पानी के अंदर रहती है। इसका इस्तेमाल सब्जी, फल या सूप किसी भी  तरह से किया जाता है। इसके अलावा कई तरह के रोगों में यह औषधि का काम करता है।

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सिंघाड़ा के लिए ज़रूरी जलवायु 

सिंघाड़ा (water chestnut) उष्णकटिबन्धीय जलवायु की फसल है। इसकी खेती उतर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में खूब होती है।

 

इसकी खेती के लिए बेहद ज़रूरी है कि 1 से 2 फीट तक पानी का भराव रहे क्योंकि ये खेती स्थिर जल वाले इलाके में ही की जा सकती है।

 

खेती के लिए उपयोगी मिट्टी

जलीय पौधा होने के कारण मिट्टी इसकी खेती के लिए इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रखती है, लेकिन यह पाया गया है कि जब जलाशयों की मिट्टी सामान्य से ज्यादा, भुरभुरी होती है तो सिंघाड़ा बेहतर उपज देता है।

 

इन सब के साथ ही खेतों में ह्युमस की मात्रा अच्छी होनी चाहिए। सिंघाड़ा उत्पादन हेतु दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6.0 से 7.5 तक होता है अधिक उपयुक्त होती है।

 

सिंघाड़े की बुआई का सही समय

इस फसल के लिए पानी की ज़रूरत रहती है इसलिए मानसून के समय इसके लिए एकदम बेहतर समय माना जाता है। मॉनसून की बारिश के साथ ही सिघाड़े की बुआई शुरू हो जाती है। जून-जुलाई में सिंघाड़ा बोया जाता है। आमतौर पर छोटे तालाबों, पोखरों में सिंघाड़े का बीच बोया जाता है लेकिन मिट्टी के खेतों में गड्ढे बनाकर उसमें पानी भरके भी पौधों की रोपाई की जाती है। जून से दिसंबर यानी 6 महीने की सिंघाड़े की फसल से बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है।

सिंघाड़े के लिए खेती की तैयारी

इस फसल के लिए नर्सरी तैयार करते समय ध्यान रखें कि आप जनवरी-फरवरी के महीने में नर्सरी तैयार करें। अगर आप बीज से पौध तैयार कर रहे हैं तो जनवरी फरवरी के महीने में बीज को बो दें और जब पौध रोपण के लायक हो जाए तो मई जून के महीने में इनमें से एक एक मीटर लंबी बेल तोड़ कर उन्हें तालाब में रोप देना चाहिए। 

 

अगर आप इस बात को लेकर परेशान है कि बीज कहां से लें तो इसके लिए आप उद्यान विभाग या अपने राज्य के बीज निगम से संपर्क कर सकते हैं। लेकिन अगर आप पहले से ही सिघाड़ा की खेती (singhara ki kheti) कर रहे हैं तो अगली फसल के लिए दूसरी तुड़ाई के स्वस्थ पके फलों का इस्तेमाल बीज के रूप में कर सकते है।

 

यहां आपको यह ध्यान देना होगा कि आपको इन्हें जनवरी तक पानी में भिगोकर ही रखना होगा और अंकुरण से पहले यानि कि फरवरी के पहले सप्ताह तक इन्हें टैंक या तालाब में डाल दें। मार्च में जब फलों से बेल निकलने लगे तो जून या जुलाई के महीने में आप रोपण कर सकते हैं।

 

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन

इस फसल में आपको बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है। लेकिन खाद की ज़रूरत कम पड़ती है। इसके लिए आपको निम्न तरह की खाद की ज़रूरत पड़ती है। पौध रोपण से पहले प्रति हेक्टेयर के हिसाब से  8 से 10 टन गोबर की खाद डालें। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 40 किलो नाइट्रोजन और 60 किलो फोस्फोरस इस्तेमाल करें। प्रति हेक्टेयर के हिसाब  से 40 किलो पोटास डालें। इन तीनों की एक तिहाई मात्रा रोपने से पहले इस्तेमाल करें और बची हुई नाइट्रोजन को एक एक महीने के अंतराल पर डालें।

 

सिंघाड़ा की उन्नत किस्में

सिंघाड़े की दो तरह की किस्में देखने को मिलती है।

लाल छिलके वाली 

इस किस्म की सबसे उन्नत जाति VRWC1 और VRWC 2 है। लाल छिलके वाली किस्म को बहुत कम उगाया जाता है क्योंकि ये कुछ दिन में ही काली पड़ने लगती हैं और बाज़ार में उनका दाम अच्छा नहीं मिल पाता है।

हरे छिलके वाली

व्यापारिक तौर पर यह किस्म काफी प्रचलित है। इसकी सबसे उन्नत जाती है VRWC 3। यह लंबे समय तक ताज़ी रहती है और बाज़ार में काफी बिकती है।

 

मौजूदा किस्मों में जल्द पकने वाली जातियां हरीरा गठुआ, लाल गठुआ, कटीला, लाल चिकनी गुलरी, है और इनकी तुड़ाई 120 से 130 दिन में होती है। वहीं देर से पकने वाली किस्में- करिया हरीरा, गुलरा हरीरा, गपाचा में पहली तुड़ाई 150 से 160 दिनों में होती है।

 

इसके अलावा एक और चीज जो ध्यान में रखनी ज़रूरी है वो ये कि कांटे वाली सिंघाड़ा किस्मों की जगह बिना कांटे वाली सिंघाड़ा किस्मों का इस्तेमाल करें क्योंकि ये किस्में ज्यादा उत्पादन देती है और इनकी गोटियों का आकार भी बाकी किस्मों के मुकाबले बड़ा होता है जिसके कारण तुड़ाई आसान हो जाती है।

 

सिंघाड़ा की खेती (water chestnut farming) में रोग एवं कीट प्रबंधन

सिंघाड़े की खेती में ज्यादातर सिंघाड़ा भृंग, नीला भृंग, माहू, घुन और लाल खजूरा नाम के कीट का खतरा होता है, जो फसल को 25%-40% तक कम कर देते है।

इसके अलावा लोहिया और दहिया रोग का खतरा होता है। इससे बचाव के लिए हमें समय रहते कीटनाशक का इस्तेमाल कर लेना चाहिए।

 

सिंघाड़ा की खेती (singhara ki kheti) में लागत और कमाई

सरल शब्दों में समझें तो लागत और कमाई को इस तरह से समझ सकते हैं.

  • हरे फल – 80 से 100 क्विंटल/ हेक्टेयर।
  • सूखी गोटी – 18 से 20 क्विंटल/ हेक्टेयर।
  • कुल लागत – लगभग 50000 रू/ हेक्टेयर।

 

इस तरह से हम देखते हैं कि कुल आमदनी में से लागत निकल कर प्रति हेक्टर 1 लाख का शुद्ध लाभ हो जाता है। हरे सिंघाड़े को आप तुरंत की बाज़ार में बेच सकते हैं, साथ ही आप चाहें तो इसे सुखाकर भी बेच सकते हैं।

 

सिंघाड़ा खाने के फायदे (benefits of water chestnut)

  • अस्थमा के मरीजों के लिए सिंघाड़ा बहुत फायदेमंद होता है।
  • सिंघाड़ा बवासीर जैसी मुश्किल समस्याओं से भी निजात दिलाने में कारगर है।
  • सिंघाड़ा खाने से फटी एड़ि‍यां भी ठीक हो जाती हैं। इसके अलावा शरीर में किसी भी स्थान पर दर्द या सूजन होने पर इसका लेप बनाकर लगाने से बहुत फायदा होता है।
  • इसमें कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसे खाने से हड्ड‍ियां और दांत दोनों ही मजबूत रहते हैं। साथ ही यह आंखों के लिए भी फायदेमंद है।
  • प्रेग्नेंसी में सिंघाड़ा खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है। इसके अलावा सिंघाड़ा खाने से पीरियड्स की की समस्याएं भी ठीक हो जाती है। 

 

ये तो थी, सिघाड़ा की खेती (water chestnut farming in hindi) से जुड़ी सभी जानकारी। लेकिन, The Rural India पर आपको मशीनीकरण, सरकारी योजना और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

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