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शहतूत की खेती की संपूर्ण जानकारी | shahtoot ki kheti

शहतूत की खेती (shahtoot ki kheti) रेशम के कीटों के लिए की जाती है। इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं।

shahtoot ki kheti: शहतूत एक बहुत ही स्वादिष्ट और लाजवाब फल है। शहतूत की खेती (shahtoot ki kheti) रेशम के कीटों के लिए की जाती है। इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। इसका फल सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। शहतूत के फल हृदय, आंख, हड्डियों, मानिसक स्वस्थ्य और आंत की सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है। शहतूत एक सदाबहार वृक्ष है। इसे मोरस अल्बा के नाम से भी जाना जाता है। 

 

शहतूत की खेती (shahtoot ki kheti) से किसान रेशम पालन के साथ-साथ इसके फलों का बिजनेस कर सकते हैं। 

शहतूत की खेती से कमाएं अधिक मुनाफा, यहां जानें | mulberry cultivation in hindi

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस लेख में शहतूत की खेती (mulberry cultivation in hindi) के बारे महत्वपूर्ण बातें जानें। 

 

शहतूत की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और मिट्टी (Climate and soil required for mulberry cultivation)

शहतूत की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधों की अच्छी बढ़वार लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। शहतूत के लिए दोमट और चिकनी बलुई मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए।

 

भारत में शहतूत की खेती मुख्य रूप से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में की जाती है। 

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शहतूत की खेती में ध्यान देने वाली बातें

  • रोपाई का उपयुक्त समय जून से जुलाई और नवंबर से दिसंबर का महीना होता है। 
  • रोपाई करते समय पंक्तियों के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा कलमों के बीच की दूरी 8 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। 
  • कलम की रोपाई के लिए 8 महीने पुरानी टहनियों का प्रयोग करें।
  • कलमों को तिरछी स्थिति में लगाएं और आसपास की मिट्टी को मजबूती से दबाएं।
  • रोपाई के तुरंत बाद पौधों को पानी दें।

 

शहतूत की खेती के लिए प्रशिक्षण संस्थान (Training Institute for Mulberry Cultivation)

शहतूत की खेती के लिए प्रशिक्षण संस्थान मैसूर, कर्नाटक में है। यहां किसानों को खेती से लेकर रेशम पालन और मार्केटिंग सभी विषयों पर प्रशिक्षण देती है। केन्द्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, मैसूर, कर्नाटक किसानों को सेरीकल्चर की संपूर्ण ज्ञान प्रदान करता है। 

 

वेबसाइट- 

केन्द्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, मैसूर, कर्नाटक

 

शहतूत की खेती में लागत और कमाई (Cost and Earnings in Mulberry Cultivation)

शहतूत के पौधे बागानों में लगाए जाते हैं। एक हेक्टेयर खेत में शहतूत के पौधे लगाने का खर्च एक लाख से 1.5 लाख रुपए तक आती है। यह लागत एक वर्ष के बाद बहुत ही कम हो जाती है। 2 से 3 साल बाद इसके पौधे रेशम के कीड़े पालने योग्य हो जाते हैं। 

 

शहतूत की पत्तियों का उपयोग पशु चारे के लिए किया जाता है। इसकी सूखी पत्तियों का उपयोग बत्तख और मुर्गियों को खिलाने के लिए किया जाता है। यही कारण है कि किसान इसकी खेती कर बहुत अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

 

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