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मुर्गियों में होने वाले प्रमुख रोग और उनका बचाव | poultry farming diseases in hindi

मुर्गियों में होने वाली बीमारियों के चलते मुर्गी पालकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि मुर्गी पालन सुरक्षित तरीके से करें।

poultry farming diseases in hindi: हमारे देश में मुर्गी पालन (poultry farming) आमदनी का एक बेहतरीन विकल्प है। लेकिन, कभी-कभी मुर्गियों में होने वाली बीमारियों के चलते मुर्गी पालकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि मुर्गी पालन सुरक्षित तरीके से किया जाए।

तो आइए, आज के इस ब्लॉग में मुर्गियों में होने वाले प्रमुख रोग (murgiyon ki bimari) और उनके निदान के बारे में जानें।

यहां आप जानेंगे

  • ऐसी कौन सी बीमारियां हैं, जिनसे मुर्गियों को खतरा है?
  • मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए आपको क्या सावधानियां बरतनी चाहिए
  • किस तरह टीकाकरण जैसे उपाय अपनाने चाहिए?

मुर्गियों में होने वाले कुछ प्रमुख रोग (Some major diseases of chickens in hindi)

रानीखेत (Ranikhet disease)

रानीखेत मुर्गियों में होने वाली सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। यह एक संक्रामक रोग है, जो मुर्गी पालन के लिए अत्यधिक घातक है। इसमें मुर्गियों को सांस लेने में परेशानी होती है और उनकी मौत हो जाती है। संक्रमित होने पर मुर्गियां अंडा देना भी बंद कर देती हैं। पैरामाइक्सो वायरस की वजह से ये बीमारी होती है।

लक्षण

  • मुर्गियों में तेज़ बुखार होता है
  • सांस लेने में दिक्कत होती है
  • अंडों के उत्पादन में कमी आती है
  • मुर्गियां हरे रंग की बीट करती हैं
  • कभी-कभी पंख और पैरों को लकवा मार जाता है
  • एक ही दिन में कई मुर्गियां मर जाती हैं

बचाव

इस बीमारी का अब तक कोई ठोस इलाज नहीं है। हालांकि, टीकाकरण के ज़रिए इससे बचाव संभव है। R2B और एन.डी.किल्ड जैसे वैक्सीन इनमें अहम हैं। जानकारों के मुताबिक 7 दिन, 28 दिन और 10 हफ्ते में मुर्गियों का टीकाकरण किया जाना सही होता है।

बर्ड फ्लू (bird flu)

यह मुर्गियों और दूसरे पक्षियों में होने वाली एक घातक बीमारी है। इन्फ्लूएंजा-ए वायरस की वजह से यह बीमारी होती है। यदि एक मुर्गी को ये संक्रमण हो जाए, तो दूसरी मुर्गियां भी बीमार पड़ने लगती हैं। संक्रमित मुर्गी की नाक व आंखों से निकलने वाले स्राव, लार और बीट में वायरस पाया जाता है। 3 से 5 दिनों के भीतर इसके लक्षण दिखने लगते हैं।

लक्षण

  • मुर्गी के सिर और गर्दन में सूजन आ जाती है
  • अचानक अंडे देने की क्षमता कम हो जाती है
  • मुर्गियां खाना-पीना बंद कर देती हैं
  • मुर्गियां तेज़ी से मरने भी लगती हैं

बचाव

बर्ड फ्लू का कोई परमानेंट ट्रीटमेंट नहीं है। इस बीमारी से बचाव ही एकमात्र उपाय है।

फाउल पॉक्स (foul pox)

इस बीमारी में मुर्गियों में छोटी-छोटी फुंसियां हो जाती हैं। आंख की पुतलियों और सिर की त्वचा पर इन्हें आसानी से देखा जा सकता है। ये भी एक वायरस जनित रोग है, जिसका संक्रमण तेज़ी से फैलता है।

लक्षण

  • आंखों से पानी बहने लगता है
  • सांस लेने में परेशानी होती है
  • मुर्गियां खाना-पीना कम कर देती हैं
  • अंडे देने की क्षमता में कमी आती है
  • मुंह में छाले पड़ जाते हैं
  • संक्रमण बढ़ने पर मुर्गियों की मौत भी हो जाती है

बचाव

देखा जाए तो बचाव ही इसका सबसे बेहतर इलाज है। हालांकि, लेयर मुर्गियों में 6 से 8 हफ्तों में वैक्सीनेशन कर इससे बचा जा सकता है।

मैरेक्स (marex)

यह मुर्गियों में होने वाले किसी कैंसर की तरह है। ये बीमारी धीरे-धीरे फैलती है और मुर्गियां कमज़ोर होने लगती हैं। साथ ही मुर्गियों के बाहरी और अंदरूनी अंग बुरी तरह से प्रभावित होने लगते हैं। हरपीज़ वायरस की वजह से ये बीमारी होती है।

लक्षण

  • पैरों, गर्दन और पंखों को लकवा मार जाता है
  • मुर्गियां आहार भी सही तरह से नहीं खा पाती हैं
  • मुर्गियां लंगड़ाने लगती हैं
  • सांस लेने में परेशानी होती है
  • अंदरूनी अंगों में ट्यूमर तक होने लगते हैं

बचाव

टीकाकरण ही मुर्गियों को इस बीमारी से बचाता है। हैचरी में पहले दिन ही चूज़े को टीका लगाया जाता है, ताकि उसे इस बीमारी से बचाया जा सके। लेयर और ब्रॉयलर, दोनों तरह की मुर्गियों को ये टीका लगाया जाता है।

गम्बोरो (gumboro)

गम्बोरो बीमारी चूज़ों में ज़्यादा पाई जाती है। रियो वायरस की वजह से ये रोग फैलता है। यदि एक मुर्गी को ये रोग लग जाए, तो बाड़े में अन्य मुर्गियां भी संक्रमित हो जाती हैं। करीब 2 से 15 हफ्ते की मुर्गियों में इसका संक्रमण देखा जा सकता है।

लक्षण

  • मुर्गियों को भूख कम लगती है
  • वो सुस्त और कमज़ोर पड़ने लगती हैं
  • शरीर में कंपकंपी भी होती है
  • बीट का रंग सफेद हो जाता है
  • मुर्गियों को प्यास ज़्यादा लगती है
  • कभी-कभी मुर्गियों की मौत भी हो जाती है

बचाव

वायरस स्ट्रेन के आधार पर टीकाकरण किया जाता है। बीमारी की रोकथाम के लिए माइल्ड, इंटरमीडिएट, इन्वेंसिव इंटरमीडिएट और हॉट स्ट्रेन टीके का इस्तेमाल होता है। पशु चिकित्सक ही टीका तय करते हैं।

लीची रोग (litchi disease)

ये चूज़ों में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है। संक्रामक होने की वजह से यह फैलती भी तेज़ी से है। इसमें मुर्गियों का दिल और लीवर प्रभावित होता है। एडिनो वायरस इस बीमारी की प्रमुख वजह है। ये बीमारी इतनी घातक है कि बाड़े की सारी मुर्गियां मर सकती हैं।

लक्षण

  • ब्रॉयलर्स में ये बीमारी आम है
  • चूज़े सुस्त पड़ने लगते हैं
  • इम्यूनिटी भी घटने लगती है
  • लीवर में पानी भर जाता है
  • दिल छिली हुई लीची की तरह दिखने लगता है

बचाव

इस बीमारी से बचाव के लिए करीब 7 दिन के चूज़े को HP वैक्सीन दी जाती है।

फाउल कॉलरा (foul cholera)

ये बीमारी पास्चुरेला मल्टोसिडा नामक बैक्टीरिया से फैलती है। ये एक संक्रामक बीमारी है, जिससे कई मुर्गियां एक साथ मर जाती हैं।

लक्षण

  • मुर्गियों में अजीब सी बेचैनी रहती है
  • शरीर का तापमान अधिक रहता है
  • हरे और पीले रंग की बीट होती है
  • सांस लेने में दिक्कत होती है
  • कलगी में सूजन आ जाती है

बचाव

इस बीमारी के प्रकोप से बचने के लिए टीकाकरण ही एक बेहतर विकल्प है। करीब 12 हफ्ते होने पर मुर्गियों का टीकाकरण होता है और कुछ हफ्तों बाद एक बार फिर से टीके लगाए जाते हैं।

फाउल टाइफाइड (foul typhoid)

सालमोनेला गैलिनेरम बैक्टीरिया की वजह से फाउल टाइफाइड बीमारी होती है। दूषित आहार से मुर्गियों में ये बीमारी पनपती है। ये एक खतरनाक बीमारी है, जिसमें मुर्गियों की मौत भी हो जाती है। यहां तक कि अंडों से चूज़ों तक भी ये बीमारी फैलती है।

लक्षण

  • मुर्गियां कम आहार ग्रहण करती हैं
  • प्यास ज़्यादा लगती है
  • लीवर और आंतों में सूजन आ जाती है
  • मुर्गियों के पंख भी प्रभावित होते हैं

बचाव

ब्रीडिंग के दौरान मुर्गियों में एक तरह का एंटीजन टेस्ट किया जाता है। पॉज़िटिव निकलने पर उनकी ब्रीडिंग नहीं की जाती है। पशु चिकित्सक की सलाह के अनुरूप ही इलाज किया जाता है।

इसके अलावा कॉक्सीडियोसिस, सीआरडी, एस्परजिलोसिस, इनफेक्शियस लेरिंगो टेकिआईटिस जैसी बीमारियां भी हैं, जो मुर्गियों के साथ-साथ मुर्गी पालन के व्यवसाय के लिए भी खतरा है। लिहाज़ा, पशु चिकित्सालय से लगातार संपर्क में रहना ज़रूरी है। साथ ही समय-समय पर मुर्गियों का टीकाकरण कराना भी अनिवार्य है।

ब्रॉयलर मुर्गियों के टीकाकरण पर एक नज़र

मुर्गी की उम्र

रोग

टीकाकरण का तरीका

1 दिन

मैरेक्स

त्वचा में

7 दिन

रानीखेत

आंख और नाक से

14 दिन

गम्बोरो

पीने के पानी में

21-25 दिन

ब्रोंकाइटिस

आंख और नाक से

28 दिन

रानीखेत

पीने के पानी में

6 हफ्ते

फाउल पॉक्स

विंग वेब में

10 हफ्ते

रानीखेत

त्वचा में

12 हफ्ते

गम्बोरो

पीने के पानी में

13 हफ्ते

ब्रोंकाइटिस

पीने के पानी में

19 हफ्ते

रानीखेत, गम्बोरो, ब्रोंकाइटिस

मांस में

लेयर मुर्गियों का टीकाकरण

मुर्गी की उम्र

रोग

टीकाकरण का तरीका

1 दिन

मैरेक्स

त्वचा में

7 दिन

रानीखेत 

आंख और नाक से

14 दिन

गम्बोरो

पीने के पानी में

28 दिन

गम्बोरो

पीने के पानी में

क्या कहते हैं विषय विशेषज्ञ

कृषि विज्ञान केंद्र (बुरहानपुर) मध्य प्रदेश के वरिष्ठ वैज्ञानिक अमोल देशमुख बताते हैं, कि

मुर्गियों में रानीखेत, गम्बोरो और मैरेक्स जैसी बीमारियां आम हैं। इसलिए हमें सुरक्षित मुर्गी पालन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। मुर्गियों के बाड़े में नियमित साफ-सफाई, पशु-चिकित्सक की सलाह और टीकाकरण के ज़रिए मुर्गियों में बीमारी के प्रकोप को कम किया जा सकता है। स्वस्थ मुर्गी पालन के लिए ये कदम ज़रूरी हैं।

ये तो थीस, मुर्गियों में होने वाले प्रमुख रोग (murgiyon ki bimari) और उनका बचाव की बात। लेकिन, इस वेबसाइट पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इस लेख को शेयर सकते हैं।

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