प्राकृतिक खेती क्या है? यहां जानें | natural farming in hindi
प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।

natural farming in hindi: जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। प्राकृतिक खेती (natural farming) कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।
प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।
प्राकृतिक खेती की आवश्यकता (need for natural farming)
- पिछले कई वर्षों से खेती में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग है। इसमें लागत भी बढ़ रही है।
- भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे है जो काफी नुकसान भरे हो सकते हैं। रासायनिक खेती से प्रकृति में और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है।
- किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रेसर होना चाहिए।
- खेती में खाने पीने की चीजे काफी उगाई जाती है जिसे हम उपयोग में लेते है। इन खाद्य पदार्थों में जिंक और आयरन जैसे कई सारे खनिज तत्व उपस्थित होते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है।
- रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते है। जिससे हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है।
- रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से जमीन की उर्वरक क्षमता खो रही है। यह भूमि के लिए बहुत ही हानिकारक है और इससे तैयार खाद्य पदार्थ मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा असर डाल रहे है।
- रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। इस घटती मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद उपयोग जरूरी हो गया है।
प्राकृतिक खेती का महत्व (importance of natural farming in hindi)
- भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट, 2017 में कहा गया है कि कृषि-पारिस्थितिकी (Agroecology) विश्व की संपूर्ण आबादी को भोजन उपलब्ध कराने और उसका उपयुक्त पोषण सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त पैदावार देने में सक्षम है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहाँ गाँव प्राकृतिक खेती की ओर आगे बढ़ते हुए ग्रामीण जीवन में रूपांतरण ला रहे हैं तथा शहरों में भी प्राकृतिक खेती के सफल प्रयोग हो रहे हैं।
- बिना सरकारी सहायता के इन उपलब्धियों को देखते हुए कल्पना की जा सकती है कि यदि इसमें राज्य का सहयोग प्राप्त हो तो बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिल सकता है।
- हालांकि भारत सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये लोगों को प्रोत्साहित कर रही है किंतु यह प्रोत्साहन प्रचार और जागरूकता के साथ-साथ सब्सिडी और आर्थिक स्तर पर भी होना चाहिये।
- भारत बड़ी मात्रा में उर्वरकों पर सब्सिडी देता है। यह सब्सिडी वर्ष 1976-77 की 60 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्तमान में 75 हज़ार करोड़ रुपए हो गई है।
- भारत के सबसे बड़े आर्थिक बोझों में से एक सिंथेटिक उर्वरकों के लिये प्रदत्त केंद्रीय सब्सिडी रही है। इसकी तुलना में जैविक क्षेत्र को मात्र 500 करोड़ रुपए की सब्सिडी प्राप्त है।
- इसके अतिरिक्त, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य श्रृंखला विकास अभियान के दायरे में अत्यंत सीमित क्षेत्र ही है। प्राकृतिक खेती के अंतर्गत मात्र 23.02 मिलियन हेक्टेयर भूमि है जो भारत में कुल कृषि योग्य भूमि (181.95 मिलियन हेक्टेयर) की मात्र 1.27 प्रतिशत है।
प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत (Four principles of natural farming)
- पहला सिद्धांत है, खेतों में कोई जोताई नहीं करना। यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी पलटना।
धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।
- दूसरा सिद्धांत है कि किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए।
इस पद्धति में हरी खाद और गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।
- तीसरा सिद्धांत है, निंदाई-गुड़ाई न की जाए। न तो हलों से न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा।
खरपतवार मिट्टी को उर्वर बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- चौथा सिद्धांत रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है।
जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।
प्राकृतिक खेती के फायदे (benefits of natural farming in hindi)
किसानों की दृष्टि से लाभ
- भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
- सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।
- फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।
- बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है।
मिट्टी की दृष्टि से
- जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
- भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
- भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।
पर्यावरण की दृष्टि से
- भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती है।
- मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है।
- फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि
- अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।
रासायनिक खेती और प्राकृतिक खेती के बीच अंतर (difference between chemical farming and natural farming)
रासायनिक खेती और किसान (chemical farming and farmers)
- छोटे किसान आजीविका और अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। किसान रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग से जुड़ी कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
- भारत के 86 प्रतिशत कृषक लघु व सीमांत कृषक हैं। रासायनिक कृषि कृषकों को ऋणग्रस्तता की ओर धकेलती है और उर्वरक कंपनियों को लाभ प्रदान करती है।
- सरकार प्रदत्त भारी उर्वरक सब्सिडी का लाभ लघु कृषकों को नहीं मिलता बल्कि उर्वरक निर्माता इसका लाभ उठाते रहे हैं।
- केरल राज्य में जैविक खेती पर वर्ष 2008 की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 50 वर्षों से केरल में रसायन गहन कृषि के आरंभ और इसके प्रचलन के परिणामस्वरूप उत्पादकता लगभग स्थिर हो चुकी है।
- उर्वरक, कीटनाशक और जल जैसी बाह्य निविष्टियों की उच्च मांग से प्रेरित कृषि के उच्च लागत की पूर्ति हेतु लिये गए ऋण के कारण किसान ऋण-जाल में फँस गए हैं। इसके परिणामस्वरूप किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने पुष्टि की है कि रासायनिक कृषि का संबंध कृषक ऋणग्रस्तता और आत्महत्याओं से है तथा यह भी रेखांकित किया है कि वर्ष 1997-2005 के बीच महाराष्ट्र राज्य में 30,000 किसानों ने आत्महत्या की।
- बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के कारणों को संबोधित करते हुए कहा कि कपास उगाए जाने वाले क्षेत्रों में आत्महत्या की अधिक घटनाएँ हुईं, जहाँ रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया गया था।
- सरकार की प्राक्कलन समिति की वर्ष 2015 की रिपोर्ट में रासायनिक खेती के प्रति वर्तमान नीति की निंदा करते हुए कहा गया था कि विद्यमान उर्वरक सब्सिडी व्यवस्था ने भारतीय कृषि का सर्वाधिक नुकसान किया है।