The Cleanest Village of Asia – एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव- मावलिन्नांग
मावलिन्नांग गाँव (Mawlynnong village) में बाहर ही नहीं घरों के भीतर और ग्रामीणों के दैनिक कामों में भी स्वच्छता बड़ी ही सरलता से दिख जाती है।
Cleanest village in Asia Mawlynnong Meghalaya: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के साथ स्वच्छ भारत का भी सपना देखा था। उन्होंने देश को तो ग़ुलामी से मुक्त कराया लेकिन स्वच्छ भारत का उनका सपना पूरा नहीं हो पाया। उनके इसी सपने को पूरा करने के लिए भारत सरकार द्वारा 2014 में स्वच्छ भारत अभियान आरंभ किया गया।
आज जब देश के सभी छोटे बड़े शहरों व नगरों में स्वच्छता में नंबर वन बनने की होड़ लगी हुई है, देश के एक कोने में ऐसा भी एक गाँव है जिसने यह मुकाम 2003 में ही हासिल कर लिया था। यह ना सिर्फ़ देश बल्कि एशिया का भी सबसे स्वच्छ गाँव है। सफ़ाई यहाँ रहने वाले लोगों के जीवन का एक अहम हिस्सा है, इतना कि इस गाँव में खोजने से भी गंदगी नहीं मिलेगी। हम बात कर रहे हैं भारत बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर स्थित मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स पर स्थित मावलिन्नांग गाँव (Mawlynnong village) की।
500 लोगों वाला यह गाँव वैसे है तो छोटा सा लेकिन, यह सफ़ाई के मामले में भारत ही नहीं विश्व के लिए भी प्रेरणास्तंभ है। 95 खासी जनजातीय परिवारों वाले इस गाँव में पॉलीथीन के उपयोग पर प्रतिबंध है। कोई धूम्रपान नहीं करता, रास्तों पर कूड़े का नामो निशान नहीं मिलता। कूड़ा फेंकने के लिए गाँव के सभी घरों के बाहर और गाँव के रास्तों में बांस से बने कूड़ेदान हैं। रास्ते के दोनों ओर पेड़ हैं और स्वच्छता का निर्देश देते बोर्ड हैं।
यहाँ स्वच्छता का आलम ऐसा है कि रास्ते चलते किसी गाँववासी को कचरा दिख गया तो वह रूककर पहले कचरा उठा कर कूड़ेदान में डालेगा फिर आगे बढ़ेगा। स्कूलों में कक्षा एक से ही बच्चों को घर और परिवेश को साफ रखने का काम दिया जाने लगता है।
मावलिन्नांग गाँव (Mawlynnong village) में बाहर ही नहीं घरों के भीतर और ग्रामीणों के दैनिक कामों में भी स्वच्छता बड़ी ही सरलता से दिख जाती है। प्रतिदिन गाँव के हर परिवार के सदस्य गाँव की सफ़ाई में भाग लेते हैं। वहाँ सफ़ाई में भाग नहीं लेने वालों को उसके घर में खाना नहीं मिलता है।
देश में स्वच्छता की मिसाल मावलिन्नांग शुरू से ऐसा नहीं था। जानकारी के अनुसार 1988 के दौरान गाँव में हर सीजन में महामारी फैलती थी जिससे कई बच्चों की जानें जाती थीं। इससे परेशान एक स्कूल शिक्षक रिशोत खोंगथोरम ने लोगों में स्वच्छता की ओर ले जानें का संकल्प किया। शुरूआत में स्वच्छता मिशन को लेकर गाँव के सदस्यों में झिझक थी लेकिन, स्वच्छता के फायदों को जानकर सब राजी हो गए।
गाँव को स्वच्छ बनाने का काम कई चरणों में किया गया। शुरूआत हुई जानवरों को घरों में बाँधने से। गाँव के सभी जानवर चाहे वे पालतू हों या आवारा, उन्हें बांधकर रखा गया। फिर हर घर में सैप्टिक टैंक के साथ शौचालय बनाए गए। इसके बाद रसोई से निकलने वाले कचरे के निस्तारण की योजना अमल में लाई गई।
वर्तमान समय में सभी घरों के बागीचों में सैप्टिक टैंक के साथ कंपोस्ट पिट भी बने हुए हैं। गाँव वालों के लिए यह अनिवार्य है कि वे जैविक और अकार्बनिक कचरे को अलग-अलग रखें। जैविक कचरे से खाद बनाई जाती है जो खेतों में काम आती है और अकार्बनिक कचरे को बांस के बॉक्स में इकठ्ठा करके महीने में एक बार रीसाइकिल के लिए शिलांग भेजा जाता है।
इस गाँव में स्वच्छता का पूरा श्रेय गाँववालों को ही जाता है। वे बग़ैर किसी भी बाहरी मदद पर आश्रित हुए स्वयं सहायता समूहों की मदद से गाँव को स्वच्छ रखने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। सबसे बड़ी बात गाँव वाले सफ़ाई को अपना कर्त्तव्य मान कर करते हैं। यही कारण है कि उन्होंने स्वच्छता के लिए न केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त किया बल्कि अपनी इस स्थिति को बरकरार भी रखे हुए हैं।
हम सभी जानते हैं कि सामाजिक पहल के बग़ैर स्वच्छता अभियान का सफल होना असंभव है। अधिकांश लोगों की यह सोच होती है कि सफ़ाई का काम सरकार के हिस्से आता है। लेकिन वास्तव में जिस तरह से हम अपने घरों को स्वच्छ रखते हैं, उसी प्रकार यदि अपने आस-पास के परिवेश को भी साफ रखने को अपनी आदत बना लें तो, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत का सपना आसानी से पूरा हो जाएगा। वास्तव में तो मावलिन्नांग गाँव की तरह ही देश का प्रत्येक गाँव व शहर स्वच्छता को अपना सकता है।