मटर की खेती की संपूर्ण जानकारी | matar ki kheti
आइए, इस लेख में मटर की खेती (matar ki kheti) को करीब से जानते हैं। जिससे किसानों को मटर की खेती की संपूर्ण जानकारी मिल सकें।
matar ki kheti: सब्जियों में मटर (pea) का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज-लवण और विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसका उपयोग हरी और पकने के बाद भी खूब किया जाता है।
मटर पोषक तत्वों से भरपूर सब्जी है, जिसे किसान पकने के पहले और पकने के बाद वर्षभर बेच सकते हैं। मटर एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग कई प्रकार की सब्जियों के साथ किया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में मटर की खेती (matar ki kheti) 7.9 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है। इसका वार्षिक उत्पादन 8.3 लाख टन एवं उत्पादकता 1030 किलोग्राम प्रति बीघा है।
मटर की खेती (matar ki kheti) किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद है। इसकी खेती कम लागत में भी अधिक मुनाफा देती है।
तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में मटर की खेती (matar ki kheti) को करीब से जानते हैं। जिससे किसानों को मटर की खेती (pea farming in hindi) की संपूर्ण जानकारी मिल सके।
इस लेख में आप जानेंगे
- मटर के लिए उपयुक्त जलवायु
- मटर की खेती के लिए जरुरी मिट्टी
- खेत की तैयारी
- बीज और बुआई का समय
- मटर की उन्नत किस्में
- सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन की जानकारी
- मटर में लगने वाले कीट और रोग प्रबंधन
- मटर की खेती में लागत और कमाई
मटर की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु
मटर की खेती (matar ki kheti) के लिए नम और ठंडी जलवायु को उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए 60 से 80 सेंटीमीटर बारिश की आवश्यकता होती है। हमारे देश में अधिकतर स्थानों पर रबी की ऋतु में मटर की खेती की जाती हैं। इसके लिए 10 से 18 सेल्सियस का तापमान अच्छा होता है।
भारत में मटर की खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में होती है। इसके पूरे भारत में भी कहीं-कहीं इसकी खेती होती है।
मटर की खेती के लिए जरुरी मिट्टी
मटर की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन गंगा के मैदानी भागों की गहरी दोमट मिट्टी को इसके लिए उत्तम माना गया है। मटर की फसल के लिए मिट्टी का पीएचमान 6.0-7.5 होना चाहिए। अम्लीय मिट्टी में मटर की खेती बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।
खेत की तैयारी
मटर की खेती (matar ki kheti) के लिए अक्टूबर-नवंबर माह का समय सबसे उपयुक्त होता है। इसलिए इस माह से पहले ही खेत की मिट्टी को अच्छे से तैयार कर लें। खेत में पाटा लगाकर भूमि तैयार करनी चाहिए। खरीफ की फसल की कटाई के बाद भूमि की जुताई करें। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल को 2 से 3 बार हैरो चलाकर जुताई करके जुताई करें। दो-तीन बार जुताई करने के बाद खेतों में बुआई करें। मटर की खेती के लिए मिट्टी में नमी होना बेहद जरूरी है।
बीज और बुआई का समय
मटर की खेती के लिए बुआई का समय अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर का प्रथम सप्ताह तक माना जाता है। बुआई में 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का इस्तेमाल करें। बुआई के समय बौनी मटर के लिए बीज दर 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का इस्तेमाल करें। बीजों की गहराई 5-7 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
मटर की उन्नत किस्में
फसल की अच्छी पैदावार के लिए मटर की उन्नतशील किस्मों का चुनाव करें। मटर की उन्नत किस्में में फील्ड मटर, सब्जी मटर, आर्केड, अर्ली बैजर, बोनविले, असौली, अर्ली दिसंबर, जवाहर मटर प्रमुख हैं।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
मटर की खेती में नमी और शीत ऋतु की बारिश के आधार पर 2 से 3 बार सिंचाई करनी की जरूरत होती है। पहली सिंचाई फूल आने के समय और वहीं दूसरी सिंचाई फलियाँ बनने के समय होनी चाहिए। सिंचाई करते हुए ध्यान रखें की फसलों में पानी न ठहरे और साथ ही सिंचाई हल्की करें। जिससे फसल को नुकसान न पहुचें।
उर्वरक
अच्छी पैदावार के लिए फसलों की देखभाल करना भी बहुत आवश्यक है। जिसके लिए खेत में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 60 किलोग्राम फास्फोरस होना चाहिए। इसके अलावा इसमें 100-125 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (डी,ए,पी) प्रति हेक्टेयर और साथ ही 20 किलोग्राम पोटाश भी दिया जाना चाहिए। खेत के जिन स्थान में गंधक की कमी देखे वहां बुआई के समय गंधक डालें। खेत की पहली जुताई के समय ही 20 टन गोबर की खाद अच्छी तरह से मिला लें।
मटर में लगने वाले कीट और रोग
रोग
- रतुआ- फसल में इस रोग के कारण पौधे पर हल्दी के रंग की फफोले नजर आने लगती है। सबसे अधिक यह रोग पत्तियों की निचली सतह पर अधिक देखने को मिलता है, जिसके कारण पत्तियां सुखाकर गिरने लगती है और फसल नष्ट हो जाती हैं। इसके बचाव के लिए 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मालवीय मटर का प्रयोग करें।
- चांदनी रोग- यह रोग फसल के एक से.मी. व्यास के बड़े-बड़े गोल बादामी और गड्ढे वाले दाग छोड़ जाते हैं। अक्सर यह रोग तने पर अपना घेरा बनाकर पौधे को मार देती है। इस रोग के बचाव के लिए 3 ग्राम थीरम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर छिड़काव करें।
- तुलासिता/रोमिल फफूंद- इस रोग में फसल की ऊपरी सतह पीले रंगी की हो जाती है औऱ नीचे की सतह में फफूंद लग जाती है, जिससे यह फसल की वृद्धि को रोक देती है। इसकी कारण से फसल की पत्तियां समय से पहले ही झड़कर नीचे गिर जाती हैं। इसके बचाव के लिए 0.2% मौन्कोजेब और जिनेब का छिड़काव 400-800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
कीट प्रबंधन
- खेती की समय-समय पर मेड़ों की सफाई जरूर करें। जिससे कीड़े ठहर न पाएं।
- फसल में लाइट ट्रैप प्रपंच का उपयोग करें। यह प्रतिदिन कीड़ों को नष्ट करने में सहायक होता है।
- फसल में इल्लियों व फल छेदक कीट के बचाव करने के लिए ट्रायकोकार्ड का 5 लाख प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करें।
- फसल में स्पाइनोसेड और इमामेक्टिन बेंजोएट का उपयोग छेदक कीट और हरी इल्ली के लिए उत्तम होता है।
मटर की खेती में लागत और कमाई
मटर की खेती(matar ki kheti) में कुल लागत लगभग 20 हजार रुपए प्रति हेक्टर और वहीं बाजार में मटर के दाम 30-40 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेची जाती हैं। यदि आप 30 रुपए प्रति किलो भी लगाए तो एक हेक्टेयर में 70 हजार रुपए तथा इस प्रकार यदि 5 हेक्टेयर में मटर की खेती की जाए तो 3 लाख 50 हजार रुपए की कमाई की जा सकती है।
मटर की खेती से जुड़े प्रश्न (FAQ)
प्रश्न- मटर की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है।
उत्तर- मटर की फसल के लिए रबी का मौसम सबसे उपयुक्त है।
प्रश्न- मटर की खेती में लागत कितनी होती है?
उत्तर- मटर की खेती में 20 हजार 20 हजार रुपए प्रति हेक्टर की लागत लगती है।
प्रश्न- मटर की खेती की उन्नत किस्में कौन-कौन सी है?
उत्तर- मटर की उन्नत किस्में फील्ड मटर, सब्जी मटर, आर्केड, अर्ली बैजर, बोनविले, असौली, अर्ली दिसंबर, जवाहर मटर प्रमुख हैं।
प्रश्न- मटर की बुआई कब करें?
उत्तर- मटर की बुआई अक्टूबर से नवंबर माह में कर दें।
🙏 ऐसे ही खेती की उन्नत जानकारी के लिए द रूरल इंडिया वेबसाइट विजिट करते रहें।