मसूर की खेती कैसे करें? यहां जानें | masur ki kheti
कम लागत में मसूर की खेती (masoor ki kheti) अधिक आमदनी देती है। इसकी खेती में पानी की भी जरूरत बहुत ही कम होती है।

masur ki kheti: दलहनी फसलों में मसूर (masur) का महत्वपूर्ण स्थान है। मसूर का उपयोग खिचड़ी, दाल, पकौड़े इत्यादि में खूब किया जाता है। मसूर में अन्य दालों की तरह अधिक मात्रा में प्रोटीन और विटामिन पाया जाता है। मसूर में 25 प्रतिशत प्रोटीन, 1.3 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत रेशा और 57 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है। कम लागत में मसूर की खेती (masoor ki kheti) अधिक आमदनी देती है। इसकी खेती में पानी की भी जरूरत बहुत ही कम होती है।
भारत में मसूर की खेती मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में खूब होती है।
तो आइए, द रूरल इंडिया के इस लेख में मसूर की खेती (masoor ki kheti) और मसूर की उन्नत किस्मों के बारे में विस्तार से जानें।
इस लेख में आप जानेंगे
- मसूर की खेती (masur ki kheti) के लिए ज़रूरी जलवायु
- खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
- खेती की तैयारी कैसे करें
- मसूर की उन्नत किस्में
- सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
- रोग एवं कीट प्रबंधन
- फसल की कटाई एवं थ्रेसिंग
- मसूर की खेती में लागत और कमाई
मसूर की खेती के लिए ज़रूरी जलवायु
मसूर रबी की फसल है। इसकी खेती ठंड के समय की जाती है। इसकी खेती शुष्क और बरानी इलाकों में खूब होती है। धान, मक्के की कटाई के तुरंत बाद इसकी खेती होती है। मसूर की अगेती खेती में अधिक लाभ मिलता है। मसूर की खेती में पानी की कम आवश्यकता होती है। इसके लिए 25-25 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान अनुकूल होता है।
मसूर की खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
मसूर की खेती (masoor ki kheti) किसी भी प्रकार की उपजाऊ भूमि में की जा सकती है। किन्तु दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। मसूर की खेती के लिए मिट्टी का पीएचमान 4.2 से 8.5 के बीच होनी चाहिए। जल निकास की उचित व्यवस्था वाली काली मिट्टी मटियार मिट्टी एवं लैटराइट मिट्टी में इसकी अच्छी खेती की जा सकती है। जलजमाव वाले खेत में इसकी खेती करने से किसानों को बचना चाहिए।
खेती की तैयारी कैसे करें
खेत की तैयारी के लिए वर्षाकालीन फसल की कटाई के बाद भूमि में उपलब्ध नमी के अनुसार 2-3 बार जुताई करके मिट्टी भुरभुरी बना लें। इसके तुरन्त बाद पाटा चलाकर खेत समतल कर लें। इससे खेत में नमी बनी रहती है। समतल मिट्टी में बीज एक समान गहराई पर बोएं। इससे बीज का अंकुरण अच्छा होता हैं।
खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई के दौरान ही गोबर की खाद मिला दें, इससे आपको बाद में उर्वरक की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी।
मसूर की उन्नत किस्में
हमारे देश में मसूर की कई उन्नत विकसित हो चुकी है। इसके लिए आप अपने क्षेत्र के अनुसार कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से जरूर संपर्क करें। वहां आपको सब्सिडी पर बीज उपलब्ध हो सकता है।
मसूर की उन्नत किस्मों में LL 699, जे.एल – 3, जे.एल- 1, आई. पी. एल 81, एल.4594, मल्लिका, पन्त 4076, सीहोर 74-3 प्रमुख हैं।
सिंचाई एवं उर्वरक प्रबंधन
मसूर के लिए खास सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। लेकिन पौधों के विकास के लिए जमीन में नमी आवश्यक है। फल्ली बनने या फल्ली में दाना बनने पर एक हल्की सिंचाई करना फायदेमंद होता है। सिंचाई भूमि की आवश्यकतानुसार स्प्रिंकलर या बहाव विधि से (हल्की) करना चाहिए। आवश्यकता से अधिक सिंचाई मसूर की फसल (masoor ki phasal) को नुकसान हो सकता है। अतः ज्यादा सिंचाई न करें।
किसान भाइयों को हमेशा सलाह दी जाती है कि जब भी फसल उगाएं, उससे पहले मिट्टी की जांच अवश्य करा लें। इससे फसल में उर्वरक देने की सही मात्रा का पता चलता है। खेत की मिट्टी परीक्षण के अनुसार खाद एवं उर्वरक देना लाभप्रद होता है। यदि गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद या कम्पोस्ट उपलब्ध हो तब 5 टन/हेक्टेयर की दर से खेत में अच्छी तरह मिला लें।
रासायनिक खाद में आप प्रतिहेक्टेयर 15-20 किलो नाइट्रोजन, 30-40 किलो स्फुर और 20 किलो दे सकते हैं। जिन क्षेत्रो में गंधक की कमी हो उन क्षेत्रों में 20 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर या सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग करना लाभदायक होता है।
रोग एवं कीट प्रबंधन
मसूर की फसल (masoor ki phasal) में रोग ना लगें इसके लिए फसल की निराई-गुड़ाई अति आवश्यक है। फसल में खरपतवार की उपलब्धता अनुसार बुआई के 20-25 दिन व 40-45 दिन बाद निराई-गुड़ाई, खुरपी या डोरा चलाकर कर लें।
खरपतवार के रसायनिक नियंत्रण के लिए पेन्डी-मिथेलिन या फ्लूक्लोरोलिन 0.75 किलो ग्राम को 500 लीटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर में घोलकर छिड़काव कर मिट्टी में मिलाने से खरपतवारों के प्रकोप से बचा जा सकता है।
मसूर की फसल में माहो, एफिड और थ्रिप्स तथा फल्ली छेदक इल्ली कीट का का प्रकोप होता हैं। कीट नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास (1.5 मि.ली.) या क्वीनालफास (1 मि.ली.) प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव कर दें।
इसके अलावा मसूर की फसल (masoor ki phasal) में उकठा और गेरूआ लगने की संभावना अधिक होती है। इसके लिए बुआई से पहले बीज उपचार थाइरम 3 ग्राम या थाइरम 1.5 ग्राम+बेविस्टीन 1.5 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से कर लें। गेरूआ रोग के नियंत्रण के लिए डाइथेन एम-45, 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल में छिड़काव कर सकते हैं।
फसल की कटाई एवं थ्रेसिंग
जब फसल की फल्लियां सूखकर पीली पड़ हो तब कटाई करना चाहिए। ज्यादा पकने से मसूर के दाने खेत में ही गिर सकते हैं। अतः समय रहते इसकी कटाई कर लें। इसके बाद इसे खलिहान में सुखाकर मड़ाई कर लें। इसके बाद बीज को अच्छी तरह सुखाकर बोरी या ड्रम में भंडारित कर लें।
मसूर की खेती में लागत और कमाई
एक हेक्टेयर में मसूर की खेती (masur ki kheti) से 20-25 क्विंटल मसूर का उत्पादन हो जाता है। अगर आप मसूर की समुचित देखभाल और सिंचाई एवं उर्वरक प्रबंधन करें तो इससे ज्यादा भी पैदावार किसानों को मिल सकता है। एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 1 लाख की लागत आती है, जिससे किसानों भाइयों को 3-5 लाख रुपए तक शुद्ध मुनाफा हो जाता है। अगर किसान इसकी दाल या आटा बनाकर खुद बेचते हैं, तो यह मुनाफा और भी बढ़ जाता है।
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