कृषि

धान में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका रोकथाम | Major Disease in rice crop

आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में जानें- धान में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका रोकथाम (Major Disease in rice crop and their management)

Major Disease in rice crop and their management: धान हमारे देश की एक प्रमुख फसल है। विश्व में सबसे अधिक क्षेत्रफल पर धान की खेती भारत में होती है। लेकिन धान उत्पादन में हम विश्व में दूसरे नंबर पर है। हमारे देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता चीन से काफी कम है। 

  1. इसका पहला प्रुमख कारण है कि हमारे देश में धान उत्पादन की तकनीक में पीछे होना।
  2. दूसरा प्रमुख कारण है धान में लगने वाले कीट और रोगों का सही प्रबंधन नहीं होना। 

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में जानें- धान में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका रोकथाम (Major Disease in rice crop and their management)

धान में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका रोकथाम

खैरा रोग (Khaira disease)

यह रोग जस्ता (जिंक) की कमी के कारण होता है। इसमें पत्तियां पीली पड़ जाती है जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते है।

बचाव

धान की फसल पर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट को 20 किग्रा यूरिया अथवा 2.5 किलोग्राम. बुझे हुए चूने को 800 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

सफेदा रोग

यह रोग लौह तत्व (आयरन) की कमी से होता है। यह समस्या सबसे ज्यादा नर्सरी में लगता है। नई पत्तियां सफेद रंग की निकलती हैं जो कागज के समान होकर फट जाती हैं।

बचाव

इसके उपचार के लिए 5 किलोग्राम फेरस सल्फेट को 20 किग्रा यूरिया या 2.50 किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 2-3 बार 5 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।

 

भूरा धब्बा रोग

पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अण्डाकार धब्बे बनते हैं जिनके बीच का हिस्सा कुछ पीलापन लिए हुए हल्के कत्थई रंग का हो जाता है जो रोग का विषेश लक्षण है।

बचाव

  1. बोने से पूर्व बीज को 3 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  2. खड़ी फसल पर मैंकोजेब इण्डोफिल एम-45 अथवा जीरम 80 प्रतिषत को 25 किग्रा 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

झोंका रोग

पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं जो बीज में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे कत्थई रंग के होते हैं। बालियों, डंठलों, पुश्प शाखाओं और गांठों पर से पौधे टूट जाते हैं। बालियां सूखकर सफेद रंग की हो जाती हैं।


बचाव

  1. बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 1.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  2. खड़ी फसल में कार्बेन्डाजिम 1 किलोग्राम अथवा जीरम 2 किग्रा अथावा मैंकोजेब 2 किग्रा अथवा हिनोसान 1 किग्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 2-3 छिड़काव, 10-12 दिन के अन्तराल पर करें।

जीवाणु झुलसा रोग

यह जीवाणु (बैक्टिरिया) जनित रोग है। इस रोग की शुरूआत में आमतौर पर पत्तियां उपरी सिरे से अथवा किनारे से एक दम सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित और टेढ़े-मेढ़े होते है।

बचाव

  1. बुआई से पूर्व बीजोपचार उपर्युक्त विधि से करें।
  2. रोग का लक्षण दिखायी देते ही यथा सम्भर पानी निकाल कर 15 ग्राम स्टेªप्टोसाइइक्लीन एवं कापर आक्सीक्लोराइड 500 ग्राम 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से दोबार छिड़काव करे।
  3. रोग का लक्षण दिखाई देने से नत्रजन की टापडेªसिंग यादि बाकी है तो उसे रोक देना चाहिए।

झूठा कण्डुआ रोग

इस रोग का प्रकोप धान की बाली निकलने के साथ-साथ होता है। इसमें दानें के स्थान पर फफूंद के कणों का काला व हरा पुंज बन जाता है। पके दाने भी प्रभावित होकर नष्ट हो जाते है।


बचाव

  1. रोग ग्रसित बालियों को एकत्रकर जला दें।
  2. स्वस्थ और उपचारित बीज ही बोएं।
  3. बाली निकलते समय कार्बेन्डाजिम 1 किग्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 7 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें।

पत्ती लपेटक

इस कीट की सूड़ी ही हानिकारक होती है। ये सूड़ियां पीले हरे रंग की शरीर तथा गहरे भूरे रंग के सिर वाली लम्बी होती है। इस कीट के प्रकोप की पहचान यह है कि खेत में बहुत सी मुड़ी हुई पत्तियां दिखाई देने लगती है। जिन पत्तियों में इसका प्रकोप होता है, वे सिकुड़ी और सूखी सी दिखती हैं।

बचाव

  1. संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें।
  2. प्राकृतिक षत्रुओं को संरक्षण दें।
  3. एक से दो प्रकोपित तत्ती प्रति दिन दिखाई देने पर प्रोफेनफास / 1 लीटर प्रति हे. सी. या क्यूनालूफास 25 ई.सी. 1.5 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

तना छेदक

इस कीट की सूड़ियां ही हानिकारक होती है। इसके आक्रमण के फलस्वरूप वानस्पतिक अवस्था में मृतगोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है।

बचाव

1. गर्मी की गहरी जुताई करनी चाहिए।

2. रोपााई के पूर्व पौधे के ऊपरी पत्तियों को काट देना चाहिए।

3. संतुलित उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए।

4. प्राकृतिक शत्रु ट्राइकोग्रमा 50 हजार प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 30 दिन बाद से प्रत्येक सप्ताह में 6 सप्ताह तक छोड़ना चाहिए।

गंधी बग कीट

यह कीट वयस्क रूप में बेलनाकार थोड़ा हरापन लिए भूरा होता है। प्रौढ़ कीट एक प्रकार की तीखी दुर्गन्ध छोड़ता है। शिशु तथा प्रौढ़ बाली की दुधिया अवस्था में रस चूस लेते हैं जिसके फलस्वरूप बाली खाली रह जाती है और उनमें छोटे-छोटे धब्बे पड़ जाते हैं।

बचाव

1. छिटपुट रोपाई/ बुआई जहां तक सम्भव हो नहीं करनी चाहिए।

2. खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।

3. फूल आने के बाद औसतन 2-3 कीट/हिल दिखई पड़ने पर क्वीनालफास 1.5 या क्राथियन 2 प्रतिशत धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रातः सांयकाल हवा कम होने पर छिड़काव करें।

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