करेला की खेती की संपूर्ण जानकारी | karela ki kheti
करेले की खेती (karela ki kheti) के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। करेले की खेती अधिक तापमान की जरुरत नहीं होती है।
karela ki kheti: करेला (Bitter gourd) एक ऐसी सब्जी है जो स्वाद में भले ही कड़वा हो लेकिन इसके औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग हमेशा रहती है। यूं कहें तो करेला एक सब्जी ही नहीं औषधीय है। करेला की खेती (karela ki kheti) में लागत कम और मुनाफा अधिक मिलता है इसलिए छोटे किसान भी इसे आसानी से कर सकते हैं।
तो आइए, द रुरल इंडिया के इस ब्लॉग में करेले की खेती (karela ki kheti) से जुड़ी बातें आसान भाषा में जानें।
इस ब्लॉग में आप जानेंगे-
- करेले की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी
- करेले की खेती के लिए जलवायु
- करेला की उन्नत किस्में
- करेले के औषधीय गुण
- करेली के खेत की तैयारी
- करेले की खेती की बुआई का समय
- करेला लगाने की विधि
- जुताई और निराई-गुड़ाई की विधि
- करेला में लगने वाले रोग और उसका निदान
- खाद और कीटनाशक
- करेले की खेती के फलों की तुड़ाई
- लागत और मुनाफा
करेले की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी
करेले की खेती (karela ki kheti) के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। करेले की खेती अधिक तापमान की जरुरत नहीं होती है। इसलिए खेत में उपयुक्त नमी रखें। करेला बोने के लिए नदी के किनारे वाली जलोढ़ मिट्टी भी बेहतर मानी जाती है।
करेला की खेती के लिए जलवायु
करेला की फसल के लिए गर्म और आद्र जलवायु सही होता है। यदि हम तापमान की बात करें, तो फसल की अच्छी उपज के लिए तापमान कम से कम 20 डिग्री सेंटीग्रेट और 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच होना चाहिए।
करेला की उन्नत किस्में
- कल्याणपुर बारहमासी
- पूसा विशेष
- हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग
- अर्का हरित
- पूसा हाइब्रिड-2
- पूसा औषधि
- पूसा दो मौसमी
- पंजाब करेला-1
- पंजाब-14
- सोलन हरा और सोलन सफ़ेद
- प्रिया को-1
- एस डी यू- 1
- कल्याणपुर सोना
- पूसा शंकर-1
करेले की औषधीय गुण
करेला में अनेक औषधीय गुण के अलावा खनिज, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट के विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ भी पाया जाता है। पाचन, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और गठिया जैसे रोगियों के लिए करेला बहुत लाभकारी होता है इसलिए करेला के बीजों से दवाईयां भी बनाई जाती है। करेला से सब्ज़ी के अलावा अचार और जूस भी बनाया जाता है।
करेले के खेत की तैयारी
करेले की फसल की बुआई से पहले जमीन की अच्छी तरह से जुताई की जाती है। इसके बाद पाटा लगाकर समतल किया जाता है। इसके बाद लगभग दो-दो फीट पर क्यारियां बनाएं। इन क्यारियों की ढाल के दोनों ओर लगभग 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई की जाती है।
करेले की खेती की बुआई का समय
कृषि वैज्ञानिकों की मदद से अब करेला की खेती (karela ki kheti) वर्षभर की जाती है। करेला की ऐसी कई किस्में मौजूद हैं जिसे कहीं भी और किसी भी मौसम आप लगा सकते हैं।
गर्मी के मौसम की फसल के लिए जनवरी से मार्च तक इसकी बुआई की जा सकती है। मैदानी इलाकों में बारिश के मौसम की फसल के लिए इसकी बुआई जून से जुलाई के मध्य की जाती है और पहाड़ी इलाकों में मार्च से जून तक बीज बोया जाता है।
करेला लगाने की विधि
करेले की बुआई हम चाहे तो सीधे बीज लगाकर भी कर सकते हैं। इसके अलावा चाहे तो बीज लगाकर कुछ दिनों में पौधे तैयार कर उसके बाद अपने खेत में करेले का पौधा भी लगा सकते हैं। साथ ही यह भी जरूरी है की बीज खेत में लगभग 2 से 2 .5 सेमी गहराई पर होना चाहिए। बुआई से पहले बीजों को एक दिन के लिए पानी में भिगोना कर रखना चाहिए।
करेला लत्ती (झाड़) के रूप में बढ़ता है इसलिए करेले को बांस से लकड़ी का सहारा देकर पहले ही रास्ता पकड़ा देना चाहिए अन्यथा एक ही जगह लग कर फसल खराब हो सकता है।
सिंचाई प्रबंधन
करेला को साधारण सिंचाई की ही ज़रूरत होती है। फूल या फल बनने के दौर में खेत में नमी अच्छी रहनी चाहिए। लेकिन खेत को जलभराव से बचाना चाहिए।
निराई-गुड़ाई और खरपतवार प्रबंधन
खेत की जुताई करके करीब दो फ़ीट पर क्यारियां बनाकर इसकी ढाल के दोनों और करीब एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर बीजों को रोपना चाहिए। हर जगह 2–3 बीजों को ज़मीन में एक-डेढ़ इंच नीचे रोपाई करें। फसल के शुरुआती दौर में निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवारों से मुक्त रखने से करेला की उपज अच्छी मिलती है।
करेले में लगने वाली बीमारियां
मुजैक
करेला में लगने वाला वर्जन वायरस एक ऐसा वायरस होता है जिसके लगने के बाद करेले की पत्तियों में छेद हो जाता है और पत्तियां सिकुड़ जाती हैं इसके बाद सफेद मक्खियां बैठकर अन्य पौधों को भी नुकसान पहुंचाती हैं जिससे उपज में काफी कमी आती है।
खेती में इस्तेमाल होने वाले खाद और कीटनाशक
करेले को लगाने के कुछ समय बाद खेत में खाद व कंपोस्ट के इस्तेमाल तो जरूरी है । साथ ही समय-समय पर कीड़े और करेले में होने वाली बीमारी से बचने के लिए सल्फर का छिड़काव भी करना चाहिए इसके अलावा कभी-कभी विशेषज्ञ या पुरानी किसानों की राय भी लेते रहें।
करेले की तुड़ाई
करेला बोने के बाद लगभग 60 से 75 दिन में फसल तैयार हो जाती है। फसल तैयार होने के बाद फलों की तुड़ाई मुलायम एवं छोटी अवस्था में ही कर लेनी चाहिए। फलों को तोड़ते समय ध्यान देना चाहिए कि करेले के साथ डंठल की लम्बाई 2 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए। इससे फल अधिक समय तक टिके रहते हैं। करेले की तुड़ाई सुबह के समय करनी चाहिए।
करेले की खेती में लागत और मुनाफा
करेले की खेती (karela ki kheti) में बीज से लेकर कीटनाशक तक की लागत प्रति एकड़ लागत लगभग 20 से 25 हज़ार रुपए आती है और 1 एकड़ में किसान को लगभग 50 से 60 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है। इस प्रकार किसान करेले की एक एकड़ से लगभग 2 लाख रुपये की आय प्राप्त होती है।
ये तो थी करेले की खेती (karela ki kheti), की बात। यदि आप इसी तरह कृषि, मशीनीकरण, सरकारी योजना, बिजनेस आइडिया और ग्रामीण विकास की जानकारी चाहते हैं तो इस वेबसाइट की अन्य लेख जरूर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिए शेयर करें।
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