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kapas ki kheti: कपास की खेती कैसे करें? यहां जानें

कपास रेशे वाली नगदी फसल हैं। इसे सफेद सोना भी कहते हैं। भारत में कपास की खेती (kapas ki kheti) सदियों से चली आ रही है।

kapas ki kheti : कपास की खेती कैसे करें, यहां जानें कपास की खेती का वैज्ञानिक तरीका

kapas ki kheti: कपास (Cotton) रेशे वाली नगदी फसल हैं। इसे सफेद सोना भी कहते हैं। भारत में कपास एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में कपास की खेती (kapas ki kheti) सदियों से चली आ रही है, जिसका उल्लेख  ऋग्वेद में भी मिलता है जो ये दर्शाता है की भारतीयों का कपास से वस्त्र बनाने का ज्ञान प्राचीन काल से ही रहा है। 

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है जिसमें पहले नंबर पर चीन आता है। कपास में एक तरह का फल होता है जो बाल्स (balls) कहलाते है, ये चिकने और हरे पीले रंग के होते हैं, फल के अन्दर बीज और कपास की रेशा होती है। भारत में कपास की खेती (kapas ki kheti) सबसे अधिक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में होती है। 

तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में जानें- कपास की खेती कैसे करें (kapas ki kheti kaise karen)?

इस लेख में आप जानेंगे

  • कपास के लिए ज़रुरी जलवायु
  • खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
  • कपास की खेती का सही समय
  • खेती की तैयारी कैसे करें
  • कपास की उन्नत किस्में
  • सिचाई और उर्वरक प्रबंधन 
  • रोग एवं कीट प्रबंधन कैसे करें
  • कपास की खेती में लागत और कमाई

कपास की खेती के लिए जरूरी जलवायु

कपास की खेती (kapas ki kheti) के लिए आदर्श जलवायु का होना बहुत जरूरी है। कपास की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। इसकी खेती के लिए औसत तापमान 16 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए। अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 34 डिग्री सेंटीग्रेट और बढ़वार के लिए 21 से 27 डिग्री तापमान चाहिए। फलन लगते समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रातें ठंडी होनी चाहिए। कपास के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है। 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा हानिकारक होती है।

कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

कपास की खेती (kapas ki kheti) के लिए काली मिट्टी बेहद अच्छी मानी जाती है। कपास की खेती के लिए 6 से 8 पीएच मान की मिट्टी सही होती है। भारत में दक्कन पठार में काली मिट्टी के अधिक होने से वहां कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, यही कारण है कि भारत में कपास की खेती महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और गुजरात में सबसे अधिक होती है। 

कपास की खेती का सही समय

कपास की खेती (kapas ki kheti) खरीफ के मौसम में होती है। यदि सही मात्रा में सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हैं तो कपास की फसल को मई माह में भी लगाया जा सकता है। यदि किसी कारण से सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून के समय ही कपास की फसल लगाएं। 

खेती की तैयारी

  • भारत के दक्षिण व मध्य में कपास वर्षा-आधारित काली भूमि यानी काली मिट्टी में उगाई जाती है। इन क्षेत्रों में खेत तैयार करने के लिए एक गहरी जुताई जरूर करें। इसके लिए हल से मिट्टी को पलटने  वाले कल्टीवेटर का उपयोग करें। जिससे खरपतवार नष्ट हो जाए। 
  • इसके बाद 3 से 4 बार हैरो चलाना काफी होता है। बुआई से पहले खेत में पाटा लगाते हैं, ताकि खेत समतल हो जाए। 
  • कपास का खेत तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत पूर्णतः समतल हो ताकि मिट्टी की जलधारण एवं जलनिकास क्षमता दोनों अच्छे हो। 
  • यदि खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या न हो तो बिना जुताई या न्यूनतम जुताई से भी कपास की खेती की जा सकती है।

कपास की उन्नत किस्में

इन दिनों देशी कपास के बजाय हाइिब्रिज और बीटी कपास का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। इसके लिए जरूरी है कि कपास की उन्नत किस्मों की जानकारी किसानों को हो।

कपास की खेती के लिए अभी तक उन्नत किस्मों में हाइब्रिड एनआरसी 7365, एसीएच 177-2, शक्ति 9, पीसीएच 9611, आरसीएच 314, 602, 791,776,650,773, 653, 809 नेमकोट 617,2502-2,311-1, केसीएच 999,  जेकेसीएच 8940, 841-2, एसीएच 155-2, एनएसपीएल 252, सीआरसीएच 653, एबीसीएच 243, एमएच 5302, एसडबल्यूसीएच 4757, 4748, वीआईसीएच 308, आईसीएच 809, जेकेसीएच 0109, अंकुर 3244 प्रमुख हैं। 

उन्नत किस्मों का चुनाव आप अपने क्षेत्र के लिए अनुसंशित बीजों का ही चुनाव करें। उन्नत किस्मों का चुनाव के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र अथवा कृषि विभाग से जरूर संपर्क करें।

सिचाई और उर्वरक प्रबंधन

कपास की फसल (kapas ki phasal) वर्षा आधारित होती है। लेकिन जहां अच्छी बारिश की संभावना कम है वहां सिंचाई का उचित प्रबंध करें। जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां फसल की अवधि के विभिन्न चरणों में नियमित सिंचाई की जाना चाहिए। फसल पकने के 10 दिन पहले फसल की सिंचाई करना बंद कर देना चाहिए। 

कपास की खेती (kapas ki kheti) से पहले खेती की जुताई के दौरान ही गोबर की खाद का प्रयोग करें, जिससे कपास की बढ़वार सही होती है। कपास के बढ़वार या फलन के समय रासायनिक खाद का उपयोग कर सकते हैं। 

रोग एंव कीट प्रबंधन

बीटी कपास के आगमन के साथ, बॉलवॉर्म और अन्य चबाने वाली कीटों का प्रकोप बढ़ा है। हालांकि, कीट-अनुकूल परिस्थितियों में कीट से ग्रस्त होने की भारी घटनाओं के समय कपास के खेतों में उनकी घटनाएं देखी जा सकती हैं। ये अमेरिकी बॉलवॉर्म या फ्रुट बोरर, धब्बेदार बॉलवॉर्म, गुलाबी बॉलवॉर्म और तंबाकू कैटरपिलर हैं। इसके प्रबंधन के लिए जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें। वे रोग की प्रकृति को देखकर आपको सही दवाओं का अनुशंसा कर देंगे। कपास की फसल (kapas ki phasal) में ज्यादा रोग और कीट न लगे इसके लिए खेत को सदैव खरपतवार से मुक्त और साफ रखें। 

कपास की खेती में लागत और कमाई

कपास की खेती प्रति एकड़ 30-50 हजार रुपए तक का खर्च आता है। यदि किसान भाई कपास की खेती उन्नत तरीके से करते हैं, तो उन्हें प्रति एकड़ कपास की फसल से एक लाख रुपए तक का मुनाफा हो सकता है। 

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