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जौ की खेती कैसे करें, यहां जानें | jau ki kheti

jau ki kheti
jau ki kheti: हमारे देश को कृषि प्रधान देश का दर्जा हासिल है। यहां लगभग हर तरह का अनाज उगाया जाता है। गेहूं, चावल, बाजरा, दाल, मक्का और न जाने कितने ही अनगिनत अनाज हैं जो भारतवासियों के साथ-साथ विदेशियों के भी भोजन का एक खास हिस्सा है। इन्हीं अनाजों में से एक अनाज है, जौ (barley) 
 
आपको बता दें, जौ की खेती (jau ki kheti) हमारे देश में प्राचीन काल से की जाती रही है।

जौ (barley) पोषक तत्वों का भंडार है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, आयरन, मैंगनीज़, विटामिन, कैल्शियम और न जाने कितने ही महत्वपूर्ण पोषक तत्व शामिल हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी हैं। इसके ‌‌सेवन के फायदे भी कम नहीं हैं। यह तमाम बीमारियों में काफी मददगार है।

भारत में पैदा होने वाले अनाजों में जौ एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां बड़े पैमाने पर जौ की खेती (barley cultivation) की जाती है। 

आज हम इस ब्लॉग में जौ की खेती (jau ki kheti) के बारे में बताएंगे। तो आइए सबसे पहले जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु के बारे में जाने हैं। 

जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

जौ सर्दियों की फसल है। इस फसल के लिए ठंडा मौसम उपयुक्त होता है। हालांकि सम शीतोष्ण में भी इसकी खेती की जा सकती है। जौ की खेती(jau ki kheti) के लिए नम और ठंडी जलवायु अच्छी मानी जाती है। यह समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर की जाती है। इस खेती के लिए न्यूनतम तापमान 35 से 40°F तो वहीं उच्च तापमान 72-86°F और उपयुक्त तापमान 70°F होता है।

जौ की खेती के लिए जरूरी मिट्टी

खेती चाहें कोई भी हो उस फसल की पैदावार के लिए मिट्टी का उपजाऊ होना बेहद ज़रूरी होता है। ज़रूरी नहीं एक जैसी मिट्टी में हर फसल पैदा हो। हर मिट्टी की अपनी उर्वरक शक्ति होती है, और जहां तक जौ की खेती का सवाल है तो इसके लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। इसके अलावा बलुई, क्षारीय और लवणीय मिट्टी में भी इसकी खेती होती है। इसलिए इसकी उगाई के लिए अनुकूल मिट्टी का एक चुनाव करना चाहिए।

जौ की खेती का सही समय

जौ की खेती (Barley cultivation) के लिए ठंडा मौसम उपयुक्त होता है। इसलिए इसकी खेती अक्टूबर-नवंबर के महीने में की जाती है, और मार्च तक इसे काट लिया जाता है।

जौ की खेती के लिए खेत की तैयारी

जौ की खेती के लिए खेत समतल और जलनिकास वाली होनी चाहिए। प्रत्येक एकड़ के हिसाब से हर एकड़ में 80 किलो नाईट्रोजन और 40 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है। इसके लिए पहले हरी खाद देना आवश्यक होता है। इसके अलावा गोबर की खाद, कम्पोस्ट खली, कार्बनिक खाद, अमोनिया सल्फेट, सोडियम नाइट्रेट आदि को बुआई से पहले खेत को तैयार किया जाता है।

जौ की उन्नत किस्में

हर फसल की तरह जौ की भी कुछ किस्में हैं, जो इस तरह से हैं-

  • डी डब्लू आर बी- 52
  • डी एल- 83
  • आर डी- 2668
  • आर डी- 2503
  • डी डब्लू आर- 28
  • आर डी- 2552
  • बी एच- 902
  • पी एल- 426 (पंजाब) आर डी- 2592 (राजस्थान)
  • ज्योति 572
  • आज़ाद 125
  • हरितमा 560
  • लखन 226
  • मंजुला 329
  • नरेंद्र 192

सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन

हर फसल को उसकी ज़रूरत के मुताबिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। जौ के लिए 4 से 5 बार सिंचाई की ज़रूरत होती है। पहली सिंचाई बुआई के 25 से 30 दिनों के बाद करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई 40 से 45 दिन बाद की जाती है। उसके बाद पौधों में फूल आने के समय तीसरी सिंचाई होती है। इसके अलावा इसका उर्वरक प्रबंधन भी सही ढंग से किया जाता है।

फसल को कोई नुकसान न पहुंचे, और इसकी उर्वरकता शक्ति में कोई कमी न आए इसलिए इसकी देखभाल काफी आवश्यक है। जंगली चूहे, खरपतवार, टिड्डे, दीमक, गुजिया वीविल, माहूं आदि जैसे कीट से इसका बचाव करना होता है। जिसके लिए कई प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।

जौ की खेती में लागत और कमाई

कहते हैं कि जिस चीज़ में लागत अच्छी लगती हो, उस चीज़ की कमाई भी बेहतरीन होती है। लेकिन कम लागत और ज़्यादा कमाई में ही समझदारी होती है। जौ (Barley) से बहुत सी चीज़ें बनाई जाती हैं, इसलिए बाज़ार में इसकी मांग बढ़ी है। खाद्य पदार्थों और कुछ पेय पदार्थों के लिए जो का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। जैसे मॉल्ट, सिरका, बीयर, सत्तू, आटा, ब्रेड, बिस्कुट, पेपर बोर्ड, कागज़ आदि चीज़ें हैं जिसका निर्माण जौ से किया जाता है।

इसके अलावा यह पशुओं का भी एक खास आहार है। जौ की खेती के ज़रिए बहुत किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं। जौ को अपनी खाने की थाली में शामिल करना घाटे का सौदा नहीं है। इसका सेवन पोषक तत्वों का खज़ाना है।

ये तो थी जौ की खेती (jau ki kheti) की बात। लेकिन, The Rural India पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को शेयर करें। 

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