फसल चक्र क्या है | Crop rotation in Hindi
फसल चक्र (Crop rotation) किसानों के किसी वरदान से कम नहीं है। आइए, इस लेख में फसल चक्र और इससे होने वाले फायदे को जानें।
Crop rotation in hindi: मिट्टी की गुणवत्ता के लिहाज़ से फसल चक्र (Crop Rotation) बेहद अहम है। आज के समय में मृदा की उर्वरक क्षमता (Fertility) भी घट रही है। अधिकांश किसान अपने खेतों में केमिकल फर्टिलाइजर्स और पेस्टिसाइड्स का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इससे खेतों को नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे में फसल चक्र (Crop rotation) किसानों के किसी वरदान से कम नहीं है।
तो आइए, द रुरल इंडिया इस लेख में फसल चक्र(phasal chadra) और इससे होने वाले फायदे को करीब से जानें।
सबसे पहले जान लेते हैं कि फसल चक्र क्या है? (What is crop rotation?)
फसल चक्र (Crop rotation meaning)
विभिन्न फसलों को किसी निश्चित क्षेत्र पर, एक निश्चित क्रम से, किसी निश्चित समय में बोने को फसल चक्र (Crop rotation) कहते हैं।
आसान भाषा में कहें तो एक ही जमीन पर एक ही प्रकार की फसलें न उगाकर बदल-बदलकर फसल बोने को फसल चक्र (Crop rotation) कहते हैं।
अर्थात् किसी निश्चित क्षेत्र पर निश्चित अवधि के लिए भूमि की उर्वरता को बनाये रखने के उद्देश्य से फसलों को अदल-बदल कर उगाने की प्रक्रिया फसल चक्र (Crop rotation) कहलाता है।
फसल चक्र का इतिहास (History of crop rotation)
सभ्यता के प्रारम्भ से ही किसी खेत में एक निश्चित फसल न उगाकर फसलों को अदल-बदल कर उगाने की परम्परा चली आ रही है। किसी निश्चित क्षेत्र में एक नियत अवधि में फसलों को इस क्रम में उगाया जाने से भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती थी। लेकिन आज के समय किसान बाजार के अंधाधुध और रायासनिक खाद की वजह से फसल चक्र (crop rotation) को भूलता ही जा रहा है।
आदिकाल से ही मानव अपने भरण पोषण के लिए अनेक प्रकार की फसले उगाता चला आ रहा है। फसलें मौसम के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। अधिक मूल्यवान फसलों के साथ चुने गए फसल चक्रों (crops rotation) में मुख्यदलहनी फसलें, चना, मटर, मसूर, अरहर, उर्द, मूंग, लोबिया, राजमा, आदि का उगाया जाना जरूरी है। पहले के किसान अपने आवश्यकता के लिए सभी प्रकार की फसलें उगाते थे, जोकि आज बाजार के अंधाधुध में एक ही फसलें उगानें की प्रथा चल रही है।

फसल चक्र से जुड़ी कुछ मुख्य तथ्य (Some important facts related to crop rotation)
फसल चक्र (crop rotation) को अपनाने से किसानों को फसल में आने वाली कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। फसल चक्र का इस्तेमाल वे अपने खेतों से अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं और इससे खेतों की उर्वरक क्षमता भी बनी रहती है। क्योंकि एक फसल को उगाने से किसानों को फसल की कम उपज मिलती है और इस कारण मिट्टी में बीज जनित और मृदा जनित रोग भी बढ़ते हैं, जिसके कारण भूमि के अंदर विषैले गुण उत्पन्न होते हैं एवं भूमि में पाए जाने वाली छोटे उपयोगी मित्र किट नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में खेत धीरे धीरे बंजर होते चले जाते हैं।
आज न तो केवल उत्पाद वृद्धि रूक गई है, बल्कि एक निश्चित मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए पहले की अपेक्षा न बहुत अधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना पड़ रहा है, क्योंकि भूमि में उर्वरक क्षमता उपयोग का हृास बढ़ गया है। इन सब विनाशकारी अनुभवों से बचने के लिए फसल चक्र (phasal chadra), फसल सघनता, के सिद्धान्तों को दृष्टिगत रखते हुए फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश जरूरी हो गया है, क्योंकि दलहनी फसलों से एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती है।
फसल चक्र के फायदे (Advantages of crop rotation)
किसान और खेत एक-दूसरे के पूरक हैं। ऐसे में खेतों को होने वाला फायदा किसानों का ही है। फसल चक्र (Crop rotation) से खेतों को काफी लाभ मिलता है।
- फसल चक्र (crop rotation) से मृदा उर्वरता बढ़ती है।
- भूमि में कार्बन-नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है।
- भूमि के पीएच (PH) और क्षारीयता में सुधार होता है।
- भूमि की संरचना में सुधार होता है।
- मृदा क्षरण की रोकथाम होती है।
- फसलों का बीमारियों से बचाव होता है, कीटों का नियन्त्रण होता है।
- खरपतवारों की रोकथाम होती है।
- वर्षभर आय प्राप्त होती रहती है।
- भूमि में विषाक्त पदार्थ एकत्र नहीं होने पाते हैं।
फसल चक्र के सिद्धांत (Principles of crop rotation)
एक ओर जहां हमने फसल चक्र(Crop rotation) से होने वाले फायदों पर चर्चा की हैं, वहीं हमें इसके सिद्धांत भी समझने जरूरी हैं। फसल चक्र निर्धारण के मूल सिद्धांतों को ध्यान में रखना जरूरी हैं, क्योंकि इनके बगैर इस प्रणाली के अपनाने का कोई लाभ नहीं हैं। आइए, इन मूल सिद्धांतो की सूची (types of crop rotation) पर एक नजर डालते हैं, जो कि इस प्रकार हैं।
- अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलों का उत्पादन
- अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल
- अधिक निराई गुड़ाई चाहने वाली फसल के बाद कम निराई गुड़ाई चाहने वाली फसल
- दलहनी फसलों के बाद अहदलनी फसलों का उत्पादन
- अधिक मात्रा में पोषक तत्व शोषण करने वाली फसल के बाद खेत को परती रखना
- एक ही नाशी जीवों से प्रभावित होने वाली फसलों को लगातार नहीं उगाना
- उथली जड़ वाली फसल के बाद गहरी जड़ वाली फसल को उगाना
- फसलों का समावेश स्थानीय बाजार की मांग के अनुरूप रखना
- फसल का समावेश जलवायु तथा किसान की आर्थिक क्षमता के अनुरूप करना चाहिए
फसल चक्र के उदाहरण (Examples of crop rotation)
फसल चक्र अपनाते समय रखें इन बातों का ध्यान (Keep these things in mind while adopting crop rotation)
फसल चक्र अपनाते वक्त इस बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए कि एक ही तरह की फसल या एक ही गुण वाली फसल न लें। इससे मिट्टी के पोषक तत्वों में कमी आती है और कीड़े लगने की आशंका बढ़ सकती है।
जैसे-
यदि आप खीरे की फसल लेते हैं, तो उसके बाद तरबूज़ या खरबूज़े की फसल न लें। वहीं, यदि आप फूल गोभी उगाते हैं, तो उसके तुरंत बाद पत्ता गोभी या ब्रोकली न लगाएं। इसके अतिरिक्त यदि आप आलू की फसल ले रहे हैं तो उसके बाद टमाटर की फसल न लें।
ये तो थी, फसल चक्र (Crop Rotation) की बात। लेकिन, The Rural India पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजना और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।