
chane ki kheti: हमारे देश भारत में चना (gram) एक दलहनी फसल है। दलहनी का अर्थ है- दाल वाली फसल। दाल वाली फसलें हमारे देश में प्रोट्रीन का सबसे बड़ा स्रोत है। यही कारण है कि भारत में चने की खेती (chane ki kheti) को अधिक महत्व दिया जाता है।
चने की खेती (chana ki kheti) पर एक नज़र
विश्व में भारत चने का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में चना रबी फसल के रूप में उगाया जाता है। चूंकि भारत में चने की फसल (chane ki fasal) बहुत उपयोगी है, इसलिए फसल में खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई करते हुए कीट और रोग नियंत्रण पर भी ध्यान देना जरूरी है। इन सभी कार्यों को समय पर नहीं करने से फसल के उत्पादन में भारी कमी आ जाती है।
इस ब्लॉग में चने की खेती (chana ki kheti) पर एक विस्तृत चर्चा की गई है और बताया गया है कि चने की उन्नत खेती(Gram farming) कैसे की जाए।
तो आइए सबसे पहले जानते हैं चने के लिए आवश्यक जलवायु
चने की खेती के लिए जलवायु और तापमान
चना रबी ऋतु की महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। किसान इसे नगद फसल के रूप में मान्यता देता है। 24 डिग्री सेल्सियस और 30 डिग्री सेल्सियस के बीच आदर्श तापमान के साथ अच्छी नमी की स्थिति में चने की फसल अच्छी तरह से बढ़ती है। चने की खेती सिंचाई और वर्षा दोनों स्थितियों में की जाती है।
मूल रूप से यह फसल शीत ऋतु की फसल है। चना एक स्वपरागित फसल है और आमतौर पर वर्षा आधारित ठंडी मौसम की फसल के रूप में या अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में शुष्क जलवायु फसल के रूप में उगाई जाती है। फसल में फूल आने के बाद वर्षा होना हानिकारक होता है क्योंकि वर्षा के कारण फूल परागकण एक दूसरे से चिपक जाते हैं जिससे बीज नहीं बनते हैं इसलिए फसल के लिए अधिकतम दैनिक तापमान 18 से 29 डिग्री सेल्सियस के बीच होना आवश्यक है।
चने की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
चना की फसल (chane ki fasal) को अच्छी जल निकासी प्रणाली के साथ उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह फसल मध्यम भारी मिट्टी, काली कपास मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जाती है। काली मिट्टी ज्वालामुखी और चट्टानों के टूटने से बनती है और इससे कपास की मिट्टी भी कहा जाता है।
इस प्रकार की मिट्टी में चूना, आयरन, मैग्नीशियम और पोटाश की अच्छी मात्रा होती है जो चने की खेती में बेहद ही उपयोगी तत्व है। वहीं दोमट मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी भी कहते हैं जिसे नदियां अपने साथ बहा कर लाती हैं लेकिन इस प्रकार की मिट्टी में नाइट्रोजन और पोटाश की मात्रा कम पाई जाती हैं जबकि फास्फोरस की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है और इस मिट्टी में भी चने की फसल का अच्छा उत्पादन किया जा सकता है।
मिट्टी का पीएच 6.0 से 7.0 होना चाहिए। चने की खेती अच्छी अवशिष्ट नमी वाली मिट्टी को पसंद करती है।
चना की खेती का समय
चने की खेती(chana ki kheti) के लिए बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच होता है। इसके बाद बुवाई करने पर उत्पादन कम होता जाता है। सिंचित हालातों के लिए 25 अक्टूबर से 10 नवंबर तक देसी और काबुली चने की किस्मों की बिजाई करनी चाहिए। सही समय पर बिजाई करनी जरूरी है क्योंकि अगेती बिजाई से अनावश्यक विकास का खतरा बढ़ जाता है। पीछे की बिजाई से पौधों में सूखे रोग का खतरा बढ़ जाता है, पौधे का विकास घटिया और जड़ें भी उचित ढंग से नहीं बढ़ती है।
चना की खेती कैसे करें
चना मिट्टी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है। भारी मिट्टी पर इसकी खेती नहीं की जाती है और बीज की तैयारी में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। चने के लिए एक खुरदुरे बीज की आवश्यकता होती है। मानसून के दौरान गहरी जुताई कर लें क्योंकि इससे इस फसल के बाद के उपयोग के लिए मिट्टी के स्तर में वर्षा जल के बड़े संरक्षण में मदद मिलेगी। बहुत महीन और सघन बीज वाली क्यारी चने के लिए अच्छी नहीं होती है लेकिन इसके लिए एक ढीले और अच्छी तरह से वातित बीज की आवश्यकता होती है।
चने की उन्नत किस्में
दुनिया भर में उगाए जाने वाले चने दो अलग-अलग प्रकार के होते हैं।
- देसी
- और काबुली
देसी चने में रंगीन और मोटे बीज का कोट होता है। देसी चने के बीज का रंग भूरा, पीला, हरा या काला होता है।
काबुली प्रकार के चने सफेद रंग और गोल आकार के होते है। बीज की परत चिकनी सतह के साथ पतली होती है। काबुली प्रकार के बीज का आकार आम तौर पर बड़ा होता है और देसी प्रकार की तुलना में अधिक बाजार मूल्य प्राप्त करता हैं।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
चना ज्यादातर बारानी फसल के रूप में बोया जाता है। हालाँकि, जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों, वहां बुआई से पहले सिंचाई करें। यह उचित अंकुरण और सुचारू फसल-विकास सुनिश्चित करेगा। यदि जाड़े में वर्षा नहीं होती है, तो एक सिंचाई पूर्व-प्रवाह अवस्था में और एक फली विकास अवस्था में करें। खराब मिट्टी के मामले में, इस फसल को अच्छी तरह से सड़ी हुई खेत की खाद और यूरिया, फॉस्फोरस जैसे जैविक उर्वरकों की आवश्यकता होती है। इन खादों और उर्वरकों को बीज बोने से पहले लगाना चाहिए।
चने की खेती में लागत और कमाई
एक एकड़ में चने की खेती(chana ki kheti) के लिए औसतन किसान को 11,250 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। एक एकड़ में चना की खेती से किसान लगभग 8 क्विंटल औसत उपज प्राप्त कर सकता है।
एक किसान जब अपनी उपज को बाजार में बेचता है तो उसे 3,325 रूपये प्रति क्विंटल प्राप्त होता है। अतः कुल मिलाकर उन्हें 8 क्विंटल चने के 26,600 रुपये मिल सकते हैं। किसान को एक एकड़ में चने की खेती कर लगभग 15,350 रुपये की आय प्राप्त होगी। विभिन्न तथ्यों के आधार पर शुद्ध आय में थोड़ा उतार-चढ़ाव हो सकता है।
चना की खेती पर एक्सपर्ट की सलाह
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न- चना कौन से महीने में लगाया जाता है?
उत्तर- चना रबी की फसल है। चने की बुआई सितंबर से अक्टूबर महीने में की जाती है।
प्रश्न- 1 एकड़ में कितना चना बोना चाहिए?
उत्तर- एक एकड़ में 20 से 25 किलोग्राम चना की बुआई की जाती है।
प्रश्न- चने की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें?
उत्तर- चने की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव के साथ-साथ सही समय पर सिंचाई प्रबंधन और उर्वरक प्रबंधन करें।
प्रश्न- चने में कौन सा खाद डालना चाहिए?
उत्तर- चने की खेती में बुआई के पहले पहली जुताई के समय गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद का उपयोग करें। इसके बाद आप आवश्यकतानुसार डीएपी की खाद डाल सकते हैं।
प्रश्न- चने की फसल में पहला पानी कब देना चाहिए?
उत्तर- चने की फसल में 20 से 25 दिनों के बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए।
प्रश्न- एक बीघा में चना कितना कुंटल होता है?
उत्तर- एक बीघा में 4 से 5 क्विंटल चना का उत्पादन होता है। हालांकि यह उत्पादन चने की किस्म, सही देखभाल, सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन पर निर्भर करता है।
प्रश्न- चना कितने दिन में तैयार होता है?
उत्तर- चना 110 से 125 दिनों में तैयार होता है।
प्रश्न- चने में फूल कितने दिन में आता है?
उत्तर- चने में फूल 45 से 60 दिनों में आता है।
अगर आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा हो, तो इसे मित्रों तक जरूर पहुंचाए। जिससे अन्य किसान मित्र भी इस जानकारी का लाभ उठाते हुए चने की खेती (chana ki kheti) को सफलतापूर्वक कर सकें।