भास्करचार्य का जीवन परिचय | Biography of Bhaskaracharya in Hindi
भास्कराचार्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है।

Bhaskaracharya ka jeevan parichay: भास्कराचार्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये 4 भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित और गोले से सम्बन्धित हैं।
भास्करचार्य की जीवनी (Biography of Bhaskaracharya in Hindi)
भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ. भाऊ दाजी (१८२२-१८७४ ई.) ने महाराष्ट्र के चालीस गाँव से लगभग १६ किलोमीटर दूर पाटण गाँव के एक मंदिर में एक शिलालेख की खोज की थी। इस शिलालेख के अनुसार भास्कराचार्य के पिता का नाम महेश्वर था और उन्हीं से उन्होंने गणित, ज्योतिष, वेद, काव्य, व्याकरण आदि की शिक्षा प्राप्त की थी।
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था।
भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है।
भास्कराचार्य का योगदान
भारकराचार्य ने सारणियां, संख्या प्रणाली भिन्न, त्रैराशिक, श्रेणी, क्षेत्रमितीय, अनिवार्य समीकरण जोड़-घटाव, गुणा-भाग, अव्यक्त संख्या व सारिणी, घन, क्षेत्रफल के साथ-साथ शून्य की प्रकृति का विस्तृत ज्ञान दिया। पायी का गान 3.14166 निकाला, जो वास्तविक मान के बहुत करीब है। उनके द्वारा खोजी गयी तमाम विधियां आज भी बीजगणित की पाठ्यपुस्तकों में मिलती हैं।
ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान में उन्होंने ग्रहों के मध्य व यथार्थ गतियां काल, दिशा, स्थान, ग्रहों के उदय, सूर्य एवं चन्द्रग्रहण विशेषत: सूर्य की गति के बारे में महत्वपूर्ण खोजें की। अपने सूर्य सिद्धान्त में उन्होंने यह समझाया था कि पृथ्वी गोल है, जो सूर्य के चारों ओर निश्चित परिपथ पर चक्कर लगाती है। भास्कराचार्य ने ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति सम्बन्धित तथ्य बताए।
उन्होंने गोले की सतह पर घनफल निकालने की विधि भी बताई। आंखों के सहारे रात-भर जाग-जागकर उन्होंने गणना के आधार पर सूर्योदय, सूर्यास्त, गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी जो तथ्य संसार के लिए दिये, वह प्रशंसनीय हैं। उनके ग्रन्थ लीलावती का अनुवाद फैजी ने फारसी में तथा 1810 में एच॰टी॰ कोलब्रुक ने अंग्रेजी में किया। उनके सिद्धान्तशिरोमणि का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया।