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बायोफ्लॉक तकनीक क्या है? यहां जानें | biofloc fish farming in hindi

आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक (biofloc fish farming in hindi) को विस्तार से जानें।

biofloc fish farming : मछली पालन बायोफ्लॉक तकनीक

biofloc fish farming in hindi: भारत में मत्स्य पालन (Fish farming) यानी मछली पालन व्यवसाय उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। पहले मछली पालन (machhali palan) सिर्फ मछुआरों तक ही सीमित था, लेकिन इसके बढ़ते व्यवसाय के चलते कई किसानों ने भी मछली पालन करना शुरू किया है। अब चाहे वो पारंपरिक तरीका हो या आधुनिक तकनीक, आज चाहे छोटे किसान हों या बड़े किसान या फिर मछली पालक ही क्यों ना हो, इस व्यवसाय से हर कोई मुनाफा कमा रहा है। 

यही वजह है कि आज के समय में मछली पालन (machhali palan) करीब डेढ़ करोड़ लोगों की आजीविका बन चुका है। जिसके चलते मछली पालन के क्षेत्र में रिसर्च करने वाले हमारे वैज्ञानिक एक ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है, जिससे मछली पालन में कम लागत के साथ ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।

मछली पालन के क्षेत्र में रिसर्च यानी कि अनुसंधान के जरिए वो कमाल हुआ है, जिससे छोटे-बडे किसानों और मछुआरों के जोखिम तो कम होंगे ही, साथ ही स्मार्ट तकनीक के जरिए उन्हें मछली का अच्छा उत्पादन भी प्राप्त होगा।

मछली पालन की एक नई तकनीक है- बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology)

इस तकनीक में न तो आपको किसी संमदर की लहरों के साथ संघर्ष की जरूरत है और न ही किसी तालाब में गोते लगाने की। जरूरत है तो सिर्फ मत्स्य विभाग की प्रयोगशालाओं में ट्रेनिंग करके मछली पालन की पूरी जानकारी लेने की। 

तो आइए, द रूरल इंडिया के इस ब्लॉग में मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक (biofloc fish farming in hindi) को विस्तार से जानें।

biofloc fish farming : बायोफ्लॉक तकनीक से करें मछली पालन

मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक

मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) की सफलता कई राज्यों में किसान और मछुआरों की जिंदगी में चार चांद लगा चुकी है। शायद यही कारण है कि भारत में इसे नई नीली क्रांति के रूप देखा जा रहा है। 

मछली पालन में बायोफ्लॉक तकनीक एक कम लागत में अधिक मुनाफा देने का उन्न्त तरीका है, जिसमें मानवनिर्मिंत तालाब के कई जहरीले पदार्थ जैसे अमोनिया, नाइट्रेट और नाइट्राइट आदि मछलियों के लिए पोषण युक्त आहार का काम करते हैं। इस तकनीक के तहत मछलियों के टैंक में मछलियों द्वारा छोड़े गए अपशिष्ट पदार्थों को बैक्टीरिया की मदद से प्रोटीन सेल में तब्दील कर दिया जाता है, जो मछलियों के लिए पोषण का काम करता है।

आासान भाषा में कहें तो बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) मछली पालन की एक आधुनिक तकनीक है, इस विधि में पानी में मौजूद विषैले पदार्थों को मछलियों के चारे में तब्दील हो जाता है। यह चारा मछलियों का भोजन बन जाता है। 

इस तकनीक में कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा सदैव संतुलन में रहता है। जिससे मछलियों को वृद्धि करने का पूरा मौका मिलता है। जब पानी का स्वास्थ्य अच्छा रहता है, तो मछलियों को पालना और भी आसान हो जाता है।

मछलियां भोजन लेने के बाद लगभग 75 प्रतिशत अपशिष्ट पदार्थ छोड़ती हैं, जो टैंक में ही गंदगी और बीमारियों को न्यौता देते हैं। लेकिन बायोफ्लॉक तकनीक की खास बात यह है कि इस प्रणाली में बायोफ्लॉक बैक्टीरिया अपशिष्ठ पदार्थो के साथ संपर्क करके उन्हें प्रोटीन में बदल देता है। 

बायोफ्लॉक बैक्टीरिया कोई आम बैक्टीरिया नहीं है बल्कि विटामिन, फास्फोरस के साथ-साथ खनिज पदार्थों का भी उत्तम स्रोत है। बायोफ्लॉक बैक्टीरिया की तकनीक के इस्तेमाल से ना सिर्फ एक तिहाई फीड की बचत होती है बल्कि पानी औऱ श्रम का खर्चा भी कम होता है। अब बायोफ्लॉक तकनीक का प्रयोग करके न सिर्फ टैंक को साफ रख सकते हैं बल्कि मछलियों के लिए भोजन का भी इंतजाम हो जाता है।

कैसे काम करती है बायोफ्लॉक तकनीक

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) में तालाब या टैंक के बैक्टीरिया की मदद से मछलियों के अपशिष्ट पदार्थों को ही उनके भोजन में बदल दिया जाता है, जो मछलियों के लिए पोषण का काम करता है। 

इन अपशिष्ट पदार्थों नें बायोफ्लोक्स, शैवाल, बैक्टीरिया, प्रोटोजोअन और कार्बनिक पदार्थों जैसे- मछली की विष्ठा और उनके भोजन का बचा हुआ हिस्सा होता है। जिसमें प्रोटीन की 25 से 50 प्रतिशत और वसा की 5 से 15 प्रतिशत मात्रा पाई जाती है।

बायोफ्लॉक तकनीक के लिए आवश्यक सामाग्री

इस तकनीक के लिए सबसे पहले सामान्य सीमेंट या तारपोलिन के टैंक की जरुरत होती है। इसी के साथ एयरेशन(हवादार) सिस्टम, बिजली की उपलब्धता, प्रोबायोटिक्स और मछली बीज का प्रबंधन भी मछलीपालन की बायोफ्लॉक तकनीक के लिए बेहद जरूरी है।  24 घंटे बिजली की उपस्थिति होना जरूरी है क्योंकि इस तकनीक में सहायक ऐरोबिक बैक्टीरिया को 24 घंटे की लगातार हवा में जीवित रहता है, जो बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) को सफल बनाने में मददगार है। इसके लिए आप सोलर पैनल का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे अतिरिक्त खर्चों में भी बचत होगी।

biofloc fish farming : बायोफ्लॉक तकनीक से करें मछली पालन

बायोफ्लॉक तकनीक की विशेषताएं

सामान्य तौर पर मछलीपालन करने वाले किसानों या मछली पालकों को तालाब की निगरानी करनी पड़ती है, क्योंकि खुले तालाब में मछलियों पर सांप और बगुलों के आक्रमण का साया मंडराता रहता है। लेकिन बायोफ्लॉक तकनीक में टैंकों के ऊपर शेड़ या छत लगा दी जाती है। जिससे मछलियों को जान की हानि नहीं होती, तापमान नियंत्रित रहता है और प्रदूषण की समस्या भी खत्म हो जाती है।

जाहिर है कि एक हैक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी भरा जाता है। लेकिन पानी की बचत वाली बायोफ्लॉक तकनीक(Biofloc technology) के अंतर्गत चार महीने में सिर्फ एक बार ही पानी की जरूरत होती है। इतना ही नहीं, टैंकों में गंदगी होने पर सारा पानी निकालने की जरूरत नहीं है, सिर्फ 10 प्रतिशत पानी की निकासी के साथ इसकी सफाई हो जाएगी और उस 10 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल किसान अपने खेतों में भी कर सकते हैं।

अगर बायोफ्लॉक तकनीक से अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो टैंक का साइज बडा ही रखें, क्योंकि मछली का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन टैंक के आकार पर ही निर्भर करता है। आमतौर पर एक मछली टैंक के निर्माण में लगभग 28 से 30 हजार रुपए की लागत आती है, जिसमें लेबर और मटेरियल का खर्चा शामिल है।

हर मछली के लिए पानी जीने का और फलने-पूलने का जरिया है, इसलिए पानी का तापमान भी नियंत्रित करना मछली की गुणवत्ता के लिए जरूरी है। क्योंकि कई मछलियां ज्यादा ठंडे पानी में नहीं रहतीं और कुछ मछलियां ज्यादा गर्म या गुनगुने पानी को भी नहीं सह पाती। इसलिए पॉलीशेड़ लगाकर या मछली विशेषज्ञों से संपर्क करके तापमान प्रबंधन का कार्य भी जरूर करें।

सबसे जरूरी बात, बाजार की मांग के हिसाब से मछली पालन के लिए प्रजाति का चुनाव करें। क्योंकि बाजार की मांग का सीधा संबंध आपके व्यवसाय के मुनाफे से जुड़ा होता है। आप चाहें तो पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, कोई कार्प, पाब्दा, एवं कॉमन कार्प आदि प्रजातियों का चुनाव कर सकते हैं।

बायोफ्लॉक तकनीक में है कम खर्च और अधिक आमदनी

जैसा कि आप समझ ही चुके होंगे कि बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) में खर्चा सामान्य मछलीपालन के मुकाबले कम ही आता है। फिर चाहे खर्चा श्रम का हो, समय हो, देखभाल का हो या फिर रुपयों का ही क्यों ना हो। हर तरीके से बायोफ्लॉक तकनीक एक आदर्श तकनीक है। शायद यही काऱण है इससे मछलियों की गुणवत्ता को बेहतर रहती ही है, साथ ही इसके दाम भी बाजार में अच्छे मिल जाते हैं। 

एक रिसर्च के मुताबिक, 10 हजार लीटर क्षमता वाले टैंक के निर्माण और रखरखाव में 5 साल के दौरान सिर्फ 32 हजार की लागत आती है। जबकि मछली को पालने में 24 हजार रुपए का खर्च होता है। क्योंकि उनके मल से ही भोजन का निर्माण होता है, इसलिए मछली के दाने में 3 के बजाय सिर्फ 2 बोरी दाना ही काफी रहता है। वहीं बाजार में इसकी बिक्री की बात करें तो लगभग 3.4 क्विंटल वजन की मछली का बाजार में दाम लगभग 40 हजार होता है। जो किसान भाइयों के लिए खेती के साथ-साथ अतिरिक्त आय का भी काम करता है।

संक्षेप में कहें तो बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं। इस तकनीक को अपनाने से कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। 

यदि आप 1 लाख रुपए की लागत के साथ भी अगर मछली पालन का व्यवसाय शुरू करें तो आप लगभग 2 लाख रुपए तक का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 

मछली पालन के लिए लोन

मछली पालन के जरिए भारत में नीली क्रांति लाने के लिए सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मछलीपालकों के लिए एक विशेष पैकेज का भी ऐलान किया है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत भी किसानों को मछली पालन के जरिए अतिरिक्त आय कमाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यानी आपके शुरूआती खर्चों में सरकार भी भागीदार रहेगी। 

आपको बता दें, मछली पालकों की क्षमता विकास के लिए केंद्र सरकार लगभग 75 फीसदी तक लोन देने के लिए तैयार है। और जब बात बायोफ्लॉक तकनीक(Biofloc technology) की हो, सब्सिडी के साथ-साथ कई राज्यों में इसकी सफल यूनिटें चलाई जा रही हैं, जहां आप इस तकनीक का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं।

अगर आपको यह ब्लॉग अच्छा लगा हो, तो इसे मित्रों तक जरूर पहुंचाए। जिससे अन्य मित्र भी मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) का लाभ उठा सकें।

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