बासमती धान की खेती कैसे करें? यहां जानें | Basmati dhan ki kheti
बासमती भारत की लंबे और सुगंधित चावल की एक उत्कृष्ट किस्म है। यह अपने खास स्वाद और बेहतरीन खुशबू के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय है।
Basmati dhan ki kheti: बासमती धान की खेती कैसे करें?
भारत समेत कई एशियाई देशों में धान (paddy) एक मुख्य खाद्य फसल है। गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया में मक्का के बाद धान ही वो फसल है जो सबसे ज्यादा बोई और उगाई जाती है। भारत में करोड़ों किसान धान की खेती (dhan ki kheti) करते हैं। धान खरीफ सीजन की मुख्य फसल है, जो लगभग भारत के अधिकांश हिस्से में लगाई जाती है। बासमती धान की खेती (basmati dhan ki kheti) में भारत का अव्वल स्थान है।
बासमती भारत की लंबे और सुगंधित चावल की एक उत्कृष्ट किस्म है। यह अपने खास स्वाद और बेहतरीन खुशबू के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय है। बासमती चावल दुनियाभर के बाजारों में सबसे अधिक दाम पर बिकने वाला चावल है। यदि किसान बासमती धान की खेती (basmati dhan ki kheti) को उन्नत और वैज्ञानिक तरीके से करें तो इससे उन्हें कई गुना ज्यादा मुनाफा मिल सकता है।
तो आइए, The Rural India के इस लेख में बासमती धान की खेती कैसे करें? (basmati dhan ki kheti kaise kare) को विस्तार से जानें।
बासमती धान की खेती पर एक नज़र
बासमती धान के पौधे लम्बे और पतले होते हैं। इनका तना तेज हवाएं भी सह नहीं सकती है। इनमें अपेक्षाकृत कम, परंतु उच्च श्रेणी की पैदावार होती है। यह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ऊंचे दामों पर बिकता है। बासमती के दाने अन्य दानों से काफी लम्बे होते हैं। पकने के बाद, यह आपस चिपकते नहीं हैं बल्कि बिखरे हुए होते हैं। यह चावल मुख्यतः दो प्रकार का होते हैं, सफ़ेद और भूरे।
बासमती धान के लिए ज़रूरी जलवायु
धान गर्म और नम जलवायु का पौधा है। बासमती को भी किसी अन्य प्रकार की धान की ही तरह जलवायु की जरूरत होती है। धान को उन सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, जहां 4 से 6 महीनों तक औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है। फसल के अच्छी बढ़त के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सटीक होता है। साथ ही रात्रि का तापमान जितना कम रहे, फसल की पैदावार के लिए उतना ही अच्छा है। लेकिन यह तापमान भी 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरना चाहिए। कुल मिलाकर बासमती की खेती के लिए लम्बे समय के लिए धूप, अधिक आर्द्रता वाला मौसम सटीक है और पकते समय कम तापमान होना जरूरी है।
खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
बासमती धान की खेती (basmati dhan ki kheti) के लिए अच्छे जल धारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मिट्टी का होना जरूरी है। धान की अच्छे बढ़वार के लिए मिटटी का पीएच मान(PH) 6 से 7 के बीच सही होता है।
यहां हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि बासमती धान की जो पारंपरिक प्रजातियां हैं, वे प्रकाश के प्रति संवेदनशील, लंबी अवधि और अपेक्षाकृत अधिक ऊंचाई वाली होती हैं। जिससे उसकी उपज कम होती है। बासमती धान की जो नई प्रजातियां विकसित की गई हैं वे कुछ सावधानियां बरतने पर अधिक उपज देती हैं।
बासमती धान की खेती का समय
बासमती धान की नर्सरी की बिजाई जून के पहले पखवाड़े में करना बेहतर विकल्प है। ध्यान रहे कि फसल का जमाव मानसून शुरू होने से पहले हो जाए। नर्सरी उगाने में गीली विधि अपनाने की सलाह दी जाती है। गीली विधि अपनाने के पीछे का तर्क यह है कि इससे धान के प्रमुख रोगों में से एक बदरा रोग के आक्रमण को कम किया जा सकता है। इसके बाद बासमती चावल की रोपाई जुलाई के पहले पखवाड़े में करना सही रहेगा। याद रहे कि जब बासमती चावल की पौध पर 5-6 पत्ते आ जाएं या उसकी उम्र 25-30 दिन की हो गई हो तब वह पौधारोपण के लिए उपयुक्त होती है।
बासमती धान के लिए खेत की तैयारी कैसे करें?
सभी प्रकार की भूमि में बासमती धान की सीधी बिजाई की जा सकती है, लेकिन मध्यम संरचना वाली भूमि ज्यादा बेहतर है। सबसे पहले अच्छे जमाव और पानी की बचत के लिए खेत का लेजर समतलीकरण करना चाहिए। इसके बाद सीधी बिजाई के लिए उल्टे टी-प्रकार के फाले और तिरछी प्लेट युक्त बीज बक्से वाली बीज और उर्वरक जीरो-टिल ड्रिल का प्रयोग करना चाहिए।
तैयारी के लिए सबसे पहले बत्तर खेत में ड्रिल से बिजाई व देरी से प्रथम सिंचाई करें। इसके तुरंत बाद ड्रिल से 3-5 सैं.मी. गहराई पर बिजाई करें। इसके बाद तुरंत सुहागा लगाएं ताकि नमी न उडे़ और बीज व मिट्टी का पूरा संपर्क बना रहे। खेत की तैयारी और बिजाई शाम को करें।
दूसरे तरीके में आप खेत की 2-3 जुताई करके तैयार कर सुहागा लगा सकते हैं। ड्रिल से 2-3 सैं.मी. गहराई पर बिजाई करें और बिजाई उपरांत सुहागा न लगाएं। बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। बीज की मात्रा एंव उपचार बीज की मात्रा 8. कि.ग्रा./ एकड़ उपयुक्त है।
बीज का उपचार दवाओं के घोल में उन्हें 24 घंटे डुबोकर करें। इसके बाद बीज को 1-2 घंटे छाया में सुखाएं ताकि अतिरिक्त नमी उड़ जाए। सिंचाई बत्तर सीधी-बीजित धान में मौसम के अनुसार प्रथम सिंचाई बिजाई के 7-15 दिन बाद लगाएं। आगामी सिंचाई सप्ताह के अंतराल पर लगाएं। सूखी सीधी-बीजित धान में प्रथम सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद लगाएं। अगली सिंचाई 4-5 दिन बाद करें ताकि एकसार जमाव हो सके व पौध नष्ट न हो। आगामी सिचाई सप्ताह के अंतराल पर लगाएं। ध्यान रहे कि बालियां निकलने व दाना मरने की दो संवेदनशील अवस्थाओं पर नमी की कमी न रहे।
बासमती की उन्नत किस्में
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के अनुसार बासमती चावल की 29 किस्में अधिसूचित की गई हैं। बासमती चावल की यह प्रमुख किस्में हैः बासमती 217, बासमती 370, टाइप 3 पंजाब बासमती 1, पूसा बासमती 1, कस्तूरी, हरियाणा बासमती 1, माही सुगंधा, तरोरी बासमती, रणबीर बासमती, बासमती 386, इम्प्रूव्ड पूसा बासमती 1, पूसा बासमती 1121, वल्लभ बासमती 22, पूसा बासमती 6, पंजाब बासमती 2, बासमती सी.एस.आर 30, मालविया बासमती धान 10-9, वल्लभ बासमती 21, पूसा बासमती 1509, बासमती 564, वल्लभ बासमती 23, वल्लभ बासमती 24, पूसा बासमती 1609, पंत बासमती 1, पंत बासमती 2, पंजाब बासमती 3, पूसा बासमती 1637 और पूसा बासमती 1728।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
बासमती धान में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता सामान्य धान तुलना में आधी होती है। बासमती की नई प्रजातियों को 90-100 किग्रा० नाइट्रोजन, 40 किग्रा० फास्फोरस तथा 30 किग्रा० पोटाश देना चाहिए। परम्परागत किस्मों में 50-60 किग्रा० नाइट्रोजन की आवश्यकता पड़ती है तथा फास्फोरस और पोटाश की आवश्यकता, नई किस्मों के समान होती है। खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के बाद ही करना चाहिए। जिंक, फास्फोरस, एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा का प्रयोग खेत की तैयारी के समय कर देना चाहिए। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा का 1/3 भाग 7 दिन पर शेष 1/3 मात्रा कल्ले और शेष एक तिहाई मात्रा बालियां निकलते समय प्रयोग करना चाहिए। 25-30 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय डाल देना चाहिए। बासमती धान की उर्वरक मॉग कम होने के कारण इसकी कार्बनिक खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
बासमती धान की खेती में लागत और कमाई
अगर कुछ बातों का शुरु से ही ध्यान रखा जाए तो बासमती धान (Basmati Rice) की फसल ज्यादा मुनाफा देगी। बासमती चावल का भाव अन्य चावल के मुकाबले कहीं ज्यादा होता है। हाल के दिनों में यह मुनाफा थोड़ा कम जरूर हुआ है लेकिन लागत के मुकाबले मुनाफा बढ़िया है। बासमती से कमाई उनके अलग-अलग प्रकारों पर अलग-अलग तरीके से होती है। धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है, इसलिए बीजों का अच्छा होना जरुरी है। कई बार किसान महंगा बीज-खाद तो लगाता है, लेकिन सही उपज नहीं मिल पाती है, इसलिए बुआई से पहले बीज व खेत का उपचार कर लेना चाहिए। बीज महंगा होना जरुरी नहीं है बल्कि विश्वसनीय और आपके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के मुताबिक होना चाहिए।
ये तो थी, बासमती धान की खेती (basmati dhan ki kheti) की बात। लेकिन, The Rural India पर आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजना और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग्स मिलेंगे।