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भारत में कृषि, किसान और मीडिया | Agriculture, Farmers and Media in India

किसान भी इस वैश्वीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। आज जनसंचार माध्यमों से ग्रामीण क्षेत्र (rural area) अछूते नहीं हैं।

Agriculture, Farmers and Media in India: किसान भी इस वैश्वीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। आज जनसंचार माध्यमों से ग्रामीण क्षेत्र (rural area) अछूते नहीं हैं। भारतीय कृषक समाज (Indian Farmers Society) औसत रूप से परंपरावादी, और शांति पसंद है। अभी भी कृषि क्षेत्र में पूरी तरह से परंपरागत खेती का अभ्यास हमारे देश के अन्नदाता (Annadata) को है।

परंपरागत कृषि में किसान अपनी जमीन छोड़ देता है बरसात के भरोसे, बीज कर देता है जमीन के हवाले, समय बीतने पर फसल सही सलामत पक जाती है तो वाह-वाह, अन्यथा उलाहना राज और राम के नाम।

जैसा कि आप सभी जानते हैं, ग्रामीण किसानों की पिछड़ी चेतना का इस्तेमाल करके आज तक सभी सरकार और कंपनियां लुटती रही है। दरअसल जब दुनिया में संचार क्रांति के विभिन्न पहलुओं का विस्तार हो रहा था तब भारत अपनी औपनिवेशिक दासता में जकड़ा हुआ था।

संचार के क्षेत्र में भारत को वास्तविक विकास करने का अवसर आजादी के बाद ही मिल पाया लेकिन आज 70 साल के बाद भी किसानों और ग्रामीणों तक नाम मात्र ही पहुंच बना पाए।

देश के लिए भोजन की व्यवस्था करने वाले किसान को नई कृषि तकनीकी उन्नत बीज, खाद, नए उपकरण, जैविक खेती, पानी की सदुपयोग के लिए माइक्रो सिंचाई, बागवानी, फल-सब्जी उत्पादन, नकदी फसलों की आदत, औषधीय खेती, और विपणन आधारित खेती विस्तार सेवाओं के लिए नियमित प्रशिक्षण व जानकारी दिए जाने की आवश्यकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक आज भी भारत की लगभग 70% जनसंख्या गांव में निवास करती है जिसमें करीब 56% लोग कृषि में अपना योगदान देते हैं, फिर भी भारत में मीडिया किसानों के लिए महज 5 से 10 % की कंटेंट तैयार करती है।

हम भारतीयों के लिए कृषि या खेती कोई नए शब्द नहीं प्राचीन काल से अब तक सदियों से अन्न उत्पादन के लिए धरती की जुताई-बुवाई करके यह कार्य बहुसंख्यक समाज द्वारा लगातार किया जाता रहा है। मनुष्य के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की आपूर्ति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला व्यवसाय कृषि ही रहा है, बल्कि खेती ही हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार है।

आजादी के 70 साल पूरे होने के बाद भी देश की लगभग 56 प्रतिशत आबादी खेती अथवा खेती से संबंधित कार्यों में संलग्न है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि पहले परंपरागत तौर पर खेती का मतलब केवल जमीन को जोत कर अन्य उत्पादन किया जाता था।

वहीं अब पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, कुक्कुट पालन, सूकर पालन और बत्तख पालन आज सब कुछ किसी कृषि में ही आते हैं।

वहीं सदियों से महिलाओं को सामाजिक स्तर पर दूसरा दर्जा दिया जाता रहा है। यह सभी लोग जानते हैं परंतु कृषि का व्यवहारिक दृश्य बिल्कुल अलग है और पूरी तरह से महिलाओं की भागीदारी क्षमता और दक्षता का ज्ञान करता है। चाहे कृषि कार्य हो पशुपालन कार्य हो या डेरी उत्पादन सभी में महिलाओं का सर्वाधिक योगदान है कृषि संचार की सफलता के लिए किसान महिलाओं को प्रशिक्षित करना होगा।

हांलाकि इसके लिए आजादी के बाद अनेक प्रयास हुए हैं। बात कृषि की हो या ग्रामीण विकास की अब तक की व्यवस्था में इनमें कोई आपसी संबंध या समन्वय नहीं हुआ। इस कारण अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग की स्थिति में परिणाम होता है।

दरअसल प्रत्येक प्राणी का मात्र एक स्वभाव है विकास अर्थात उत्तरोत्तर आगे बढ़ना, छोटे से बड़ा बनना, कमजोर से शक्तिशाली बनाना, सामान्य से विशेष बनना और गरीब से अमीर बनना।

हमारे देश को गांव का देश कहा जाता है जिस तरह खेतों में किए जाने वाले कार्यों को कृषि कहा जाता है वैसे ही गांव के विकास के लिए किए जाने वाले कार्यों को ग्रामीण विकास ग्रामीण विकास गांव के सर्वांगीण विकास से संबंधित है जबकि कृषि विकास खेती कार्य तक ही सीमित है।

अगर हम चाहते हैं कि हमारे समाज का राष्ट्र का समुचित विकास हो व्यवस्था सुगठित रहे तो आवश्यक है कि समाज में रहने वाले प्राणियों में परस्पर वैचारिक आदान-प्रदान हो अर्थात सब को समुचित सूचना उपलब्ध हो।

संचार मानव का स्वाभाविक गुण है संचार प्रक्रिया के द्वारा ही मनुष्य सामाजिक संबंधों को निर्मित करता है संबंधों के समग्रता से समाज बनता है समाज मानवता संचार मानव समाज की आधारभूत आवश्यकता है।

किसी भी विकासशील देश की अधिकांश जनसंख्या विशेषकर अशिक्षित जनसांख्यिकीय तक सूचना को पहुंचने का माध्यम लोक मीडिया ही है। इसमें भावनात्मक अपील संभव है जबकि दूसरे अन्य माध्यम ऐसा अन्य माध्यमों में ऐसा संभव नहीं है।

भारत में संचार के क्षेत्र में आधुनिक विकास की शुरुआत तो गुलामी शासन के दौरान ही हो गई थी जब यहाँ प्रेस और रेल का विकास हुआ।
साल 1837 में डाक का विकास हुआ। 1851 में तार और 1853 में रेलवे, 1881 में टेलीफोन, 1923 में रेडियो, 1959 टेलीविजन और लगभग 1995 में इंटरनेट और वर्तमान समय में तो कुछ कहना ही नहीं है जब से सोशल मीडिया का दौर चला है।

लेकिन हैरतअंगेज करने वाली बात है है कि सभी जनसंचार माध्यमों पर महज 7 प्रतिशत कंटेंट(लेख) ग्रामीण से संबंधित है।

हम यह दावा करने की स्थिति में तो नहीं है कि जन संचार के माध्यमों का हमने जन-जन तक पहुंचा दिया है लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि जनसंचार के आधुनिकतम नवीनतम माध्यमों तक हमारे देश की पहुंच बन गई है।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के त्वरित कृषि विकास हेतु गांव के लिए एक टास्क फोर्स बनाकर सन 2020 से पहले देश के लिए सर्वांगीण आत्मनिर्भरता प्राप्ति का आह्वान किया था। सहभागिता और सक्रियता सहित आत्मनिर्भरता प्राप्ति के इस महायज्ञ में शामिल होने हेतु उन्होंने सभी देशवासियों को पुकारा है।

खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के बीच के भेद को हमारा किसान कैसे समझे पढ़े-लिखे प्रगतिशील किसान और किसान पुत्र संचार के साधनों का महत्व समझने लगे हैं। अब वे व्यक्तिगत स्तर पर अखबार मंगवाने और रोज अखबार पढ़ने के आदी होते जा रहे हैं।

ग्रामीण किसानों के लिए विशेष तौर पर तैयार कृषि और गैर कृषि पत्रिकाएं भी अब गांव तक लगातार पहुंच रही हैं इन पत्रिकाओं के माध्यम से ना केवल किसानों का कृषि ज्ञान बढ़ता है बल्कि किसानों द्वारा ग्रहण की गई कृषि व गैर कृषि सूचनाओं का असर अब उनके खेत और व्यवहार दोनों में दृष्टिगत होता दिखाई देता है।

जिस तरह से बकरियों को ‘गरीबों की गाय’ कहा गया है उसी तरह रेडियो को ‘किसान का माध्यम’ कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आजादी के बाद अब तक रेडियो ने लगातार अपनी पहुंच को बढ़ाया है और लगभग 95% जनसंख्या तक पहुंच चुका है।

रेडियो और टेलीविजन के सुखद संयोग से देश में कृषि संचार के क्षेत्र में प्रयोग करके दूसरी हरित क्रांति को शीघ्र संभव और सफल बनाया जा सकता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में टेलीविजन की शुरुआत 15 सितंबर 1959 को ऑल इंडिया रेडियो के एक सहयोगी विभाग के रूप में हुई जिसमें 2 मई 2005 से कृषि दर्शन चैनल पूर्णता किसानों को समर्पित किया गया है। टेलीविजन पर सुनने के साथ-साथ देखने का घटना को देखने का अवसर मिलता है। मनोवैज्ञानिकों का दावा है कि कोई भी व्यक्ति किसी देखे हुए कार्य को ज्यादा याद रख सकता है। अतः दूरदर्शन पर देखे गए कार्यक्रमों का जनमानस पर सर्वाधिक प्रभाव होता है।

टेलीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से बेरोजगार युवा वर्ग को खेती और इससे जुड़े दूसरे कार्यों की ओर आकर्षित करके एक नीतिगत अभियान चलाकर बेरोजगारी की समस्या का हल निकाला जा सकता है आवश्यकता है दृढ़ इच्छाशक्ति और सामूहिक कार्यशीलता की।

किसानों के जीवन किसानों की गतिविधियों उन्नत कृषि के विभिन्न तरीकों आधुनिक उपकरणों के प्रयोग पर आधारित फिल्में बनाकर कृषि संचार के क्षेत्र में फिल्मों की भूमिका को और ज्यादा सक्रिय सकारात्मक और प्रभावी बनाया जा सकता है।

हमारे किसान सुबह से शाम तक जीवन भर खेती और खेती को ही समर्पित है उत्पादन बढ़ाने की चाह में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिए खाद्यान्न उत्पादन में जो बड़े-बड़े प्रयोग किए गए, वे इस प्रकार हैं भूजल द्वारा सिंचाई और जमीन में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग इत्यादि पारंपरिक जैविक खेती का स्थान आधुनिक रासायनिक प्रयोगों ने ले लिया। जनता को किसानों को तथा ग्रामीणों को पता ही नहीं चला कि उन्होंने कौन सी बीमारी को कब आमंत्रण दे दिया है।

विकास के दौर में आज सूचना ने आम आदमी के जीवन में रोटी कपड़ा मकान जैसी अहमियत हासिल कर ली है बल्कि यूं कहा जाए कि आदमी एक बार रोटी के बिना रह सकता है लेकिन सूचना के बिना नहीं इसीलिए हमारी लोकप्रिय लोकतांत्रिक भारत सरकार ने आम आदमी को ‘सूचना का अधिकार’ दे दिया।

आज के युग में कहा जा सकता है कि-

सूचना संपन = अमीर
सूचना विहीन = गरीब

जनसंचार माध्यम लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि वह स्वयं आगे बढ़े। इस तरह अपने विकास द्वारा समाज के विकास में सहायक बने जनसंचार माध्यम लोकतंत्र की भावना को भी विकसित करता है। वह लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाता है। उन्हें एक नागरिक और एक उपभोक्ता के तौर पर जागरूक बनाता है, जनसंचार माध्यम लोगों को साक्षर होने के लिए प्रेरित करता है। उन्हें उच्च शिक्षा और रोजगार के बारे में भी जागरूक बनाता है। वह उन्हें यह भी बताता है कि स्वयं कैसे रहे परिवार के नियोजन से स्वयं उसके परिवार को और राष्ट्र को क्या लाभ है इस तरह जनसंचार माध्यम सामाजिक और राष्ट्रीय विकास में अहम भूमिका निभाता है।

जिस प्रकार कपड़ा रोटी मकान हमारी भौतिक आवश्यकता है उसी प्रकार संचार हमारी सामाजिक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है जनसंचार माध्यमों की स्वतंत्रता आवश्यक है लेकिन स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता अथवा नागरिक हितों की उपेक्षा को उचित नहीं कहा जा सकता है।

जनसंचार माध्यम अपने व्यवसायिक हितों तथा आर्थिक लाभ के आगे स्वतंत्रता का दुरुपयोग करें तो उस पर भी अंकुश लगाना आवश्यक है।जनसंचार माध्यम समाज के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का परिणाम है और वह आधुनिकीकरण में मददगार भी होता है समाज में आधुनिकीकरण का मतलब है विकास अर्थात शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार।

गांव = खेतिहर मजदूर + गैर खेतिहर मजदूर।

किसी देश का राजनीतिक सशक्तिकरण उस देश की जनता की सहभागिता एवं योगदान पर निर्भर करता है यही कारण है कि आज सत्ता की अधिकतम शक्ति ग्राम पंचायतों में समाहित करने का यथोचित प्रयास किया जा रहा है राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए यह भी आवश्यक है कि लोग अपने राजनैतिक अधिकारों से अवगत हो एवं उसका उचित प्रयोग करें इस कार्य में मीडिया की अहम भूमिका होती है मीडिया का परम पुनीत दायित्व है कि इसके माध्यम से लोगों में जान चेतना कर्तव्य और अधिकार की भावना विकसित हो जाए।

सामाजिक परिवर्तन और विकास के लिए जितने भी साधन और संस्थाएं मौजूद हैं उन्हें लोगों तक पहुंचाने और उनमें लोगों को शामिल करने के लिए जरूरी है कि जन संचार के साधनों की सही समझ विकसित करें।

यदि हम पहले से ही मानकर चलते हैं कि जनसंचार का उपयोग जनता को जागरूक बनाने और उन्हें सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में शामिल करने के लिए नहीं किया जा सकता है तो इसका मतलब यह है कि हमने जन संचार के साधनों को निहित स्वार्थों के भरोसे छोड़ दिया है।

संक्षेप में कहें तो स्वतंत्रता के बाद विगत कई दशकों से ग्रामीण विकास की अनेक योजनाएं और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन उनका लाभ बहुसंख्यक ग्रामीणों और किसानों को नहीं मिल पा रहा है।

ऐसे ही किसान और ग्रामीण मुद्दों के लिए द रूरल इंडिया से जुड़े रहें।

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