पतले दाने वाली धान की 8 उन्नत किस्में | 8 Varieties of Paddy in hindi
यदि आप भी पतले दाने वाली धान की की खेती (dhan ki kheti) करना चाहते हैं, तो आप इन 8 उन्नत किस्मों का चुनाव कर सकते हैं।

Varieties of Paddy: भारत में धान (paddy) एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में धान की हजारों प्रजातियां है लेकिन सुगंधित और पतले दाने वाली धान की खेती सभी किसान करना चाहते हैं।
पतले धान की चावल खाने में स्वादिष्ट और सुगंधित होती है। पतले दाने वाले चावल का दाम भी बाजार में मोटे चावल से अधिक होता है।
यदि आप भी पतले दाने वाली धान की की खेती (dhan ki kheti) करना चाहते हैं, तो आप इन 8 उन्नत किस्मों का चुनाव कर सकते हैं।
तो आइए, द रुरल इंडिया के इस ब्लॉग में पतले दाने वाली धान की 8 किस्मों (8 Improved Varieties of Paddy) को विस्तार से जानें।
1. CR Dhan- 100 (satya bhama) सीआर धान- 100 (सत्य भामा)
धान की इस किस्म के दाने पतले और मध्यम लंबे होते हैं। यह अर्द्ध बौनी किस्म है जो 105 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। पौधे की ऊंचाई 95 से 105 सेंटीमीटर तक हो जाती है।
यह किस्म भूरा माहू, लिफ ब्लास्ट, ट्रीप्स, गालमिज तथा पत्ता मरोड़क रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 45 से 48 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। इसकी खेती मुख्य तौर पर ओडिशा और आंध्र प्रदेश में की जाती है।
2. Satabdi (शताब्दी)
शताब्दी धान की संकर किस्म है। इसके दाने पतले, लंबे तथा अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। यह 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म जीवाणु पत्ता अंगमारी तथा आच्छद विगलन रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
इसकी खेती जायद तथा खरीफ सीजन में की जाती है। इसका औसतन पैदावार 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। इसकी खेती मुख्य तौर पर पश्चिम बंगाल और बिहार में की जाती है।
3. राज लक्ष्मी (सीआरएचआर- 5) Raj laxmi (CRHR- 5)
धान की इस किस्म का दाना पतला और लंबा होता है। यह अर्द्ध बौनी किस्म है जो 120 से 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 105 से 110 सेंटीमीटर तक हो जाती है।
यह तना छेदक, भूरा माहू, गालमिज जीवाणु, पत्ता अंगमारी तथा लीफ ब्लास्ट रोग के प्रति सहिष्णु किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 70 से 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है। इसकी खेती मुख्य तौर पर ओडिशा, पं. बंगाल तथा असम में की जाती है। यह 7 से 10 दिन तक जलभराव की स्थिति सहन कर सकती है।
4. अजय (सीआरएचआर- 7) Ajay (CRHR- 7)
धान की इस किस्म के दाने पतले और लंबे होते हैं। अर्द्ध बौनी किस्म है जो 125 से 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। पौधे की ऊंचाई 105 से 110 सेंटीमीटर तक हो जाती है। तना छेदक, जीवाणु अंगमारी तथा भूरा माहू रोग के प्रति सहिष्णु किस्म है। यह किस्म 7 से 10 दिन तक जलभराव की स्थिति सहन कर सकती है।
इसकी औसतन पैदावार 70 से 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती ओडिशा और आंध्रप्रदेश के निचले भूमि क्षेत्रों में की जाती है।
5. रीता (सीआर- 780-1937-1-3) Reeta (CR – 780 – 1937 – 1 – 3)
इसके दाने मध्यम पतले होते हैं। यह अधिक समय में पकने वाली किस्म है। 145 से 150 दिन में तैयार होती है। इसके पौधे की ऊंचाई 110 सेंटीमीटर तक हो जाती है। यह किस्म आच्छद अंगमारी, Neck blast, गालमिज पत्ता मरोड़ाक तथा तना छेदक रोग के प्रति मध्यम सहिष्णु किस्म है।
इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल में मुख्य तौर पर की जाती है।
6. सीआर धान – 300 (CR Dhan – 300)
धान की इस किस्म के दाने पतले और लंबे होते हैं। मध्य अवधि वाली किस्म है जो 140 दिन में पक कर तैयार होती है। इसके पौधे की ऊंचाई 110 से 115 सेंटीमीटर तक हो जाती है।
यह लीफ ब्लास्ट, गालमिज राइस हिस्पा, थ्रिप्स तथा तना छेदक रोग के प्रति मध्यम सहिष्णु किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात तथा महाराष्ट्र में मुख्य तौर पर की जाती है।
7. सीआर धान – 701 (CR Dhan – 701)
धान की इस किस्म के दाने मध्यम पतले और लंबे होते हैं। लंबी अवधि में पकने वाली किस्म है जो 142 से 145 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। अधिक जलभराव तथा कम प्रकाश परिस्थिति को सहने वाली किस्म है। जीवाणु अंगमारी, हरामाहू तथा Neckblast रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है।
इसकी औसतन पैदावार 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है। इसकी खेती ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा गुजरात में मुख्य तौर पर की जाती है।
8. सीआर सुगंध धान – 907 (CR Sugandh Dhan – 907)
धान की यह सुगंधित, मध्यम पतले और लंबे दाने वाली किस्म है। 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। यह अधिक जलभराव तथा कम प्रकाश परिस्थिति को सहने वाली किस्म है। गाल मिज तथा Neck Blast रोग, आच्छद विगलन तथा तना छेदक रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
औसतन पैदावार 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, ओडिशा तथा गुजरात में मुख्य तौर पर की जाती है।